नील-मणि (पार्ट-4)
पंडित शिवानंद आचार्य गुरुकुल पहुँचे। वहाँ पहुंच कर उन्होंने देखा वहाँ की राजमाता आयी हुई थी। उनके साथ राजकुमार नील और राजकुमारी नीलाक्षी भी आयी हुई थी। राजमाता ने ब्राह्मदत स्वामी से हाथ जोड़ कर अनुरोध किया की राजकुमार नील के साथ राजकुमारी नीलाक्षी को भी गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति दी जाये। पहले लड़कियों के गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने पर रोक थी। इसीलिए ब्राह्मदत स्वामी दुविधा में थे। इसी कारण उन्होंने पंडित शिवानंद को विचार विमर्श के लिए बुलवाया था। चुकी वह उस राज्य की राजमाता थी इसलिए वह सीधे-सीधे ना नहीं बोल पा रहे थे। शिवानंद आचार्य और ब्राह्मदत स्वामी ने आपस में विचार विमर्श कर कुछ शर्तों के साथ राजकुमारी नीलाक्षी को गुरुकुल में रह कर शिक्षा ग्रहण करने की आज्ञा दे दी। वह कुछ शर्तें ऐसे थी _ राजकुमारी नीलाक्षी गुरुकुल में गुरु माता के साथ रहेंगी। जैसे सारे विद्यार्थी आचार्य जी के कामों में सहायता करते है वैसे ही राजकुमारी नीलाक्षी गुरु माता की सहायता रसोई में भोजन तैयार करने में करेंगी। राजमाता ने राजकुमारी नीलाक्षी को शिक्षा के महत्व को समझते हुए अच्छे से शिक्षा ग्रहण करने के लिए कहा, राजमाता राजकुमार नील और राजकुमारी नीलाक्षी को गुरुकुल में छोड़ कर चली गयी। पंडित शिवानंद आचार्य राजकुमार नील और राजकुमारी नीलाक्षी को देखते रह जाते है अद्भुत रूप और सौंदर्य था दोनों का। राजकुमार नील को देख कर शिवानन्द जी मन ही मन सोचते है। तो ये वह बालक है जिसके बारे में उस नाग नागिन के जोड़े बता रहे थें। साक्षात् शिव का बाल रूप है ये, माथे पर ये तीसरी आँखें मानो साक्षात् शिव बाल रूप में दर्शन देने आ गए हो। वे अपलक नील को देखते रह जाते है। नीलाक्षी देख रही थी शिवानंद आचार्य नील को देख कर मंद-मंद मुसकुरा रहे है। नीलाक्षी ने कहा – गुरु जी मैं भी यहां शिक्षा ग्रहण करने आयी हुँ आप केवल नील को ही क्यों देख रहे है?
शिवानंद आचार्य हँसते हुए बोलते है – मैं तुम दोनों को ही देख रहा हुँ पुत्री। ऐसा प्रतीत होता है मानो भगवान शिव पुरुष और प्रकृति दोनों ही रूप में एक साथ पृथ्वी पर प्रकट हो गए हो। ऐसा दिव्य और अलौकिक रूप है तुम दोनों भाई बहनों का। और बड़े प्यार से नीलाक्षी के सर पर हाथ फेरते है। और नीलाक्षी से बाते करते हुए गुरु माता के पास ले जाते है, नीलाक्षी को गुरु माता के पास छोड़ कर नील को अपने साथ ले कर चले जाते है। गुरुकुल में और भी कई देशों के राजकुमार शिक्षा ग्रहण करने आये हुए थे उन सभी से राजकुमार नील को मिलवाते है। वहाँ राजकुमार नील की दोस्ती तीन राजकुमार से हो जाती है। राजकुमार नील का स्वभाव बेहद सरल और सदा, सरल और निश्छल था। वह सभी से घुलमिल जाते। परन्तु राजकुमारी का स्वभाव राजकुमार नील के विपरीत था। बात-बात पर गुस्सा करना किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं करना। राजकुमारी का उदंड स्वभाव शिवानंद आचार्य को भी अचंभित कर दिया था। दोनों भाई-बहन के विपरीत स्वभाव का कारण उन्हें समझ नहीं आ रहा था। परन्तु राजमाता ने राजकुमारी नीलाक्षी को गुरुकुल के नियमों के अनुसार गुरुकुल में रह कर शिक्षा ग्रहण करें, इसका कारण उन्हें अवश्य समझ में आ गया था। गुरुकुल में सभी विद्यार्थियों को अनुशाशन तोड़ने पर उचित दंड दिया जाता था। परन्तु राजकुमारी नीलाक्षी को कोई दंड नहीं देती थी गुरु माता। अत्यंत स्नेह करती थी राजकुमारी से। उनकी हर गलती को छुपा लेती थी। आचार्य शिवानंद गुरु माता की इस बात को भाप लिए थे। वे नीलाक्षी पर कड़ी निगरानी रखने लगे। अन्य विद्यार्थियों की तरह पंडित शिवानंद आचार्य नीलाक्षी को गलती करने पर उचित दंड देने लगे। ये बात गुरु माता को अच्छी नहीं लगी। उन्होंने ने पंडित शिवानंद आचार्य से कहा – आचार्य जी आप राजकुमारी नीलाक्षी के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं करें। एक तो नीलक्षी लड़की है और उसपर ये एक राजकुमारी है। साधारण बच्चियों की तरह इन्हें काम करने की आदत नहीं है। पंडित शिवानंद आचार्य हँसते हुए बोले – गुरु माता ये एक राजकुमारी है इसी कारण तो हमारा उत्तरदायित्व और बढ़ जाता है। माते इसका उदंड स्वभाव राजकुमारी के लिए ही नहीं अपितु पूरे राज्य के लिए विनाशकारी है। यही कारण है गुरु माता मैं गुरु होने का कर्तव्य निभा रहा हुँ। गुरु माता बोली – लेकिन आचार्य जी नीलाक्षी अभी छोटी है।
तभी वहाँ ब्राह्मदत स्वामी आ जाते है। वे उन दोनों की बाते सुन रहे थे। वे बोलते है – छोटा तो नील भी है। दोनों एक ही माँ के संतान है, दोनों का पालन एक ही परिवेश में हुआ है। परन्तु आश्चर्य शिवानंद जी इन दोनों का स्वभाव एक दूसरे से कितना भिन्न है। पंडित शिवानंद आचार्य बोले – इस बच्ची को माता का दृष्टि दोष लग गया है। गुरु माँ बोली – अथार्त
पंडित शिवानंद आचार्य बोले – अथार्त माते, ये दोनों ही बच्चे साधारण बच्चे नहीं है, दोनों ही बच्चे शिव कृपा से प्राप्त फल है। इनकी माता ने पुत्र प्राप्ति के लिए भगवान शिव की तपस्या की उन्होंने भगवान शिव से प्रार्थना की, की भगवान भोले नाथ उन्हें एक पुत्र दे दे। ताकि वो इस राज्य को उसका उत्तराधिकारी दे सके। और जब इनकी माता गर्भ से थी तब उन्होंने नव महीने केवल पुत्र की कामना की। इस पुत्र से दो पल पहले इस पुत्री का जन्म हुआ। जिसकी अपेक्षा नहीं की थी रानी साहिबा ने, साधरन्त प्रसव के बाद कोई भी स्त्री प्रथम बार जब अपने शिशु को देखती है तो उसे अत्यंत प्रसन्नता होती है चाहे वो शिशु पुत्र हो या पुत्री । माँ के लिए दोनों ही अत्यंत प्रिय होते है। परन्तु रानी साहिबा को पुत्री के जन्म से कोई प्रसन्नता नहीं हुई। दो पल बाद जब पुत्र का जन्म हुआ। रानी साहिबा बहुत प्रसन्न हुई। दो पल बाद सब सामान्य हो गया। रानी साहिबा अपने दोनों बच्चों को देख कर बहुत खुश हुई। परन्तु उस दो पल की उपेक्षा ने इस कन्या के अंदर एक दोष को उत्पन्न कर दिया। गुरु माता उस दोष के कारण ये केवल अपना ही नहीं अपितु पूरे राज्य का विनाश कर देगी। इसलिए इसकी शक्तियों पर अंकुश लगाना अत्यंत आवश्यक है। गुरु माता बोली – गुरु जी इस दोष को पूर्णतः समाप्त नहीं किया जा सकता है?
