श्रीधर पंडित (भाग -2)
अल्पना सिंह
मेरी कहानी श्रीधर पंडित गांव के पृष्टभूमि से जुडी हुई है ,गांव के मिटटी की खुशबु मेरी इस कहानी में मिलेगी , श्रीधर कहानी गांव के तिन मस्तमौला दोस्तों की है ,जो एक साथ हँसते -खेलते बड़े होते है ,उनके जीवन की ही कुछ खट्टी-मीठी किस्से है इस नावेल में ,जीवन के उतार -चढ़ाव को दिखाती ये नावेल हमारे समाज की कुछ कडवी सचाई को भी दिखाती है ,
पिछली कहानी में आपने पढ़ा की मेरे बचपन का दोस्त श्रीधर अचानक से सड़क के किनारे एक चाय के स्टाल पर मिला, ओ बहुत दुखी था ,मै उसे अपने घर ले आया ,खाना खा कर हम दोनों सोने चले गये ,श्रीधर भूखा भी था और थका हुआ भी ,श्रीधर खाना खाते ही सो गया ,मै वही सोफे पर लेट गया ,
मेरी आँखों में नींद दूर दूर तक नहीं था ,मै बचपन की यादो में ,गांव की गलियों में खो गया, मै सोफे पर लेटे-लेटे श्रीधर की ओर देखा श्रीधर गहरी निंद में सो रहा था
मेरा मन श्रीधर
को लेकर चिंतित था,एक मन कर रहा था
गांव में फोन लगाकर पूछूं क्या बात है फिर रोक लिया खुद को। श्रीधर और मैं दोनों
एक ही गांव के रहने वाले थे और दोनों बचपन के दोस्त भी थे। शायद श्रीधर खुद अपनी
परेशानी बताएगा,जब वह थोड़ा शांत
हो जाएगा। यही सोच कर मैं चुप रह गया। सारी बातें सोचते-सोचते कब मेरी आंख लग गई
मुझे पता भी नहीं चला, लेकिन जब मैं
सोकर उठा तब तक शाम के 5:00 बज गए थे।
श्रीधर सोकर मुझसे पहले उठ गया था। श्रीधर ने चाय भी बना ली थी हम दोनों के लिए।
मैं उठा और हाथ मुंह धो कर किचन से मिक्सचर और बिस्किट ले आया और हम दोनों साथ में
चाय पीने लगे। श्रीधर ने ही बात शुरू की पूछा -यह किराए का घर है मैंने कहा हां
लेकिन जमीन का एक छोटा सा प्लॉट खरीदा है मैंने, जल्दी ही उस पर घर बनाने की सोच रहा हूं मैं। फिर मैंने
श्रीधर से पूछा और तुम्हारा क्या चल रहा है। गायत्री भाभी कैसी है। ( गायत्री
श्रीधर की पत्नी का नाम है) बिटिया रानी कैसी है। बिटिया का नाम सुनते ही श्रीधर
उदास हो गया धीरे से बोला- गायत्री तो ठीक है लेकिन बिटिया की तबीयत खराब है।
मैंने पूछा- क्या हुआ बिटिया को श्रीधर बोला पता नहीं संजीव गांव में स्वास्थ्य
केंद्र के डॉक्टर को दिखाया था। बोले दिल्ली ले जाकर बड़े डॉक्टर को दिखाने के लिए
कहते है। इतना पैसा कहां है मेरे पास। मैंने कहा गिरधर से बात की तुमने गिरधर का
नाम सुनते ही श्रीधर के आँखों में आंसू आ गए। इतने सालों की दोस्ती में मैंने
श्रीधर को कभी रोते नहीं देखा। बहुत उतार-चढ़ाव आए हमारी जिंदगी में लेकिन मैंने
श्रीधर को ऐसे टूटते नहीं देखा था। मैंने श्रीधर के कंधे पर हाथ रखकर उसे ज़ोर से
झकझोरते हुए कहा क्या हुआ है श्रीधर कुछ बोलेगा भी। उसके बाद श्रीधर ने जो कुछ भी
मुझे बताया उसे सुनकर मेरे होश उड़ गए। गिरधर ऐसा भी कुछ कर सकता है यह तो मैं
सपने में भी नहीं सोच सकता था, और गुस्से से
बोला गिरधर ऐसा कैसे बोल सकता है आखिर घर में तुम्हारा भी हिस्सा है। श्रीधर बोला
मेरा है, लेकिन उस बच्ची का नहीं है। मैंने कहा क्यों नहीं है आखिर तुमने और
गायत्री भाभी ने सीने से लगाकर बड़े लाड से पाल पोस कर बड़ा किया है। अपनी बेटी
माना है। श्रीधर बोला - पाल पोस कर बड़ा किया है, जन्म तो नहीं दिया है पता नहीं किस कुल की खानदान की है,
किसका खून है, ना जात का पता है न कुल का,ऐसा कहना है माताजी का।
मेरे मुंह से निकला माताजी का!!!!!!!!
श्रीधर -हां
माताजी का,बोलती है छोड़ा आऊँ उसे
कहीं भी। अगर गोद लेना ही है तो गिरिधर के बच्चे को ले लूं या अपने बहनों के
बच्चों को ले लूं लेकिन छोड़ आओ इस बच्ची को कहीं भी इस बच्ची के लिए एक पैसा नहीं
है मेरे पास। इतना बोल कर श्रीधर फफक कर रो पड़ा। कहाँ छोड़ आऊँ इस बच्ची को वो भी
इस हालत में।
मैं हतप्रभ था। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। क्या
बोलूं किसी तरह से श्रीधर को चुप कराया।
मैंने कहा - पहले भाभी जी और
बिटिया को यहां ले आओ किसी डॉक्टर को दिखाते हैं उसके बाद सोचेंगे श्रीधर बोल पड़ा
नहीं नहीं संजीव भाई मैं यहां तुम पर और भाभी जी पर बोझ नहीं बनना चाहता।
मैंने कहा बोझ
कैसा श्रीधर, बच्ची को भले ही
तुमने और गायत्री भाभी ने पाला है लेकिन मिली तो हम तीनों को। इसलिए उसकी
जिम्मेदारी भी हम तीनों की है।
इधर ने कहा बच्ची की जिम्मेदारी भले ही हम तीनों
की है लेकिन इतना बोलकर श्रीधर चुप हो गया। थोड़ी देर चुप रहने के बाद, फिर से बोला संजीव ऐसा कर मेरे लिए छोटी-मोटी
नौकरी इधर ही ढूंढ दे,ताकि मैं गायत्री
और बिटिया को यही लाकर रख सकूं, मेरी इच्छा उस गांव में लौट कर जाने की बिलकुल नहीं
है।
मैं चुपचाप सुन रहा था। मैंने उस वक्त श्रीधर से
कुछ बोलना मुनासिब नहीं समझा और फिर बिटिया का इलाज भी कराना था। मैंने श्रीधर से
कहा ठीक है देखता हूं मैं। मैंने श्रीधर से कहा चल कहीं घूम कर आते हैं और उधर ही
खाना भी खा लेंगे। भारी मन से ही श्रीधर चलने को तैयार हो गया। मैं और श्रीधर पैदल
ही सड़क किनारे धीरे-धीरे चल रहे थे दोनों ही खामोश थे ना श्रीधर कुछ बोल रहा था
और ना मैं। धीरे-धीरे चलते-चलते हम लोग एक रेस्तराँ में पहुंचे। मैं खाने का आर्डर
करने ही वाला था तभी किसी ने मुझे पीछे से आवाज लगाई, मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो
जय खड़ा था आते ही उसने हाथ मिलाया और बोला – इसलिए मैं इतना बोल ही पाया था तभी
जय बीच में ही बात काटते
हुए बोल पड़ा,ओ हो तो यह बात
है भाभी जी घर पर नहीं है, तो खूब मस्ती हो
रहा है आने दो भाभी जी को सारी पोल खोलता हूं। इतना बोल कर जय हंसने लगा।
मैं भी
हंसते हुए बोला - चलो बैठो अभी आर्डर करने ही वाला था मैं। जय कुर्सी पर बैठ गया
मैंने श्रीधर से जय का परिचय कराया यह मेरे बचपन का दोस्त श्रीधर है। जय ने पूछा
पंडित जी है। मैंने कहा -" हाँ, पूरा नाम श्रीधर पाठक है," जय ने झुककर पैर छूकर
प्रणाम किया फिर मैंने आर्डर किया खाना टेबुल पर लग गया हम तीनों ने खाना खाया। जय
और मैं खाना खाते-खाते अपने काम की बातें भी कर रहे थे। खाना खाने के बाद बिल जय
ने ही भरा। मैंने जय से कहा- "कल बैंक आ जाओ आगे की बात वही करते हैं।"
ओके जय ने
कहा।
जय ने अपनी गाड़ी
की ओर इशारा करते हुए बोला -"चलो आप लोगों को घर छोड़ देता हूं मैं। " मैंने कहा- "नहीं हम लोग टहलते हुए चले जाएंगे
पास ही में घर है मेरा।"
ओके जय ने कहा और
हाथ हिलाते हुए गुड नाईट बोला। गाड़ी स्टार्ट की और चला गया।
मैं और श्रीधर सड़क किनारे धीरे-धीरे चलने लगे।
श्रीधर ने पूछा- जय तुम्हारे साथ काम करता है।
मैंने कहा -नहीं यह यहाँ का बड़ा बिजनेसमैन है। लोन
के सिलसिले में बात कर रहा था, यूं ही बातें करते- करते हम घर पहुंच गए। रात बहुत
हो गई थी हम दोनों सो गये,
श्रीधर बिस्तर पर
लेटते ही गहरी नींद में सो गया। लेकिन मेरी आँखों में नींद नहीं थी। कहते हैं
तकलीफ बता देने से तकलीफ कम हो जाती है। श्रीधर ने तो अपनी तकलीफ मुझे बता दी।
लेकिन मैं श्रीधर की तकलीफ कैसे कम करूँ ये समझ नहीं रहा था।श्रीधर और मेरा
जन्म एक ही दिन हुआ था ,हम दोनों के घर भी आस-पास थे, लेकिन कहते है न
जन्म एक ही दिन होने से किस्मत भी एक सी हो ऐसा नहीं होता ,श्रीधर अपने पिता
