नारी सशक्तिकरण

नारी सशक्तिकरण  

नारी पर हो रहे अत्याचार – आज मैं आप लोगों  का ध्यान औरतों पर हो रहे अत्याचार की ओर आकृष्ट करना चाहती हुँ। बहुत सारे लोगों का यह मानना है की आज औरतों की स्थिति में बहुत सुधार हो गया है। औरतों की सुरक्षा के लिए बहुत से क़ानून बनाये गए है। औरतों की शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। नहीं सहना है अत्याचार, महिला सशक्तिकरण का यही है मुख्य विचार। महिला अबला नहीं सबला है, जीवन कैसे जीना है यह उसका फैसला है। यह नारा हर सार्वजनिक स्थान, स्वस्थ केंद्र में लिखा हुआ दिख जायेगा आपको। लेकिन मैं आज एक सवाल पूछना चाहती हुँ इस समाज के लोगों से, क्या सरकार के इन सारे सराहनीय उपाय के बावजूद महिलाओं पर अत्याचार कम हुए है। 

हम अपने इतिहास को पलट कर देखते है। हम जिस देश में रहते है। उस देश में महिलाओं को देवी की तरह पूजा जाता है। शक्ति के रूप में, लक्ष्मी के रूप में, विद्या दायनी सरस्वती के रूप में।  माँ, बहन, बेटी, बहु के रूप में सम्मान दिया जाता है। जिस देश में पत्नी के सम्मान के लिए श्री राम रावण जैसे राक्षस से लड़ गए, जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने अपनी सखा द्रौपती के अपमान के लिए महाभारत के युद्ध का आगाज किया। उस देश में निर्भया कांड, तेजाब कांड, घरेलू हिंसा, दहेज़ प्रथा, और उससे से भी बढ़ कर कन्या भ्रूण हत्या हमें शर्मसार कर देता है। जिस देश में नारी को शक्ति के रूप में पूजा जाता है। आज उसी देश में नारी को अबला जान कर उनका शोषण किया जा रहा है। तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है। जिस देश में नारी को लक्ष्मी का रूप मान कर पूजते है वही उन्हें दहेज़ ना लाने के या कम लाने के कारण उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है, यहां तक जान भी ले रहे लोग। जिस देश में विद्या दायनी माँ सरस्वती के रूप में नारी की पूजा होती है उसी भूमि पर नारी को शिक्षा ग्रहण का अधिकार नहीं, शिक्षा उनके लिए जरूरी नहीं ऐसा मानते है लोग। उस देश में बालिका शिक्षा अभियान चलना पड़ रहा है। बालिका शिक्षा के महत्व को समझाना पड़ रहा है। कैसी विडंबना है ये। इससे भी बड़ी विडंबना ये है की जिस देश में नारी को प्रकृति का रूप मानते है, प्रकृति का रूप मान कर पूजा करते है। प्रकृति यानी जीवन। समस्त जीवन का आधार। आज उसी प्रकृति को लिंग का पता लगा कर माँ के गर्भ में ही हत्या कर जा रही है। और हम कहते है की औरतों की स्थिति में सुधार हो रहा है। सोचने की बात है सोचिये पहले हम किस स्थिति में थे और आज हम किस स्थिति में है। आज हमें औरतों के सुरक्षा के लिए क़ानून बनाने पड़ रहे है। बालिका को शिक्षित करने के लिए अभियान चलाने पड़ रहे है। इतिहास गवाह है हमारे देश में प्रारंभिक समय में कोई कुरीतियाँ नहीं थी। धीरे-धीरे समय परिवर्तन के साथ कई बाहरी आक्रमण और बाहरी लोगों के आगमन ने हमारे देश में कई कुरीतियों को जन्म दिया। जिनका सबसे ज्यादा असर महिलाओं पर हुआ। उदाहरण स्वरूप-

सती प्रथा  – किसी भी धर्म ग्रन्थ या किसी प्राचीन किताब में सती प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता। ऐसी कोई प्रथा थी, ऐसा पहले की कहानियों में भी नहीं मिलता। अगर ऐसी कोई प्रथा होती तो राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात उनकी तीनों रानी कौशल्या, सुमिंत्रा, और कैकई को राजा दशरथ जी की चिता के साथ जल जाना चाहिए परन्तु ऐसा नहीं  है। कुंती, सत्यवती ऐसी कई औरतें थी जो पति के मृत्यु के बाद भी कई सालो तक जीवित थी। उनके अपने पति के साथ आत्म दाह का उल्लेख नहीं मिलता। सती प्रथा या यु कहे जौहर प्रथा राजस्थान में मिलता है। मुगलो के आक्रमण के बाद जब राजा हार जाते थे तब उनकी रानियाँ अपने सम्मान की रक्षा के लिए अपनी दासियों सहित अपनी इच्छा से अग्नि में प्रवेश कर जाती थी आत्म दाह कर लेती थी, इसे जौहर कहा जाता था। यह स्त्रियों द्वारा लिया गया एक गौरव पूर्ण निर्णय था जो अपनी इच्छा से अपने सम्मान की रक्षा के लिया जाता था। इसके लिए उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं होता था। परन्तु यही आगे चल कर एक कुरीति का रूप ले लिया। कई स्वार्थी और लालची लोगों ने इसे एक प्रथा का नाम दे दिया। पति के मृत्यु के बाद उस औरत को उसके पति की चिता के साथ जला दिया जाता था। जब कोई स्त्री इसका विरोध करती तो उसे जबरन उसके पति के चिता के साथ बांध कर जला दिया जाता था, और इसे सती प्रथा का  नाम दिया जाता था। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा के विरुद्ध समाज को जागरूक किया और तत्कालीन सरकार से इसे रोकने के लिए अनुरोध किया। तत्पश्चात 1829में सती प्रथा को रोकने का क़ानून पारित हुआ।