पंडित शिवानंद आचार्य बोले – माते, यदि इसके पिता जीवित होते तो जन्म के कुछ पल बाद ही ये दोष समाप्त हो जाता। परन्तु इसका दुर्भाग्य इसके जन्म से पूर्व ही इसके पिता की मृत्यु हो गयी।
गुरु माता बोली – इसके दोष का इसके पिता से क्या सम्बन्ध है।
पंडित शिवानंद आचार्य बोले -इसके पिता का इसके दोष से कोई सम्बन्ध नहीं है माते। परन्तु ये सर्वथा सत्य है की किसी भी व्यक्ति का प्रथम गुरु उसके माता – पिता होते है। माता उचित अनुचित कार्य को प्रेम और स्नेह से समझाती है, और पिता किसी भी अनुचित कार्य पर दंड दे कर। माता स्नेह और ममता की मूरत होती है तो पिता कठोरता का आवरण ओढ़ कर उस बच्चे को ये समझाता है की हर अनुचित कार्य पर उसे दंड अवश्य मिलेगा। चाहे कोई भी हो, वो राजा ही क्यों ना हो। हे माते लड़कियाँ कोमल ह्रदय होती है माता के ज्यादा करीब होती है ज्यादातर बाते सरलता से समझ जाती है। परन्तु अपने इस दोष के कारण राजकुमारी नीलाक्षी अपनी माता की बाते समझ नहीं पाती। या यु कहे माते, रानी साहिबा इन्हें प्रेम और स्नेह से अपनी बात समझने में विफल हो जा रही है। और पिता की मृत्यु हो जाने के कारण इन बच्चों से उन्हें अत्यंत मोह हो गया है। जिसके कारण वे इन बच्चों के प्रति अपना व्यवहार कठोर नहीं कर पर रही है। और वे इनकी माता है, उन्हें अपने बच्चों के अंदर छुपी दिव्य शक्तियों का पूर्णतः आभास है। यही कारण है माते की इस बच्ची को भी राजमाता ने गुरुकुल में रखने के लिए कहा। और यही कारण है माता की मैं इस बच्ची के साथ कठोर व्यवहार करता हुँ। इस बच्ची को इस बात का एहसास दिलाना अत्यंत आवश्यक है की ये अपनी शक्तियों का उपयोग हमेशा दूसरों के भलाई के लिए करें। गलत कार्यों के परिणाम इसे अवश्य भुगतना पड़ेगा। इसे ये समझाना हमारा उत्तरदायित्व है।
इतना बोल कर पंडित शिवानंद आचार्य वहाँ से चले गए।
ऐसे ही नील और नीलाक्षी गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने लगे। आहिस्ता-आहिस्ता नीलाक्षी गुरुकुल के नियमों के अनुसार ढल गयी। गुरु माता और शिवानंद आचार्य नीलाक्षी के स्वभाव में आये इस बदलाव से अत्यंत प्रसन्न थे। परन्तु एक दिन सुबह-सुबह पंडित शिवानंद आचार्य जब गुरुकुल के द्वार पर पहुंचे तब उन्होंने देखा नीलाक्षी एक टीले के चारों ओर अग्नि का घेरा बना रही थी। वह टीला चींटी ओ का था। सारी चींटी एक – एक कर अग्नि में गिर कर मर रही थी। तभी वहाँ नील आ जाते है और नीलाक्षी को ऐसा करने से रोकते है। और बिना समय गवाए अग्नि में प्रवेश कर टीले को हाथों से उठा कर अग्नि से बाहर रखते है। इस बिच कई सारी चींटिया उनके हाथों पर चढ़ गयी और जगह-जगह काट लिया। वे चुप चाप ये सब देख रहे थे। किसी प्रकार नील समझा – बुझा कर नीलाक्षी को अंदर ले जाते है। ये सब क्या हो रहा था ये जानने के लिए वे उन दोनों भाई बहन के पीछे-पीछे चल दिए। वे चुप – चाप दोनों भाई बहन की बाते सुनने लगे।
नील – ये आप क्या कर रही थी बहन, आपका दिमाग़ ठीक तो है। आप इन बेज़ुबान चींटीयों की हत्या क्यों कर रही थी। नीलाक्षी गुस्से से अपना हाथ दिखाते हुए बोलती है – हमने इनका क्या बिगाड़ा था इसने मुझे काट लिया। इनका ये दुस्साहस, इन्हें इसका परिणाम तो भुगतना ही पड़ेगा।