की सबसे बड़ी संतान और मै अपने पिता की सबसे छोटी संतान , दो बहन और एक भाई
से बड़ा श्रीधर ,एक भाई और दो बहनों से छोटा मैं ,श्रीधर के कंधो पर जिम्मेदारियों का बोझ
और मैं बिल्कुल गैरजिम्मेदार, हमदोनो बहर बहुत अच्छे दोस्त थे ,लेकिन हमारे घरो
में हमारी परिस्थिति बिल्कुल उल्टी थी , श्रीधर अपने
हिस्से की मिठाई भी अपने छोटे भाई बहनों में बाँट देता , और मै अपनी बहनों
की मिठाई भी छीन खा जाता था, श्रीधर अपने भाई बहनों को नसीहते देता था
और मैं अपने बड़े भाई बहनों की नसीहते सुनता था , गलती करने पर
श्रीधर अपने छोटे भाई बहनों को डांटता था ,और मै बिना गलती के भी अपने बड़े भाई
बहनों की डांट खाता था ,जिम्मेदारियां और घर में सबसे बड़ा होना भारी पड़ा श्रीधर को, सब ठीक चल रहा था
तभी अचानक बड़े पंडित बीमार पड़ गये, उन्हें लकवा मार दिया, और उन्होंने श्रीधर का
विवाह कर दिया ,घर की जिम्मेदारी ,छोटी बहनों के विवाह की जिम्मेदारी ,छोटे भाई के
पढ़ाई की जिम्मेदारी सभी को हँसते –हँसते अपने कंधो पर उठा लिया श्रीधर ने ,और हमने
भी कभी श्रीधर को अकेला नहीं छोड़ा,अपनी दोस्ती का फर्ज बखूबी निभाया,कंधे से कन्धा
मिला कर खड़े रहे, छोटी सी उमर में बहुत
सी कठिनाइयों का सामना किया श्रीधर ने , लेकिन श्रीधर को कभी उदास नहीं देखा ,हमेशा
हँसते ही रहता था श्रीधर ,और आज श्रीधर को रोते देख के मेरा कलेजा मुहं को आ गया, रह-रह कर गायत्री भाभी और बिटिया का ख्याल आ
रहा था।
श्रीधर की बिटिया
– गायत्री भाभी ने उसे जन्म
नहीं दिया था, और ना ही श्रीधर
उसका पिता।
श्रीधर अपने
भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। और बड़े पंडित जी बीमार रहते थे। उन्हें लकवा मार गया
था। जिस कारण उन्होंने श्रीधर का विवाह जल्दी ही कर दिया। विवाह के पांच साल बीत
गए थे। अभी तक श्रीधर को कोई बच्चा नहीं हुआ था लेकिन गायत्री भाभी और श्रीधर को
इस बात के लिए कभी उदास नहीं देखा मैंने। लेकिन छोटी बहनों की शादी हो गई। उनके
बच्चे हो गए। छोटे भाई गिरधर की शादी हो गयी और जब गिरधर की पत्नी पेट हुई तब
गायत्री भाभी को अपने मां ना बनने की कमी खलने लगी। हालांकि गांव की औरतें आपस में
बातें करती थी लेकिन श्रीधर को इन बातों
से कोई फर्क नहीं पड़ता था। जब भी कोई श्रीधर से इस बारे में बात करता तो श्रीधर
बड़े बेपरवाह अंदाज में बोलता -जब ऊपर वाले की इच्छा होगी। ऊपर वाले की मर्जी के
बिना किसी को कुछ नहीं मिलता। जब उनकी मर्जी होगी तब संतान भी दे देंगे। श्रीधर
गायत्री भाभी से बहुत प्रेम करता था। उनकी कोई संतान नहीं है इसका उन दोनों के
प्रेम पर कोई असर नहीं था। लेकिन कहते हैं ना औरत ही औरत की दुश्मन होती है बच्चा
ना होने का कारण चाहे जो भी हो लेकिन दोष हमेशा औरतों को ही दिया जाता है। और
तरह-तरह के नाम भी जैसे- बाँझ और उपाय भी औरतें ही करती है। कोई कहता रविवार का
उपवास कीजिए,कोई सोमवार का
उपवास करने को कहता है। और कोई कहता काली गाय को रोटी खिलाओ। गायत्री भाभी ने भी
यह सारे उपाय करना शुरू कर दिया था। सप्ताह के सातों दिन बारी-बारी से उपवास रख
लिया उन्होंने। संतान प्राप्ति के कई पूजा-पाठ सब कर लिया फिर भी संतान प्राप्त
नहीं हुए। लेकिन गायत्री भाभी कमजोर जरूर हो गई, बीमार रहने लगी। इस बार जब मैं गांव गया।
तब श्रीधर ने
मुझसे कहा- यार संजीव समझा अपनी भाभी को विश्वास और अंधविश्वास में फर्क होता है।
भगवान पर विश्वास रखें बिना वजह अपने शरीर को कष्ट देने से संतान की प्राप्ति नहीं
होती। जब ऊपर वाले की इच्छा होगी हमें संतान भी दे देगा।
मैंने श्रीधर से
कहा- देख श्रीधर समझाने की जरूरत भाभी जी को नहीं तुम्हें हैं। श्रीधर घूर कर मेरी
ओर देखा मैं दोबारा बोला - संतान की इच्छा किसे नहीं होती। गायत्री भाभी अगर बच्चे