बाल विवाह इस पुरुष प्रधान देश में बाल विवाह समाज के एक संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है। लड़कियों को पराया धन मान कर छोटी उम्र में बच्चियों का विवाह कर देना, उनके पढ़ाई को व्यर्थ और फिजूल खर्च मानना। ये हमारे समाज की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है। गरीबी, सामाजिक असमानता और एक मुख्य कारण दहेज़ प्रथा है। बाल विवाह को रोकने के लिए कई लोग आगे आये जिनमें राजा राम मोहन राय, केशव चंद्र सेन ने ब्रिटिश सरकार से एक बिल पास करवाया जिसमें लड़कियों की विवाह की उम्र 14 वर्ष और लड़कों की विवाह की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गयी। जो 1929 में पारित हुआ था। बाद में सन्न 1949,1978, और 2006 में इसमें संशोधन किया गया, जिसमें लड़कियों की उम्र 18 वर्ष और लड़कों की उम्र 21 वर्ष निर्धारित किया गया। कई तरह के क़ानून बनाने के पश्चात भी बाल विवाह जैसी बुराई पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुई हैं। इसके कई कारण है।

रूढ़ि वादी होना – इनमें से एक सबसे बड़ा कारण तो लोगों का रूढ़ि वादी होना है। कई रूढ़िवादी लोगों का यह मानना है की रज़ो दर्शन के पहले ही कन्या का विवाह कर देना चाहिए, रजो दर्शन के पहले कन्या शुद्ध होती है और इस समय कन्या दान करने से कई यज्ञ का पुण्य फल प्राप्त होता है।

क़ानून का विफल होना – क़ानून के विफल होने का मुख्य कारण है परिवार के सहयोग से हो रहा जुर्म। शिकायत कर्ता या समाज सुधारक को ही पूरी लड़ाई लड़नी पड़ती। इस समाज में एक साथ रहने और दुश्मनी के डर से कोई शिकायत भी नहीं करता है। जिस कारण क़ानून भी विफल हो रहा है।

परन्तु वर्तमान समय में शिक्षा के कारण बाल विवाह पर अंकुश लग रहा है। शिक्षा के कारण लोग अपने बच्चियों की तकलीफ समझने लगे है, कच्ची उम्र में विवाह करने से उनकी बच्चियों का ना तो शारीरिक विकाश हो पता है और नहीं मानसिक ।और कच्ची उम्र में माँ बनने से उनकी जान को भी खतरा रहता है। ये सब शिक्षा का ही परिणाम है की लोग कम उम्र में विवाह से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक हो रहे है। वो दिन दूर नहीं जब बाल विवाह जैसी कुरीति का हमारे समाज से मूल रूप से समाप्त हो जायेगा। इसका पूरा श्रेय शिक्षा को ही जाता है।

दहेज़ प्रथा – यह ऐसी प्रथा है जिससे आज भी बहुत सारी औरतों को प्रताड़ित किया जाता है। और इस एक कुरीति से बहुत सारी कुरीतियों का जन्म हुआ है, बाल विवाह,घरेलू हिंसा, मानसिक प्रताड़ना, कन्या भ्रूण हत्या। परिवार इस समाज निर्माण की महत्व पूर्ण इकाई है। एक परिवार का निर्माण लड़के और लड़की के विवाह से शुरू होता है। हमारा देश पुरुष प्रधान देश है जिस कारण प्रारंभिक काल से ही रिवाज है की लड़की विवाह के उपरांत अपने पति के घर चली जाती है जिसे उसका ससुराल कहते है। और लड़की के माता पिता अपने समर्थ के अनुसार अपनी कन्या को उपहार दे कर ससुराल बिदा करते है। इस रस्म को तिलक कहते है। यही रस्म आगे चल के दहेज़ प्रथा में परिवर्तित हो गया। अब कुछ लालची और स्वार्थी लोग लड़की के घर वाले से अपनी इच्छा अनुसार मांग रखते है और मांग नहीं पूरा होने पर लड़की को तरह-तरह से प्रताड़ित करते है। यहां तक की जान भी लेते है। या मजबूर हो कर आत्महत्या कर लेती है।