नील परन्तु बहन – इनके पास इतना दिमाग़ नहीं है, ये किसी को नहीं पहचानती है। ना आपको और ना मुझे।
नीलाक्षी गुस्से से – ये सभी को पहचानती है आपको भी और मुझे भी और शिवानंद गुरु जी को भी, कल ही मैंने देखा था गुरु जी इससे बाते कर रहे थे। कल ये पास ही के नाले में गिर गयी थी इसने गुरु जी को सहायता के लिए बुलाया। गुरु जी लौट कर गए और एक पत्ते पर उठा कर इसे बाहर निकाल दिया।
नील आश्चर्य से नीलाक्षी को देखते है -तो इसमें इनकी क्या गलती है जो आपने इन्हें सजा दी।
नीलाक्षी गुस्से से चीखती हुई बोली – मेरी क्या गलती थी जो इसने मुझे काट लिया, मैं तो गुरु माता के पूजा के लिए फूल लाने बगीचे में गयी थी।
नील गुस्से पर काबू करते हुए – आपको तो एक चींटी ने काटा तो उसी चींटी को सजा देती, आपने तो उसके परिवार को ही मृत्यु दंड दे डाला।
नीलाक्षी कुटिल मुस्कान के साथ – ताकि आगे कोई मेरे साथ ऐसा करने का दुस्साहस ना करें।
राजकुमार नील गुस्से से – बहन नीलाक्षी अगर आपने अपनी इन अनुचित हरकतों पर अंकुश नहीं लगाया तो किसी दिन आपकी ऐसी हरकतों का दुसपरिणाम हमें, माता श्री, दादी माँ, और पूरे राज्य को भुगतना पड़ेगा। अंकुश लगाइये अपनी ऐसी ओछी हरकतों पर, अन्यथा परिणाम बहुत बुरा होगा। ऐसा बोल कर नील गुस्से में वहाँ से चले जाते है।
पंडित शिवानंद आचार्य नीलाक्षी के इस कृत पर अचंभित थे, वे ये समझ गए थे की नीलाक्षी के स्वभाव में बदलाव उनके भय से है क्यों की नीलाक्षी को पता चल गया था की उसके जैसे कुछ दिव्य शक्तियां उनके अंदर भी है। वे इस सोच में थे की ऐसा क्या करें की नीलाक्षी को सही रास्ते पर लाया जा सके। और वे ये भी समझ गए थे की प्रेम से तो ये बिलकुल संभव नहीं है क्यों की प्रेम से की गयी बाते उसे बिलकुल समझ नहीं आती। परन्तु भय, से अवश्य उसे रोका जा सकता है। ये बात समझ गए थे। और ये भय उसके कदम-कदम पर साथ चलने वाले व्यक्ति से हो तो अपनी शक्तियों से किसी का भी अहित करने से पहले, सौ बार सोचेगी। तभी उनके कक्ष में नील प्रवेश करते है। उनके साथ उनके मित्र भी थे, वे सभी औषधि के लिए आये थे। उन्होंने कहा देखिये गुरु जी नील को चींटियों ने काट लिया है गुरु जी अनजान बनते हुए नील से बोलते है – इतनी सारी चींटियों ने तुम्हें कैसे काट लिया? क्या कर रहे थे ? नील संशय में है, गुरु जी से झूठ बोल नहीं सकते थे और वे गुरु जी को सत्य बताना नहीं चाहते थे। इसलिए वे चुप चाप भूमि की ओर देख रहे थे।
गुरु जी दोबारा गुस्से से नील के हाथों पर औषधि लगाते हुए पूछते है – ऐसा प्रतीत होता है चींटियों ने हमला कर घायल किया है तुम्हें, हाथों पर फफोले भी है जैसे की अग्नि में जल गए हो, सत्य बताते क्यों नहीं।
नील – गुरु जी बगीचे में चींटियों का एक टीला है उसके चारों ओर आग लगी हुई थी मैंने उस टिले को हाथों से उठा कर बाहर रख दिया, नहीं तो वे सारी चींटीया आग में जल कर मर जाती।