की इच्छा करती है ,तो इसमें गलत क्या है ,
श्रीधर बोला- अरे
यार तू तो ऐसे बोल रहा है, जैसे मैं गायत्री को बच्चा नहीं दे रहा हूं।
मेरी भी इच्छा है कि मैं पिता बनूँ। मेरी भी अपनी संतान हो लेकिन यह सब मेरे हाथ
में थोड़े हैं। इसमें मैं क्या कर सकता हूं। तू ही बोल।
यही तो मैं बोल रहा हूं। गायत्री भाभी के हाथ
में थोड़े ही है। तू नहीं बोलता है लेकिन ताने तो गायत्री भाभी को सुनने पड़ते हैं।
तू तो घर से बाहर रहता है। लेकिन गायत्री भाभी को तो उन्हीं लोगों के बीच रहना
पड़ता है ना। श्रीधर मेरी तरफ आश्चर्य से देख रहा था।
मैंने कहा – ऐसे क्या देख है मुझे।
तेरे घर गया था। तू नहीं था घर पर। बड़े पंडित जी ने बताया सब कुछ। घर आकर मां से
पूछा मैंने। माँ ने भी वही सब कुछ बताया। गायत्री भाभी तुझसे कुछ नहीं बोलती है।
लेकिन घर के अंदर बहुत कुछ चल रहा है। श्रीधर खामोशी से सब कुछ सुन रहा था। मैंने
श्रीधर को समझाया देख श्रीधर आजकल साइंस बहुत डेवलप कर गया है। हर चीज का इलाज
संभव है। कमी किस में है इससे फर्क नहीं पड़ता है यार।
बहुत देर तक चुप बैठा रहा श्रीधर। फिर बोला कब चलना है।
मैंने श्रीधर को खुशी से गले लगा लिया और बोला यह हुई ना बात । मैं, श्रीधर और गायत्री भाभी को अपने बाइक पर बैठाकर शहर
में एक लेडीज डॉक्टर के पास ले गया। डॉक्टर ने कुछ टेस्ट लिखा। श्रीधर और गायत्री
भाभी का टेस्ट कराने के बाद हम तीनों वापस चले आए, क्योंकि टेस्ट रिपोर्ट 2 दिन बाद देने के लिए बोला। 2
दिन बाद मैं, श्रीधर
और छुट्टन रिपोर्ट लेने पहुंचे। गायत्री भाभी नहीं गई थी। रिपोर्ट ले कर हम डॉक्टर
साहिबा के पास पहुंचे। रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर साहिबा बोली - सारा रिपोर्ट
नॉर्मल है। आप दोनों में कोई प्रॉब्लम नहीं है। फिर भी अगर आप लोग इस डॉक्टर से
मिल सकते हैं। प्रिस्क्रिप्शन पर एक डॉक्टर का नाम लिख दिया। इस डॉक्टर के इलाज से
बहुत सारे लोगों को संतान प्राप्ति हुई है। अंतिम में 1 लाइन कहा डॉक्टर साहिबा ने
आगे जब ईश्वर की इच्छा होगी। हम तीनों बाहर निकल आए। अब मुझे पता था श्रीधर
हमारी खिंचाई करने वाला था। मैं और छुट्टन केवल श्रीधर की बातें सुन रहे थे। श्रीधर बोले जा रहा था। कहा था ना डॉक्टर भी इंसान होते हैं भगवान नहीं। भगवान की इच्छा के बिना किसी को कुछ नहीं मिलता। जब ईश्वर की इच्छा होगी दे देगा संतान भी। श्रीधर कि इसी बकबक में मैं बाइक में पेट्रोल डलवाना भूल गया। शायद भगवान की कोई इच्छा थी जरूर। अंधेरा होने वाला था, हमें बाइक में पेट्रोल डलवाने के लिए पीछे लौटना पड़ा। हम लोग गाड़ी को धकेलते हुए पैदल ही धीरे-धीरे चलते हुए पेट्रोल पंप की ओर जाने लगे।
मैं बोला इस रास्ते में एक नाला पड़ता है ना।
छुट्टन बोला - हां लेकिन अब पुलिया बन गई है। यह देखिए पहुंच गए पुलिया पर। पुलिया के नीचे आसपास झाड़ उगे हुए थ। चारों तरफ सुनसान था। हम तीनों धीरे-धीरे चलते हुए पुलिया को पार कर रहे थे। तभी किसी नवजात शिशु के रोने की आवाज सुनाई दी। लगभग अंधेरा हो चुका था। आसपास सन्नाटा था हम तीनों चारों तरफ देखने लगे कोई नहीं था आसपास। लेकिन बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दे रही थी। हमने पुलिया के नीचे झांक कर देखा। आवाज वहीं से आ रही थी। हम पुलिया से नीचे उतर कर नाले के पास आ गए। वहां का दृश्य देखकर हम तीनों सकते में आ गए। वहां एक नवजात शिशु एक कपड़े में लिपटा हुआ पड़ा था। ऐसा लग रहा था जैसे कोई उस बच्चे को फेंक कर गया है। छुट्टन ने झट से उस बच्चे को गोद में उठा लिया। गोद में उठा कर बोला लड़की है संजीव भैया। बच्ची रोए जा रही थी हम तीनों को कुछ समझ में नहीं आ रहा था हम क्या करें।
मैं बोला -पुलिस थाने चलो!
