बिहार का महापर्व छठ पूजा
बिहार का महापर्व छठ पूजा
मै के औरंगाबाद से हूँ और बचपन से छठ पूजा देख भी रही हूँ और इसे मनाते भी आ रही हूँ .छठ पूजा हमारे धर्म ,आस्था ,और संस्कृति से जुड़ा एक महापर्व है ,इसका धार्मिक महत्त्व भी है ,सांस्कृतिक महत्त्व भी है और वैज्ञानिक महत्त्व भी है .इस महापर्व में समाज के सभी तबके के लोग बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते है , आमिर -गरीब ,ऊँच-निच जांत- पांत सभी को भुला कर अर्घ देने के लिए घाट पर एक साथ इक्कठा होते है .ये दृश्य भारत की अखंड एकता को दर्शाता है ,
उगते सूर्य को तो सभी प्रणाम करते है परन्तु इस छठ महापर्व में उगते सूर्य के साथ-साथ डूबते हुए सूर्य को भी सत् सत् नमन करते है ,जो हमें जिंदगी का एक अचूक पाठ सिखाता है .ये इस छठ महापर्व की सबसे बड़ी विशेषता है .छठ महापर्व की कई पौराणिक कथाये प्रचलित है ,सर्व प्रथम इस छठ महापर्व को माता सीता ने की थी .कमर तक पानी में खड़े हो कर सूर्य भगवान को अर्घ दिया था और उनकी उपासना की थी ,महाभारत काल में महारथी कर्ण भी भगवान सूर्य की उपासना करते थे ,वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े हो कर सूर्य भगवान को अर्घ देते थे और दान देते थे .जिसके कारण कर्ण को हम दानवीर कर्ण के नाम से भी जानते है .ऐसे छठ पूजा की पौराणिक मान्यता है ,
छठ पूजा कार्तिक महीने के षष्ठी को मनाया जाता है षष्ठी माता जो सूर्य भगवान की बहन है जिन्हें सौभाग्य की देवी माना जाता है ,पुत्र की लम्बी उमर,स्वस्थ की मंगल कामना ,परिवार के सुख शांति के लिए लोग इस पर्व को करते है ,इसे मन्नतो का पर्व भी है कहा जाता है ,लोगो का अटूट विश्वाश है की सूर्य भगवान जो भी मन्नत है उसे अवश्य पूरा करते है ,
यह पर्व चार दिनों का होता है ,यह पर्व को आदमी और औरत समान रूप से करते है , इस पर्व से विशेष आस्था जुडी है लोगो की,
नहाय-खाय ,बरौना-
छठ का पहले दिन को नहाय -खाय या बरौना कहते है ,इस दिन लोग नहा-धो कर शुद्ध भोजन करते है ,इसी दिन से छठ की धूम धाम शुरू हो जाती है ,बाज़ार सज जाते है ,लोग आज के दिन पूजा की खरीददारी करते है ,
खरना ,खीर का दिन -
दुसरे दिन, दिन भर का उपवास रखते है ,शाम को किसी नदी या तालाब में जा कर डुबकी लगाते है और वही से शुद्ध पानी लाते है और उसी पानी से प्रसाद खीर बनाते है ,घर के जितने भी पर्वयतीं रहती है वे सब अलग कमरे में अकेले भूमि पूजन करती है और प्रसाद ग्रहण करती है ,बाद में सारे परिवार ,नाते रिश्तेदार में प्रसाद बाटते और खाते है,
लोहड़ा या उपवास -
तीसरे दिन को लोहड़ा या उपवास बोलते है ,इस दिन, दिनरात निर्जला वर्त रखते है और बहुत ही शुद्धता से प्रसाद बनाते है, सूर्य भगवान को अर्पण करने के लिए .शाम में सारे परिवार के साथ किसी नदी या तलब पर जा कर जिसे घाट बोलते है सूर्य भगवान को अर्घ देते है ,सारे पर्वयती नदी में कमर तक के पानी में खड़े हो कर डूबते हुए सूर्य भगवान की आराधना करती है ,
पारण-
चौथे दिन को पारण बोलते है ,३६ घंटे के निर्जला उपवास के बाद चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ दे कर अपना उपवास तोड़ती है ,प्रसाद खा कर अपना व्रत तोड़ती है ,और प्रसाद खाते खिलते मंगल गीत गाते घर वापस लौट आती है
छठ के प्रसाद -