गुरु जी चुप हो गए, मन भी मन सोच रहे थे नील ने सत्य तो बताया परन्तु अधूरा। वे मन ही मन एक योजना बनाते है, जिससे नीलाक्षी के शक्तियों पर अंकुश लगा सके और नील को सत्य का ज्ञान करा सके। ऐसा सोच कर वे गुरु माता से मिलने गए। वही ब्राह्मदत स्वामी भी थे। शिवानंद आचार्य उन दोनों से कुछ विचार विमर्श कर घर चले गए। लेकिन अब गुरु माता के स्वभाव में एक बदलाव आ गया था। गुरु माता हर वक्त नील का गुणगान करते रहती, नील के पसंद का भोजन पकाती, और नीलाक्षी को ही भोजन, परोसने को कहती। नीलाक्षी को ये बिलकुल पसंद नहीं था। ये उसके चेहरे से स्पष्ट दिख रहा था। नील को भी गुरु माता का ये बदला हुआ स्वभाव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। नील ये समझ गए थे की ये शिवानंद गुरु जी की कोई चाल है। परन्तु वे चुप थे। वे मन ही मन सोच रहे थे पता नहीं बहन नीलाक्षी क्या अनर्थ कर डालेगी। शिवानंद गुरु जी करना क्या चाहते है, ये सारे सवाल नील के दिमाग़ में उथल- पुथल मचा रहे थे। इधर नीलाक्षी गुरु माता के बदले स्वभाव से परेशान थी। आखिर नीलाक्षी ने गुरु माता से पूछ ही लिया। गुरु माता आप सारे विद्यार्थियों से ज्यादा भाई नील से स्नेह करती है। सर्वथा ये अनुचित है माते। गुरु माता बोली – ये सत्य नहीं है पुत्री, मैं गुरुकुल के सभी विद्यार्थियों से एक सामान स्नेह करती हुँ। परन्तु, इतना बोल कर गुरु माता रुक जाती है, और नीलाक्षी के चेहरे के भाव को देखने लगती है, तभी नीलाक्षी बोलती है – परन्तु क्या माते, आप रुक क्यों गयी।
गुरु माता –
परन्तु नील इस राज्य का होने वाले भावी राजा है
और पुत्री वे आपके भाई भी है इस कारण गुरु माता इतना बोल ही पायी थी की उनकी नजर
सामने टंगी आईने पर गयी उस आईने में नीलाक्षी दिख रही थी, नीलाक्षी की आँखें लाल हो गयी थी और शील का पत्थर उनके सिर
पर लटक रहा था मानो नीलाक्षी उस पत्थर को गुरु माता के सिर पर गिरना चाहती हो
परन्तु कोई उसे रोक रहा हो। थोड़ी देर गुरु माता स्तब्ध वही खड़ी रहती है। तभी
नीलाक्षी जोर से भूमि पर गिर जाती है और पत्थर अपने स्थान पर चला जाता है। गुरु
माता दौड़ कर नीलाक्षी को उठाती है और पूछती है – अरे पुत्री आप कैसे गिर गयी, आपको चोट तो नहीं आयी, नीलाक्षी कुछ नहीं बोलती है वे चुप चाप बाहर चली जाती है।
परन्तु शिवानंद आचार्य ये सब देख रहे थे, वे मुसकुराते है और मन ही मन सोचते है उनकी योजना कामयाब हो रही है। ऐसे कई
दुर्घटना गुरु माता के साथ घटी परन्तु गुरु माता को कुछ नहीं हुआ। कोई था जो
कदम-कदम पर गुरु माता की रक्षा कर रहा था मानो उसने गुरु माता के चारों ओर एक
सुरक्षा घेरा बना दिया हो। नीलाक्षी परेशान थी। उसे पूरा यकीन था की ये सब शिवानंद
आचार्य कर रहे है। इसलिए उसने मन ही मन एक योजना बनाई। सुबह-सुबह गुरु माता जल
लेने नदी पर जाने लगी तब नीलाक्षी भी गुरु माता के साथ चलने के लिए बोली, गुरु माता नीलाक्षी को अपने साथ ले जाने के लिए
तैयार हो गयी। दोनों जल भरने नदी पर चली गयी। नदी पर पहुंचकर गुरु माता जल भरने
लगी। तभी एक घटना घटी, कहीं से एक
घड़ियाल आकर गुरु माता के ऊपर हमला कर दिया। परंतु दूसरे ही क्षण एक दूसरा घड़ियाल
वहां आकर उस घड़ियाल से लड़ने लगा। गुरु माता नीलाक्षी दूर से यह सब देखने लगी।
तभी नीलाक्षी ने मुड़कर देखा। वहाँ शिवानंद आचार्य खड़े थे, और थोड़ी दूर पर नील भी अपने मित्रों के साथ खड़े थे।
