सफ़र


 

जीवन के कुछ खाश पल होते हैं जिसे भूलना बहुत मुस्क्किल होता है, यूँ देखा जाये तो जिंदगी के हर पल खाश होते हैं लेकिन उन खाश पलो में भी कुछ खाश पल होते है दो दिल को छू जाते है, यूँ तो ये एक छोटा सा वाक्या है, लेकिन शायद वो मेरे दिल को छू गयी, इसलिए सालो बाद भी ओ वाक्या मुझे याद है, तब मैं क्लास 8 में पढ़ती थीं, हम सारे परिवार किसी रिश्तेदार के घर शादी में गये थे, मेरे स्कूल के एग्जाम शुरू होने वाले थे, तो मैं अकेली पापा के साथ घर वापस आ रही थी, ये पहला वक्त था जब मैं अकेली पापा के साथ सफ़र कर रहीं थी, अक्सर जब भी मैं कहीं बहर जाती तो मेरे साथ मेरी मम्मी साथ होती या मेरे भाई बहन साथ होते, ये पहला वक्त था जब मैं अकेली पापा के साथ सफ़र कर रहीं थीं, एक और इतेफाक था इस सफ़र में, मैं पहली बार ट्रेन से सफ़र कर रही थीं इससे पहले मै कभी ट्रेन  पर नहीं बैठीं थीं, गर्मी का समय था, ट्रेन में बहुत भीड़ थी, शादी सीजन भी था, मैं पापा के पीछे-पीछे  चल रही थी, पापा मुझसे बिच-बिच में बातें भी कर रहे थे, ट्रेन आ कर रुकी मैं पापा के साथ ट्रेन पर चढ़ गयीं, ट्रेन में बहुत भीड़ थीं, हमें शिट नहीं मिला, पापा इधर-उधर देखने लगे, एक शीट पर चार लोग बैठे थे, पापा ने उनसे रिक्वेस्ट किया की मुझे थोड़ी जगह दें दे, क्यों की मैं बच्ची हूँ, उनमें से एक मोटी औरत ने बहुत ही रूडली जवाब दिया, ये शीट चार लोगो की हैं भईया, कहाँ बैठा लू इसे,मेरे पापा थोड़े गुस्से वाले हैं, उनके चेहरे पर गुस्से वाले भाव आ जा रहे थे, मैंने चारो तरफ सर घुमा कर देखा, बहुत भीड़ थी, सभी शीट पर पांच लोग से कम नहीं बैठे थें, लेकिन सभी लोग चुप थे, मैं एक शीट के सहारे से खाड़ी हो गयीं और बोली- कोई बात नहीं पापा एक घंटे में हम लोग पहुँच जायेंगे बस, इतना सुन कर पापा ट्रेन के गेट पर जा कर खड़े हो गये, लेकिन मेरा चेहरा लाल हो रहा था मैं बहुत नर्वेस महसूस कर रही थीं, तभी पीछे से मुझे कोई आवाज लगता हैं मैं पीछे मुड कर देखती हूँ, काले रंग के बुर्के में एक पतली दुबली सी औरत थीं, उसने आवाज लगा कर मुझे अपने पास बुलायाँ, और पास में बैठनें का इशारा किया, उनके बगल में लगभग पंद्रह-सोलह साल का एक लड़का बैठा था, जो उठ कर ट्रेन के गेट पर और लोगो के साथ खड़ा हो गया, मैं वहाँ बैठ जाती हूँ, उसने कहा- बैठो बेटा, यहाँ सभी को कहीं न कहीं जाना हैं, रुकना किसी को नहीं हैं, पापा बार-बार मुड कर मुझे देख रहे थे, मुझे वहाँ बैठे देख कर इशारे से पूछा- सब ठीक हैं, मैंने हाँ में सर हिलाया, उनके चेहरे पर एक मुस्कुराहट आ गयी थीं, वे गेट से बाहर  देखने लगे, मैं वहाँ बैठ के सहज महसूस कर रही थीं, मैंने पूछा ओ लड़का कौन हैं आंटी, उस औरत ने हंस कर कहा- मेरा लड़का हैं, फिर मैं चुप हो गयी थोड़ी देर में मेरा स्टेसन आ गया मैं पापा के साथ स्टेसन पर उतर गयी उन लोगो को आगे जाना था, मैंने पीछे मुड कर देखा ओ लड़का अपने शीट पर वापस आ कर बैठ गया, ट्रेन धीरे धीरे चलने लगी, मैंने देखा ओ औरत और ओ लड़का दोनों हाथ हिला कर बाय कर रहे थे, मैं और मेरे पापा दोनों हाथ हिला कर उन्हें बाय करने लगे, उन माँ बेटे के चेहरे पर भी हंसी थीं और हमारे चेहरे भी, ट्रेन आगे बढ़ गयी और हम थोड़ी देर स्टेसन पर रुक कर अपने घर की और चल दिए, इस एक वाकये ने मेरे इस पल को खुशनुमा और यादगार बना दिया, और जीवन का ओ खाश पल बना दिया जिसे आज तक नहीं भूलीं मैं, 

                                     अल्पना सिंह

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