श्रीधर बोला - पुलिस थाने, पुलिस क्या करेगी?
मैंने कहा - अब जो भी करेगी पुलिस ही करेगी। ऐसे भी पुलिस को इन्फॉर्म करना ही पड़ेगा।
बच्ची को लेकर हम तीनों थाने पहुंचे। थाने पहुंचकर थानेदार साहब को सारी बात बताई। थानेदार साहब बच्ची को देखने लगे। बच्ची रो-रोकर पूरा थाना अपने सर पर उठाए हुई थी।
थानेदार साहब बोले - लगता है बच्ची को भूख लगी है। थानेदार साहब बाहर निकले, जब लौटे तब उनके साथ एक औरत थी। वह हाथ में कटोरी में दूध लिए हुए थी। वह छुट्टन के गोद से बच्ची को ले लेती है। और उसे चम्मच से दूध पिलाने लगती है। दो ही चम्मच दूध में बच्चे का पेट भर गया। बच्ची चुप हो गई। बच्ची उस औरत के गोद में ही सो गई। थानेदार साहब बोले रात हो गई है। अब रात में कुछ नहीं हो सकता। इस बच्ची को कोई औरत ही संभाल सकती है। इतना बोल कर थानेदार साहब उस औरत की ओर देखने लगे। ओ औरत एक फूल बेचने वाली थी। थाने के बगल में एक मंदिर था वो वही फूल बेचती थी।
वह हाथ जोड़कर बोली- नहीं नहीं साहब, मेरे तो खुद के चार बच्चे हैं। फूल बेचकर बड़ी मुश्किल से गुजारा होता है। उस पर से यह लड़की है। इतना बोल कर वह चुप हो गई। थानेदार साहब सोच में पड़ गए।
मैं बोला -क्या सोच रहे हैं थानेदार साहब,
थानेदार साहब ने पूछा- आपकी शादी हो गई है?
मैं बोला- नहीं, लेकिन मेरी शादी से इस बच्ची का क्या लेना देना।
थानेदार साहब ने छुट्टन से पूछा- तुम्हारी शादी हो गई है?
छुट्टन बोला- हां
थानेदार साहब बोले- चलो तुम इस बच्ची को ले जाओ।
छुट्टन बोला- नहीं मैं इस बच्ची को नहीं ले जा सकता।
थानेदार साहब बोले- क्यों?
इस बार मैं बोला- क्योंकि इसके पास भी तीन बच्चे पहले से ही हैं।
थानेदार साहब चौक कर बोले- 3 बच्चे!!!!! कहां से?
मैं बोला- कहां से, क्या मतलब। पैदा किए हैं इसने। अगर मैंने इसे फैमिली प्लानिंग नहीं समझाया होता तो अब तक क्रिकेट टीम तैयार हो गया होता। इतना सुनकर सभी लोग हंसने लगे।
इस बार मैंने थानेदार साहब से पूछा - आपकी शादी हो गई है?