नीलाक्षी ये सोच रही थी कि शिवानंद आचार्य ही यह सब कर रहे हैं। परंतु वहां नील को
देखकर आश्चर्य में हो गई थी, और असमंजस में पड़
गई। ओह कही ये सब नील ने तो नहीं किया। वापस आ नीलाक्षी चिंतित थी। परन्तु इतना सब
होने के बाद भी गुरु माता के स्वभाव में कोई बदलाव नहीं आया, वे नील को ले कर बहुत उत्साहित रहती थी। उनके
भोजन को ले कर, उनके हर काम को
वे खुद ही करती थी। और ये सब नीलाक्षी के क्रोध के अग्नि में घि का काम कर रहे थे।
दिन रात नीलाक्षी गुरु माता को कैसे मारे यही सोचने लगी। नीलाक्षी का सारा ध्यान
गुरु माता पर केंद्रित था। एक दिन नीलाक्षी को ये मौका मिल ही गया। एक दिन पंडित
शिवानंद आचार्य को अपने किसी निजी कार्य के लिए बाहर जाना पड़ा। वे गुरुकुल में
अनुपस्थित रहेंगे ऐसा बोल कर गए ब्राह्मदत स्वामी से। फिर क्या था जिस मौके की
तलाश थी नीलाक्षी को उसे वो मौका मिल गया।
परन्तु पंडित शिवानंद आचार्य भी कम नहीं थे। उन्होंने नील को इशारे से कहा –
आज मुझे ऐसा आभास हो रहा की भयंकर तूफान आने
वाला है आप लोग सतर्क रहिएगा खास कर गुरु माता के कुटिया की दीवार कमजोर है उधर
ज्यादा ध्यान दीजिये गा। नील तो पहले से ही सतर्क थे। परन्तु वहाँ सभी राजकुमार
थे। उनके पास दिव्य शक्ति तो नहीं थी परन्तु वे सब बहुत तेज बुद्धिमान बलशाली थे।
आखिर वे सब भी अपने राज्य के होने वाले भावी राजा थे। वे भी गुरु जी के संकेत को
समझने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि गुरु जी अवश्य किसी
अनहोनी की ओर इशारा कर रहे हैं। और वह अनहोनी गुरु माता के साथ होने वाली है।
राजकुमार नील के साथ रहने वाले तीन और राजकुमार का ध्यान भी गुरु माता पर ही था।
तीनों राजकुमार बार-बार गुरु माता की कुटिया की ओर देख रहे थे। रात्रि का दूसरा
पहर बीत रहा था तभी उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई गुरु माता को घसीट कर बाहर ले जा
रहा है। तीनों राजकुमार उसका पीछा करने लगे। उन्होंने राजकुमार नील पर बिल्कुल
ध्यान नहीं दिया। वे उनका पीछा करते–करते बिच जंगल में आ गए। उन्होंने वहां जो देखा उसे देख कर उनके होश उड़ गए।
उन्होंने देखा की राजकुमारी नीलाक्षी ने गुरु माता को एक पेड़ से बांध रखा है। और
सामने एक कढ़ाह बैठा रखा है इसमें तेल खौल रहा था। राजकुमारी नीलाक्षी उस कढ़ाह में
गुरु माता को डालने वाली थी। तीनों ने राजकुमारी नीलाक्षी को रोकने का प्रयास
किया। परन्तु नीलाक्षी ने तीनों राजकुमार को भी पकड़ लिया और पेड़ से बांध दिया।
तीनों राजकुमार राजकुमारी नीलाक्षी के अंदर इतनी शक्ति देख कर अचंभित थे। उन्हें
तनिक भी आभास नहीं था की राजकुमारी नीलाक्षी के अंदर कोई दिव्य शक्ति है। तीनों
राजकुमार भयभीत थे। गुरु माता नीलाक्षी से विनती कर रही थी। वे तीनों राजकुमारों
को छोड़ दे,तभी नील वहाँ आ जाते है
नील बहुत गुस्से में थे। नील ने नीलाक्षी से सभी को छोड़ देने के लिए कहा। नीलाक्षी
भी गुस्से से बोली – भाई तो ये आप कर
रहे है। ये नहीं समझिये भाई की आपको इसका दंड नहीं भुगतना पड़ेगा, जो भी मेरे रास्ते में आता है उसे उसका दंड
अवश्य देती हुँ। इतना बोल कर नीलाक्षी ने नील पर प्रहार कर दिया। नील
