पिता की डायरी,हिंदी कहानी

 

पिता की डायरी    


माँ पिता जी कहाँ गये? डॉक्टर श्याम ने घर में आते ही अपनी माँ से पूछा,

श्याम की माता जी बोली-“ पता नहीं बेटे देखो लाईब्रेरी में होंगे “      

तभी श्याम की पत्नी सोनाक्षी बोली- “आपने आज बहुत गुस्सा कर दिया पिता जी के उपर, बूढ़े हो गये हैं, उनकी उम्र का तो ख्याल किया करो “

डॉक्टर श्याम- “ बूढ़े हो गये है लेकिन हरकते बच्चो जैसी करते है, बच्चो के साथ विडियो गेम खेल रहे थे और शोर मचा रहे थे, इतना भी ख्याल नहीं है की घर में कुछ लोग आये हुए हैं, डॉक्टर श्याम बडबडाते हुए लाइब्रेरी में चले जाते हैं, वहां जा कर देखते है की पिता जी की डायरी खुली हुई है और हवा से पन्ने फडफडा रहे हैं, डॉक्टर श्याम मन ही मन बोलते है-“ देखो डायरी भी खुला छोड़ दिया है, फट जाएगी ऐसा बोल कर डायरी समेटने लगते हैं, ऐसे तो दुसरे की डायरी पढना मेंनेर्स के खिलाफ होता है लेकिन उसमे अपना नाम पढ़ कर उत्सुकता से वे डायरी ले कर वही चेयर पर बैठ कर पढने लगते हैं,

[जानते हो बेटे जब तुम पहली बार इस दुनियां में आये तो ना जाने कितने ख्वाब इन आँखों में सज गये थे, जब तू माँ के सिने से लग कर है दूध पिता था तो मैं चुपके से देखा करता था, घंटो अपने पेट पर सुला कर रखता, सारा वात्सल्य लुटा देना चाहता था तुझ पर, लेकिन वो क्या हैं ना की पिता बनने के साथ-साथ कई जिम्मेदारियाँ भी आ गयी थी इन कंधो पर, तुम्हारी हर जरुरत पूरी करने की जिम्मेदारी, तुम्हें समाज में कामयाब बनाने की जिम्मेदारी, तुम्हें अनुशासित रखने की जिम्मेदारी, तुम्हें मजबूत बनाने की जिम्मेदारी ताकि तू कदम से कदम मिला कर इस दुनियां के साथ चल सके, इन सारी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते एक पिता कब अपने कोमल भावनाओ के उपर एक कठोर आवरण ओढ़ लेता है ये तो उसे खुद भी पता नहीं चलता, जानते हो बेटे मुझे जलन होती थी तुम्हारी माँ से जब तू अपनी माँ से मिठ्ठी-मिठ्ठी प्यारी-प्यारी बातें करता था, मैं चुप-चाप सुना करता था, दुसरे कमरे से, और मन ही मन खुश हुआ करता था, लेकिन डरता था तुम्हारे सामने आने से कहीं मेरी सच्चाई तुम्हें पता ना चल जाये,

उस दिन जब तुम्हें चोट लगी थी, घुटने से खून बह रहा था, भाग कर तेरी माँ दवा ले कर आई और रोते हुए उस पर दवा लगा रही थी, मैं भी भाग कर आया था, लेकिन तुझे देख कर अपना सर घुमा लिया था मैंने, तुम्हें लगा था की मुझे तकलीफ नहीं हुई, ऐसा नहीं था मेरा बच्चा, बहुत तकलीफ हुई थी, तू तो मेरे कलेजे का टुकड़ा है, और चोट मेरे कलेजे को लगी थी, आँखों में आँसू आ गये थे मेरे, कहीं तू मेरे आँसू देख ना ले, इसलिए अपना सर घुमा लिया था मैंने, क्यों की तुझे तो अभी कई बार गिरना था, गिर कर उठना था, ऐसे कई चोटों का सामना करना था तुझे, तू मेरी आँखों में आँसू देख कर कमजोर न बन जाये इसलिए, तुम्हें मजबूत जो बनाना था,

और उस दिन जिस दिन तुमसे एक एक रु का हिसाब माँगा था, ऐसा नहीं था रे पगले की मुझे तुझ पर विश्वाश नहीं था मुझे तुझ पर विश्वाश था, तभी तो पैसे दे कर बाज़ार भेजा था, मैं तो तुझे पैसे का मोल सिखा रहा था, तू कहीं पैसे को गलत जगह पर ना खर्च करे, मुझे फ़िक्र थी तुम्हारी, बस इसलिए हिसाब.....