थानेदार साहब बोले- हां।
मैं झट से बोला- तो आप क्यों नहीं ले जाते इस बच्ची को।
मेरी बात सुनकर थानेदार साहब हंसने लगे। हंसते हुए बोले - आप लोग गलत समझ रहे हैं सर। आप लोग यहां बैठिए मैं समझाता हूं। मेरी शादी हो गई है लेकिन मेरी पत्नी यहां नहीं है। कारण मैं यहां अभी-अभी आया हूं और नया हूं। आसपास किसी को नहीं जानता। यह न्यूबॉर्न चाइल्ड है, न्यूबॉर्न का मतलब समझते हैं आप।
मैंने कहा- हां समझते हैं अभी-अभी जन्म ली हुई।
थानेदार साहब बोले- यही समझा रहा हूं मैं आप लोगों को। इस बच्ची को एक मां की जरूरत है। एक औरत ही इस वक्त इस बच्ची को संभाल सकती है। केवल कुछ दिनों की बात है।
मैं बोला- कुछ दिनों के बात है मतलब।
थानेदार साहब बोले- मैं आसपास के थाने में अपने जान पहचान वालों से पूछ कर देखता हूं। शायद कोई इसे गोद ले ले।
गोद ले ले!!! श्रीधर बोला- तो आप इसके मां-बाप का पता नहीं लगाएंगे।
थानेदार साहब बोले- पता लगाएंगे पंडित जी सुबह जाकर देखता हूं मैं। लेकिन इससे क्या होगा। जो लोग इसे जन्म लेते ही फेंक कर चले गए, उन्हें ढूंढ कर अगर मैं इसे वापस दे भी देता हूं, तो वह लोग इस से छुटकारा पाने का कोई ना कोई रास्ता ढूंढ लेंगे। हो सकता है इसे जान से ही मार डाले। कुछ लोग होते हैं जो मां बाप नहीं बन सकते। ऐसे लोग इन बच्चों को गोद ले लेते हैं। अगर कोई ऐसा जोड़ा मिल जाए जो इस बच्ची को गोद ले ले, तो इस बच्चे का भविष्य बन जाएगा। एक अच्छी लाइफ मिल जाएगी।
श्रीधर ने थानेदार साहब से पूछा- अगर कोई इसे गोद नहीं लेगा इस हालत में इस बच्ची का क्या होगा? थानेदार साहब बोले तब एक ही ऑप्शन बच जाएगा। इस बच्ची को किसी अनाथ आश्रम भेज दूंगा। बस दो-चार दिनों की बात है।अगर कोई मिल जाता है तो अच्छी बात है। नहीं तो इसे अनाथ आश्रम में भेज दूंगा। श्रीधर उठा और उस औरत के गोद से उस बच्चे को ले लेता है और बोलता है चलिए थानेदार साहब मैं इसे कुछ दिनों के लिए ले जाता हूं।
मैंने उस औरत से कहा- थोड़ा और दूध पिला दीजिए नहीं तो रो-रोकर पूरा रास्ता अपने सर पर उठा लेगी। हम लोग चलने लगे तभी पीछे से थानेदार साहब ने कहा -रुकिए,
हम रुक गए। थानेदार साहब सामने आकर कुछ पैसे हमें देते हुए बोले- जाते वक्त इसे किसी बच्चे के डॉक्टर को दिखा दीजिये गा। कुछ दवाओं की जरूरत पड़ सकती है।
मैंने कहा- पैसे हैं हमारे पास लेकिन अगर डॉक्टर इसकी मां के बारे में पूछेगा तब हम क्या करेंगे।
थानेदार साहब पॉकेट से मोबाइल निकाल कर अपना नंबर देते हुए बोलते हैं हमसे बात करा दीजिएगा।
हम तीनों बच्चे को डॉक्टर से दिखाते हुए अपने गांव लौट आए। गांव लौटते-लौटते काफी रात हो गई थी। सुबह-सुबह उठकर मैं श्रीधर के घर पहुंचा। मैंने देखा काफी भीड़ लगी हुई थी। छुट्टन की माताजी भी आई हुई थी। मैं छुट्टन को एक कोने में ले जाकर पूछा- यह सब क्या है छुट्टन।
छुट्टन बोला - सभी लोग उस बच्ची को देखने आए हैं।
मैंने पूछा-
श्रीधर पंडित हिंदी कहानी
https://www.mystoriess.com/2022/11/shridhar-pandit.html
पुलिया पर फेंकी हुई मिली है, इसलिए छुट्टन बोला।
मैं श्रीधर के पास गया। वहां बड़े पंडित जी श्रीधर को डांट रहे थे।
बड़े पंडित जी- पागल क्यों उठा लाया इसको पता नहीं कौन है, किस कुल खानदान की है, किस जात की है, उठा लाया इसको घर में। मैं चुप सुन रहा था। श्रीधर मैं और छुट्टन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। यह बात गांव में ही नहीं आसपास के इलाके में भी फैल गई थी। सभी लोग उस बच्ची को देखने आ रहे थे। मानो वह बच्ची नहीं कोई अजूबा हो। तीन-चार दिन हो गए। मैंने थानेदार साहब को फोन कर पूछा उस बच्ची का क्या करना है।