नीलाक्षी के प्रहार से बचते हुए नीलाक्षी के ऊपर प्रहार करते है और जल्द है
नीलाक्षी को भूमि पर पटक देते है और नीलाक्षी राजकुमार नील से डर के कांपने लगती
हैं, नील बहुत गुस्से में थे, गुरुमाता राजकुमार से राजकुमारी नीलाक्षी को छोड़
देने के लिए आग्रह करतीं हैं, नील नीलाक्षी को चेतावनी दे कर छोड़ देते हैं, इसके
कुछ ही दिनों के बाद किसी जंगली जानवर ने
नीलाक्षी पर हमला कर दिया, राजकुमारी नीलाक्षी को बचाते-बचाते शिवानन्द आचार्य
घायल हो जाते हैं, और फिर उनकी मृत्यु की खबर आती है, नीलाक्षी की जान तो बच जाती
है, हमले में राजकुमारी भी बुरी तरह से घायल हो जाती है, राजमाता आतीं हैं और
राजकुमारी नीलाक्षी को महल वापस ले कर चली जाती हैं, राज कुमार नील गुरुकुल में ही
रुक जाते हैं अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए,
गुरुकुल का आज आखरी दिन है,
राजकुमार नील गुरुमाता को अंतिम प्रणाम करने जाते हैं, गुरुमाता राजकुमार नील से
बोलती हैं, हमें आपको कुछ बताना हैं राजकुमार नील,
राजकुमार नील- बोलिए
गुरु माता आपको क्या बताना है ?
गुरु मात- पहले आप मुझे वचन
दीजिये, आप धर्य से मेरी पूरी बात सुनेंगे, गुस्सा नहीं करेंगे,
राजकुमार नील आश्चर्य से
गुरु माता को देखते हैं, और बोलते हैं गुरु माता ऐसी क्या बात है जिसे सुन कर मैं
अपना धर्य खो दूंगा, जिसे बताने में आप इतना संकोच कर रहीं हैं, थोड़ी देर चुप रहने
के बाद राजकुमार नील बोलते हैं- गुरु माँ मैं आपको वचन देता हूँ की मैं पूरी धर्य
के साथ आपकी बात सुनूंगा, बिलकुल गुस्सा
नहीं करूँगा, माते आप निसंकोच हो कर अपनी बात बताएं,
गुरु माता- भरे गले से बोली
महापंडित शिवानन्द आचार्य की मृत्यु जंगली जानवर के हमले से नहीं हुई थी पुत्र,
उनकी हत्या हुई थी, गुरु माता के आँखों से अश्रु की धरा बह रही थी,
इतना सुन कर राजकुमार नील
आक्रोश में हो जाते है, और गुरु माता से पूछते हैं- किसने हत्या की आचार्य जी की
और क्यों, गुरु माता कुछ नहीं बोलती हैं,
राजकुमार नील- थोड़ी देर
गुरु माता के मुखड़े को देखते है और अपने गुस्से को काबू में करते हुए पूछते हैं,
माते कहीं नीलाक्षी ने तो आचार्य जी की हत्या, नील इतना ही बोलते है की गुरुमाता
राजकुमार नील को बिच में ही रोकते हुए बोलती हैं नहीं-नहीं पुत्र ये सत्य नहीं है,
परन्तु
राज कुमार नील- परन्तु क्या
गुरु माता, आप चुप क्यों हो गयीं,
गुरु माता- परन्तु पुत्र ये
झूठ भी नहीं है,
गुरु माता राजकुमार नील के
मुख से केवल इतने ही शब्द निकाल पाते हैं,
गुरुमाता बताती हैं-
राजकुमार नील महापंडित शिवानन्द आचार्य को पहले से ही संदेह था की राजकुमारी
नीलाक्षी की दिब्य शक्तियां किसी दुष्ट के हाथो में ना लग जाए, और जिसका संदेह था
वही हुआ पुत्र, उस दुष्ट शक्ति ने महापंडित शिवानन्द आचार्य की हत्या कर दी,
इतना सुन कर राजकुमार नील
धम्म से भूमि पर बैठ जाते हैं, और रूहांसे शब्दों में बोलते हैं- ओह माते यदि आपने
पहले मुझे ये सब बताया होता तो मैं आचार्य की कुछ मदद कर पाता और शायद आचार्य जी
हमारे बिच आज जिवित होते, राजकुमार नील रोते हुए बोलते हैं ये आपने क्या किया
माते?