दहेज़ प्रथा को रोकने के उपाय – सर्वप्रथम 1975 में एक क़ानून बना जिसमें दहेज़ लेना और दहेज़ देना दोनों ही कानूनन अपराध है। सरकार ने दहेज़ विरोधी क़ानून को और प्रभावशाली बनाने के लिए एक संसदीय कमिटी का गठन किया। दहेज़ के कारण महिलाओं के बढ़ते आत्म हत्या के घटना के कारण 1985 में एक और क़ानून बनाया गया, उस क़ानून के अनुसार यदि कोई दहेज़ के लिए किसी भी महिला को आत्महत्या के लिए मजबूर करता है तो उसे और उसके परिवार को दण्डित किया जायेगा। दहेज़ प्रथा हमारे समाज में कई कुरीतियों की जन्मदाता है,

परन्तु वर्तमान समय में शिक्षा के कारण बाल विवाह पर अंकुश लग रहा है। शिक्षा के कारण लोग अपने बच्चियों की तकलीफ समझने लगे है, कच्ची उम्र में विवाह करने से उनकी बच्चियों का ना तो शारीरिक विकाश हो पता है और नहीं मानसिक ।और कच्ची उम्र में माँ बनने से उनकी जान को भी खतरा रहता है। ये सब शिक्षा का ही परिणाम है की लोग कम उम्र में विवाह से होने वाले नुकसान के प्रति जागरूक हो रहे है। वो दिन दूर नहीं जब बाल विवाह जैसी कुरीति का हमारे समाज से मूल रूप से समाप्त हो जायेगा। इसका पूरा श्रेय शिक्षा को ही जाता है।

कन्या भ्रूण हत्या- वर्तमान समय में लड़कियों के साथ होने वाला सबसे बड़ा उत्पीड़न कन्या भ्रूण हत्या है इसके कई कारण है – जैसे दहेज़ प्रथा, लड़कों को ही वंश मानना, अंधविश्वास, अशिक्षा गरीबी ,आज हम एकीशवी सदी में रह रहे है ,आज के डिजिटल दुनिया में लडकियाँ लड़को के साथ कदम से कदम मिला के चल रही है , आज लडकियों ने हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल की है ,कहने को तो आज हम एक शिक्षित और विकासशील देश के निवासी है परन्तु आज वंश के नाम पर लडकियों की माँ के गर्भ में ही हत्या हमे शर्मसार कर देता है ,हमें अंधविश्वास और अशिक्षा के मामले में सदियों पीछे धकेल देता है ,झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ,अहिल्या बाई , श्रीमति इंदिरा गाँधी ,किरण बेदी ,कल्पना चावला ऐसे कई उदाहरण है जिनके नाम लिखने लगु तो कागज कम पड़ जायेंगे , जिन्होंने अपने काम से अपने पिता का नाम रौशन किया है ,फिर आज लड़को के लिए लड़कियों का लिंग परिक्षण कर माँ के गर्भ में ही हत्या एक शर्मनाक काम है जो हमारे समाज में बेख़ौफ़ हो रहा है , इसके भी कई कारण है –

अन्धविश्वाश – लोगों की ये छोटी सोच की लड़को से ही उनका वंश आगे बढेगा , जब लड़के ही उन्हें मुखाग्नि देंगे और अंतिम संस्कार करेंगे तभी उनकी आत्मा को शांति मिलेगी और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होगी अन्यथा उनकी आत्मा इस धरती पर भटकती रहेगी ,एक और सोच है लोगो की लड़के ही उनकी सम्पति के वारिस होते है ,जो भी उन्होंने जीवन में कमा कर अर्जित किया है ,

अशिक्षा और गरीबी  – अशिक्षित लोग भी लड़को और लड़कियों में भेद भाव करते है , गरीबी भी एक बड़ा कारण है कन्या भ्रूण हत्या का , दहेज़ के कारण भी लोग लड़कियों को गर्भ में ही मार रहे है ,

कानून का विफल होना – सरकार ने बहुत ही सख्त कानून बनाए है कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए ,लेकिन बाल विवाह की तरह ही यह भी कानून विफल हो रहा है इसका भी मुख्य कारण परिवार की मर्जी से ये जुर्म हो रहा है , समाज में एक साथ रहने और दुश्मनी के डर से कोई शिकायत नहीं करता , शिकायत कर्ता को ही पूरी लड़ाई लड़नी पड़ती है , इस जुर्म में एक और बहुत बड़ी विडम्बना है इस जुर्म में जो लोग शामिल है , वे पढ़े लिखे और समाज में प्रतिष्ठित लोंग है , माँ – बाप भले ही अशिक्षित और गरीब हो परन्तु वे डाक्टर ,नर्स ,गय्नोलोज़िस्ट ये सब पढ़े लिखे और प्रतीष्ठित होते है ,


                                                                      

 

 


Comments

  1. This is a good example of how women had a great position in our society but the respect of women had decrease with time we need to understand that everyone should be treated equally and respectful

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  2. This is the truth, and we all have to fight together against them and walk shoulder to shoulder in uprooting them from the society.

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    1. Thanks for supporting me every time

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  3. हर पथ को रोशन करने वाली वो शक्ति है एक नारी।

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