छठ के प्रसाद में ठेकुआ बहुत प्रसिद्ध है ,मौसम के सारे नए फल ,चावल ,घी ,दूध से बना लड्डू जिसे कच्वानिया बोलते है प्रसिद्ध है
लेखिका- अल्पना सिंह (स्नातक पास)
That is very good essay you explain the festival very well it's amazing how you explain it
ReplyDeleteकहा जाता है यह पर्व मैथिल,मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये कहा जाता है यह पर्व मैथिल,मगध और भोजपुरी लोगो का सबसे बड़ा पर्व है ये उनकी संस्कृति है। छठ पर्व बिहार मे बड़े धुम धाम से मनाया जाता है। ये एक मात्र ही बिहार या पूरे भारत का ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और ये बिहार कि संस्कृति बन चुका हैं। यहा पर्व बिहार कि वैदिक आर्य संस्कृति कि एक छोटी सी झलक दिखाता हैं।
ReplyDeleteउगते सूर्य को अर्घ्य देने की रीति तो कई व्रतों और त्योहारों में है लेकिन डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा आमतौर पर केवल छठ व्रत में है. कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की षष्ठी को ढलते सूर्य को अर्घ्य क्यों दिया जाता है. आइए जानते हैं ये भी अपने आप में एक बड़ा सवाल है। वैसे तो सुबह, दोपहर और शाम तीन समय सूर्य देव विशेष रूप से प्रभावी होते हैं.
सुबह के वक्त सूर्य की आराधना से सेहत बेहतर होती है. दोपहर में सूर्य की आराधना से नाम और यश बढ़ता है. शाम के समय सूर्य की आराधना से जीवन में संपन्नता आती है उसका कारण है कि शाम के समय सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं इसलिए प्रत्यूषा को अर्घ्य देना तुरंत लाभ देता है.
जो डूबते सूर्य की उपासना करते हैं ,वो उगते सूर्य की उपासना भी ज़रूर करें
ज्योतिष के जानकारों की मानें तो अस्त होते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा इंसानी जिंदगी हर तरह की परेशानी दूर करने की शक्ति रखती है. फिर समस्या सेहत से जुड़ी हो या निजी जिंदगी से. ढलते सूर्य को अर्घ्य देकर कई मुसीबतों से छुटकारा पाया जा सकता है
ॐ घृणि सूर्याय नम:
रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्,
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।
सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः,
एष देवासुरगणानाल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ।।
धन्यवाद आपके कमेंट्स के लिए
DeleteJai chhathi maiya
ReplyDeleteजय हो
DeleteJai chhathi maiya
ReplyDeleteBhut hi achi jankari ….. aise hi jari rakhe likhna
ReplyDeleteधन्यवाद सर
ReplyDeleteबहुत अच्छा है । आप हमारी संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जीवित करने का भरपुर प्रयास कर रही है । ऐसे ही लिखते रहिये ।
ReplyDeleteधन्यवाद सर ज़ी
DeleteHappy Chat Puja
ReplyDeleteVery nice eassy jai chhathi maiya
ReplyDeleteAchha lekh hai likhte rahiye.
ReplyDeleteArchna singh
Good job
ReplyDeleteHappy Chath
ReplyDeleteExplained very well about our culture.happy chath puja 🙏🏻
ReplyDeleteThanks for good awareness Alpna singh g🙏🙏
ReplyDeleteSandar ,jabardast ,zindabad
ReplyDeleteBhut acha
ReplyDeleteBahut sundar likha hai apne asie hi apne Bihar ke bar me sabi ko bataye
ReplyDeleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteNice
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