तभी ब्रह्मानंद स्वामी वह आ
जाते हैं और राजकुमार नील के कंधे पर प्यार हाथ रखते हुए बोलते हैं- पुत्र आप यहाँ
केवल एक विद्यार्थी ही नहीं बल्कि इस राज्य के होने वाले भावी राजा भीं हैं, आपका
जीवन अनमोल हैं, इस राज्य के सुरक्षा की जिम्मेदारी है आपके कंधो पर, जब तक आपके
कंधे इन जिम्मेदारियों को उठाने लायक नहीं हो जाते तब तक आपके जीवन की सुरक्षा
करना हमारा कर्तव्य था, इस कारण इतने दिनों तक सत्य को हम दोनों ने आपसे छुपा कर
रखा, और महापंडित शिवानन्द आचार्य की भी यहीं इच्छा थी, और सावधान राजकुमार उस
दुष्ट शक्ति आपको इस राज्य को ही नहीं अपितु राजकुमारी नीलाक्षी को भी बचाना हैं,
गुरुवर कौन है ओ दुष्ट
शक्ति और क्या चाहती हैं, मुझसे और नीलाक्षी से,
ब्रह्मानंद स्वामी- ये तो
मुझे ज्ञात नहीं पुत्र, परन्तु इतना अवश्य ज्ञात है मुझे की ओ अत्यंत शक्तिशाली
है, अन्यथा महापंडित शिवानन्द आचार्य को हराना असंभव था,
गुरु माता-परन्तु पुत्र
महापंडित शिवानन्द आचार्य ये अवश्य कह कर गये की उस दुष्ट और रहस्यमयी शक्ति को
केवल तुम ही परास्त कर सकते हो, और इस समस्त पृथ्वी को अंधकारमय होने बचा सकते हो,
इसलिए पुत्र तुम्हारा जीवन अनमोल है,
राजकुमार नील गुरुमाता को
वचन देते हैं की वे जल्द ही हम उस दुष्ट शक्ति का पता लेंगे, और
उसे महापंडित शिवानन्द
आचार्य की हत्या का उचित दंड भी देंगे,
राजकुमार नील वापस अपने महल लौट आते हैं, उनके दिमाग में कई सवाल थे जिनका जवाब उन्हें ढूँढना था,आखिर ओ दुष्ट शक्ति कौन हैं, क्या चाहती है,उसने महापंडित शिवानन्द आचार्य की हत्या क्यों की, बहन नीलाक्षी का आचार्य जी से क्या संम्बंध हैं,,और सबसे बड़ा सवाल गुरु माता ने ऐसा क्यों कहा की ओ दुष्ट शक्तिक से उनके राज्य को सबसे बड़ा खतरा है,
इन सारे सवालों का जवाब मिलेगा आपको नीलमणि कहानी की अगली श्रिंखला में, इन सारे सवालों के जवाब के लिए जुड़े रहिये मेरे ब्लॉग https://www.mystoriess.com/ से
Bhut hi achi khani
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ReplyDeleteNice story
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