थानेदार साहब बोले- थोड़े दिन और रुक जाइए मैं इंतजाम में लगा हूं। कुछ होता है तब आपको फोन करता हूं। ऐसे ही एक महीना गुजर गया। तभी मुझे एक दिन थानेदार साहब का फोन आया।
थानेदार साहब बोले- हेलो संजीव जी मेरा एक कलिंग है। उसकी शादी को 20 साल हो गए हैं। उसकी कोई संतान नहीं है। उनकी पत्नी मां नहीं बन सकती। इसलिए उस बच्ची को गोद लेना चाहते हैं। मैं उनको लेकर आपके गांव आ रहा हूं। मैं मन ही मन बहुत खुश हुआ। चलो उस बच्ची को एक अच्छा घर मिल गया। मैं थानेदार साहब और उनके दोस्त को लेकर अपने गांव पहुंचा। श्रीधर मुझे गांव के बाहर ही मिल गया।
मैंने श्रीधर को थानेदार साहब और उनके दोस्त से मिलवाया और सारी बात बताई। यह सुनकर श्रीधर उदास हो गया था। थानेदार साहब और उनके दोस्त को मैंने अपने घर ले गया, अपनी मां और पिताजी से मिलवाया। पिताजी उन्हें चाय नाश्ता कराने लगे। मैंने श्रीधर से पूछा- क्या बात है यार तू उदास क्यों हो गया। श्रीधर कुछ बोला नहीं केवल मेरा हाथ पकड़े हुए अपने घर ले आया। मैं श्रीधर के कमरे में सोफे पर बैठ गया। गायत्री भाभी उस बच्ची को तेल मालिश कर रही थी। मैंने देखा पूरा कमरा बच्ची के सामान से भरा हुआ है। बच्चे की तेल, बच्चे की साबुन, बच्चे का कपड़ा, गायत्री भाभी बच्ची को मालिश करने के बाद कमरे में बेड पर लिटा कर हंसते हुए बोली- देखते रहिएगा देवर जी कहीं गिर ना जाए। मैंने भी हंसते हुए कहा लाइए मेरे गोद में दे दीजिए। गायत्री भाभी बोली-नहीं नहीं देवर जी अभी-अभी तेल मालिश किया है। आपके कपड़ों में तेल लग जाएगा। गर्म पानी करने के लिए रखा है मैंने, पहले नहला दूं फिर गोद में देती हूं। इतना बोल कर भाभी चली गई। मैंने देखा पिछली बार गायत्री भाभी बहुत उदास और कमजोर दिख रही थी, और अभी गायत्री भाभी खिली-खिली और बहुत खुश दिखाई दे रही थी। अभी मुझे समझ आ रहा था कि श्रीधर मुझे अपने यहां क्यों लेकर आया और मां की कही बात भी दिमाग में घूमने लगी। गिरधर की पत्नी ने अपने बच्चे को गायत्री भाभी को छूने नहीं दिया था, कारण गायत्री भाभी मां नहीं बन सकती थी। उनका छाया भी उसके बच्चे के लिए ठीक नहीं है। मेरा ध्यान टूटा जब गायत्री भाभी बच्ची को नहला कर ले आई। मैं केवल भाभी को ही देख रहा था, वह बहुत प्यार से बच्ची को पाउडर लगा रही थी, कपड़े पहनाया, काजल लगाई और मेरे गोद में हंसते हुए देते हुए बोली लीजिए पकड़िए।
बच्ची भी गायत्री भाभी की तरह बहुत सुंदर लग रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वह उनकी सगी बेटी हो। मैं चुपचाप बच्ची को गोद में लेकर बाहर चला आया। मैंने श्रीधर से कहा -फिर से सोच ले बहुत समय है तुम लोगों के पास बच्चे के लिए। और भी डॉक्टर हैं जिनसे हम मिल सकते है ।
श्रीधर बोला गायत्री बहुत खुश है यार। मैं गायत्री की गोद से इस बच्ची को नहीं छीन सकता। तू कुछ भी करके उन लोगों को यहां से चलता कर. इस बच्ची को अब मैं ही पा लूंगा। घर आकर थानेदार साहब को अकेले में बुलाकर सारी बात बताई। यह भी बताया कि श्रीधर और गायत्री भाभी की अपनी कोई संतान नहीं है। हम लोग डॉक्टर से संतान के लिए ही मिलने गए थे। तभी यह बच्ची हमें मिली।
थानेदार साहब ने पूछा - डॉक्टर साहब क्या बोलें?
थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैं कुछ सोचते हुए बोला- डॉक्टर साहब बोले जब भगवान की इच्छा होगी।
थानेदार साहब हंसने लगे। थानेदार साहब बोले- संजीव भाई अभी तो पंडित जी जवान है, बहुत समय है इनके पास अगर इनकी अपनी कोई संतान हो गई तब इन लोगों को यह बच्ची बोझ लगने लगेगी। थानेदार साहब की बात सुनकर में हंसने लगा।
मैं बोला - देखिए थानेदार साहब यह बच्ची तो बोझ बनकर ही आई है। जन्म लेते ही मां-बाप के लिए बोझ बन गई। फेंक दिया नाले में। जब से यह बच्ची यहां आई है। कई लोग इसे देखने के लिए आए, पर अपनाना कोई नहीं चाहता। सभी लोग इसे ऐसे देखने आते हैं जैसे ये कोई अजूबा हो। सभी लोगों को इसके लिए सहानुभूति तो है परंतु इसे कोई अपनाना नहीं चाहता। इधर-उधर की बातें तो कर रहे हैं लोग। लेकिन इसे रखना कोई नहीं चाहता । थोड़ी देर चुप रहने के बाद मैं दोबारा बोलना शुरू किया -
कहा श्रीधर का तो पता नहीं थानेदार साहब क्यों की श्रीधर गायत्री भाभी से बहुत प्रेम करता है। लेकिन मैं गायत्री भाभी से मिल कर आ रहा हुँ। गायत्री भाभी इस बच्ची से बहुत प्रेम करती हैं। गायत्री भाभी ने उस बच्ची को ऐसे अपने सीने से लगा रखा है मानो उन्होंने इस बच्ची को जन्म दिया है। इस बच्ची को उनसे दूर करना मतलब एक मां को अपनी बच्ची से दूर करने जैसा पाप होगा।
श्रीधर भी वहां आ गया था। वह मेरी और थानेदार साहब की बातें सुन रहा था। श्रीधर बोला थानेदार साहब मेरी बात सुनिए मुझे संतान होगी या नहीं यह तो ऊपर वाले की मर्जी है। लेकिन दूसरी संतान होने पर पहली संतान बोझ हो जाती है क्या? पहली संतान के लिए प्रेम कम हो जाता है। राजा जनक जी को सीता जी खेत में मिली थी, हल चलाते वक्त। उसके बाद उनकी तीन पुत्री और हुई तो क्या जनक जी का सीता जी के प्रति प्रेम कम हो गया था। नहीं थानेदार साहब अपनी ही संतान है उसके लिए यदि माँ बाप के मन में प्रेम उत्पन्न नहीं हुआ,तो वह संतान मां-बाप के लिए बोझ हो जाता है। ऐसा आपने ही बताया था। मेरी पत्नी के मन में मातृत्व का भाव इस बच्ची ने जगाया। इस बच्ची के लिए हमारा प्रेम कभी कम नहीं होगा। इसका विश्वास मैं आपको दिलाता हूं। इस की परवरिश में कोई कमी नहीं रखूंगा, इसका भी विश्वास मैं आपको दिलाता हूं।
थानेदार साहब बोले - कल थाने चले आइएगा कागज पर साइन करने होंगे केवल फॉर्मेलिटी है। थानेदार साहब अपने दोस्त के साथ चले गए।
दूसरे दिन मैं छुट्टन श्रीधर और गायत्री भाभी शहर थाने पहुंच गए। कुछ कागजों पर साइन करने के बाद वह बच्ची कानूनी तौर पर श्रीधर और गायत्री भाभी की बेटी हो गई। क्योंकि श्रीधर की भगवान में विशेष आस्था थी इसलिए हम सभी ने मिलकर उसका नाम आस्था रख दिया।
पुरानी बातें मेरी दिमाग में उथल-पुथल मचा रही थी। मैंने मोबाइल उठाकर उसमें टाइम देखा सुबह के 4:00 बज गए थे। करवट बदल कर देखा श्रीधर गहरी नींद में था अकसर वह अभी तक उठ जाया करता था। मैं उठा और छत पर चला गया। मैं रात भर सो नहीं पाया था इसलिए मैं थोड़ी देर खुली हवा में सांस लेने के लिए छत पर टहलने लगा
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ReplyDeleteTHANKS SIR
DeleteVery awesome story 😊
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ReplyDeleteकहानी का मूल भाव यह है कि :::
ReplyDeleteश्रीधर पंडित की कहानी बहुत गहराई से सामाजिक और व्यक्तिगत समस्याओं को उजागर करती है। यह एक ग्रामीण जीवन की तस्वीर पेश करती है, जहां व्यक्तिगत संघर्ष और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच लोग अपनी पहचान और सम्मान की तलाश में होते हैं। श्रीधर का संघर्ष और उसकी कठिनाइयां, उसकी बेटी के स्वास्थ्य की चिंता और परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ इस कहानी को एक संवेदनशील और यथार्थवादी स्वरूप प्रदान करते हैं।
इस कहानी में श्रीधर की पीड़ा, उसकी ईमानदारी और उसके रिश्ते की जटिलताओं को बहुत सटीकता से दर्शाया गया है। थानेदार साहब की भूमिका और कहानी में अन्य पात्रों का योगदान भी कहानी की वास्तविकता और सामाजिक परिप्रेक्ष्य को और स्पष्ट करता है। यह कहानी एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि सामाजिक दबावों और व्यक्तिगत संघर्षों के बावजूद, मानवता और संवेदनशीलता को हमेशा बनाए रखना चाहिए।
Ji bahut bahut abhar apka khahi padh kar itni sunder samiksha dene ke liye
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