और उस दिन जब दोस्तों के साथ पार्टी करने के लिए पैसे मांगे थे तूने, और मैंने मना कर दिया था, फिर तेरी माँ ने तुझे पैसे दिए थे पार्टी करने के लिए, इसलिए तो तेरी माँ से कभी उन पैसो का हिसाब नहीं माँगा मैंने, फिर भी तेरी फिकर थी मुझे, की कहीं तू दोस्तों के साथ गलत संगती में ना पड़ जाये, इसलिए तेरे पीछे-पीछे गया, तू दोस्तों के साथ खूब मस्ती कर रहा था, झूम-झूम कर नाच रहा था, मेरा भी मन किया, आज सारे बंधन तोड़ कर तेरे साथ खूब मस्ती करू, मन भर के नाचूं-गाऊ, लेकिन उस दिन भी रोक लिया मैंने खुद को, सोचा पहले तू एक कामयाब इन्सान बन जाये, फिर तेरे साथ खूब मस्ती करूँगा, ढेर सारी बाते करूँगा, इसलिए दूर से ही तुझमे अपनी जवानी जी कर आ गया मैं,

आज तू एक कामयाब इन्सान बन गया, सफलता तेरी कदम चूम रही है, लेकिन मैं, मैं न रहा, क्यों मैं दादा बन गया, और तू भी तू नहीं रहा, तू भी एक पिता बन गया हैं, एक जिम्मेदार इन्सान, घर की जिम्मेदारी बच्चो की जिम्मेदारी समाज की जिम्मेदारी, मैं हर परिस्थिति में तुम्हारी स्थिति को समझता हूँ, लेकिन तुम्हे मेरी स्थिति को समझने में थोड़ी देर लगती हैं, यही दुरी तो है एक पिता और पुत्र के बिच की दुरी, और क्या लिखू मैं मेरे बच्चे, अंत में मैं बस इतना लिखूंगा की तुझे मैंने तेरी माँ की तरह अपने शारीर के अंदर से नहीं निकला, लेकिन तू मेरा अंश है, जिस दिन तू इस दुनिया में आया, मैं तेरे अंदर जीने लगा, तेरे चेहरे पर ख़ुशी देख कर अपनी सारी थकान भूल गया, तेरे बचपने में अपना बचपन जीने लगा, तेरे चेहरे पर सुकून देख का अपनी सारी मुश्किलें भूल गया, तेरे जवानी में अपनी जवानी जीने लगा,

तू आज भी मेरी स्थिति नहीं समझ रहा हैं, लेकिन मैं तेरी स्थिति को अच्छी तरह से समझता हूँ, जब तू ये बोलता है की पिता जी आप तो बच्चो के साथ बच्चे बन गये है, तब मुझे हंसी आ जाती हैं, तू मेरी इस स्थिति को भी समझेगा जब तू दादा बन जायेगा, लेकिन तब शायद मैं इस दुनियां में ही नहीं रहूँगा,]

इतना पढ़ कर डॉक्टर श्याम के आँखों के सामने बचपन से पिता जी के साथ बिताये सारे पल एक चलचित्र की भांति घुमने लगा, उनके आँखों में आँसू आ गये, तभी डॉक्टर श्याम को सोनाक्षी की आवाज सुनायी पड़ी, डॉक्टर श्याम ने पीछे मुड़ कर देखा, उनकी माँ और सोनाक्षी खड़ी थीं, डॉक्टर श्याम की माँ बोली-“ अरे बेटे तेरे पिता जी यहाँ भी नहीं हैं तो कहाँ गये”

डॉक्टर श्याम झट से अपने आँखों से आँसू पोछते हुए बोले-“मैं जनता हूँ वे कहाँ होंगे, मैं उन्हें ले कर आता हूँ, इतना बोल कर डॉक्टर श्याम बाहर निकल गये,

जा पहुंचे उस पार्क में जहाँ बचपन से उन्हें उनके पिता जी ले जाया करते थे, शायद पिता पुत्र के बिच की दुरी ख़तम करना चाहते थे, लेकिन कभी ख़तम नहीं कर पाए, जा कर देखा पिता जी वही उस बेंच पर अकेले बैठे थे, डॉक्टर श्याम वही उनके बगल में बैठ जाते है, और बोलते है-“ पिता जी आपने अच्छा किया जो ये दुरी बनाये रखी, आज मैं जो भी हूँ आपके कारण ही हूँ, कई बार मेरा मन करता था स्कूल बंक कर दोस्तों के साथ मूवी देखने चला जाऊ, कई बार मेरा मन स्कूल नहीं जाने का करता था, कई बार दोस्तों के साथ पार्टी में शराब पिने का मन करता था, लेकिन हर बार आपका गुस्से वाला चेहरा याद आ जाता था, पिता जी आप हर बार मेरा हाथ पकड़ कर गलत रास्ते पर जाने से रोक देते थे, बस आज मैं इतना कहना चाहता हूँ की मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ,

इतना बोलते-बोलते डॉक्टर श्याम गला भर आया, डॉक्टर श्याम के पिता जी डॉक्टर श्याम को गले से लगा लेते है,

         अल्पना सिंह

 

 

 

 

Comments

  1. Bhut achi khani hai !!!

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  2. Father's love. we can't see earlier . We realise too late. 🙂🙂

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  3. Alpna ji your story is aheart touching story

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