श्रीधर पंडित (भाग 4 )


जब हमें लगता है सबकुछ ठिक चल रहा है, और हम ये समझने लगते है की जीवन की बागडोर हमारे हाथों में है, हम जो चाहे ओ कर सकते हैं, जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं, तभी ये ऊपर वाला हमारे जीवन में अपने होने का एहसास दिलाता है, और हमें आश्चर्य चकित कर देता हैं, ये हमारे जीवन में किसी भी रूप में आ सकता है, सुख या दुःख, ऐसा मानना था श्रीधर का, और मैं हमेशा श्रीधर का मजाक बनाया करता था, उससे कहता था, देख श्रीधर मेहनत का फल हमेशा मीठा होता हैं, गीता में तेरे श्री कृष्ण भगवान ने भी यही कहा है, श्रीधर बोलता था – हां लेकिन ये भी कहा है न कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान, मैं बोलता था, हां तो मैं भी तो यही बोल रहा हूँ ना, श्रीधर बोलता था, तू ये नहीं बोल रहा है बे, इस तरह से मेरे और श्रीधर के बिच बहस छिड़ जाती, मैं श्रीधर को चिढ़ाने लगता था, मेरा पल्ला भारी होता था क्यों की छुट्टन मेरे साइड लेता था, श्रीधर की बातों में हमेशा लोजिक होता था, लेकिन हम कभी श्रीधर की बातों को सिरियस नहीं लेते थे, आज श्रीधर की बातों का लोजिक समझ में आ रहा था मुझे, श्रीधर के पिता जी अचानक बीमार पड़ गये, उन्हें लकवा मार दिया,

15 दिनों तक श्रीधर के पिता जी हॉस्पिटल में एडमिट रहे, श्रीधर के साथ मैं भी 15 दिनों तक हॉस्पिटल में ही रुका, परीक्षा का समय था, बड़े भईया और पिता जी ने श्रीधर को समझा कर परीक्षा देने के लिए शहर भेज दिया, लेकिन दूसरी बार जब श्रीधर गांव गया तो वापस नहीं आया, घर की जिम्मेदारी, छोटी बहनों की शादी, छोटे भाई गिरधर की पढ़ाई सभी की जिम्मेदारी श्रीधर के कंधो पर आ गयी थी, श्रीधर ने बिच में ही पढ़ाई छोड़ दी, उसने बड़े पंडित जी का स्थान ले लिया था, थोड़े दिनों बाद छुट्टन ने भी पढ़ाई छोड़ दी, छुट्टन भी दो बच्चों का पिता बन गया था, इसलिए छुट्टन की माता जी के आग्रह पर पिता जी ने छुट्टन की नौकरी गांव के ही स्वस्थ केंद्र में लगवा दी,

मैं शहर में अकेला रह गया था, अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए, पढ़ाई के साथ-साथ, मैं प्रतियोगिता की तैयारी करने लगा, हम तीनों दोस्त अलग-अलग हो गये, और अपने-अपने जीवन में व्यस्त हो गये, लेकिन उस ऊपर वाले ने अपने होने का एहसास जरुर दिला दिया था, थोड़ी देर के लिए हमारे जीवन की बागडोर अपने हाथो में ले लिया था, और हमें अलग-अलग रास्ते पर खड़ा कर दिया था, यहाँ से हमें अकेले इस रास्ते पर चलना था, हमारे रास्ते जरुर अलग हो गये थे लेकिन हमारी दोस्ती नहीं टूटी थीं, आज भी जब मैं गांव जाता तीनों दोस्त खूब मस्ती करते, हां ये अलग बात है की अभी वाली मस्ती पहले जैसी नहीं थीं, आज मैं अपने ही बनाये झूठ की जाल में फंस गया था, मेरी माँ, मेरे और भावना जी के रिश्ते के लिए बिलकुल  तैयार नहीं थीं, इसका कारण मेरा एक झुठ था, ये झूठ मैंने उस वक्त बोला था जब भावना जी के रिश्ते की बात चल रही थी,

  श्रीधर पंडित (भाग 1)            श्रीधर पंडित (भाग 2)              श्रीधर पंडित (भाग 3)                  


पिछले कहानी में आपने पढ़ा की लेखक अपने दोस्त श्रीधर से एक प्रेम पत्र लिखने के लिए बोलता है, और श्रीधर पंडित जी संस्कृत में प्रेम पत्र लिख देते हैं, और लेखक बिना पढ़े ही चिठ्ठी अपनी प्रेमिका को देता है, उसके बाद जो हुआ वह तो आपने पिछले कहानी श्रीधर भाग 3 में पढ़ा, ये कहानी यही ख़त्म नहीं होती, उसके बाद तो ये एक सिलसिला बन गया, पहले ख़त उसके बाद हम दोनों कालेज से बाहर मिलने लगे, जैसा की हर घर में होता है, लड़की के बड़े होते ही माता-पिता को सबसे पहले उसकी शादी की चिंता होती है, भावना जी के पिता जी भी भावना जी के लिए रिश्ते की बात करने लगे, भावना जी ने मुझे ये बात बतायी, मैं जब गांव गया तब ये बात श्रीधर और छुट्टन को बतायी,

श्रीधर से मैंने कहा- कुछ कर यार नहीं तो बहुत बड़ी मुसीबत हो जाएगी, भावना जी ने तो सीधे-सीधे धमकी दी हैं, शादी करेंगी तो केवल मुझसे नहीं तो जान दे देंगी, कोई उपाय निकालो,

श्रीधर बोला- इसमें उपाय क्या ढूँढना है, चाचा जी से बात करते हैं, चाचा जी भावना जी के पिता जी से मिलकर बात कर लेंगे,

मैं बोला- क्या बात कर लेंगे ?

श्रीधर बोला- तुम्हारे और भावना जी के रिश्ते की बात, और क्या ?

मैं बोला- तू तो ऐसे बोल रहा है जैसे हलवा पूरी हो, पिता जी को ये बात बताना भी नहीं समझे,

श्रीधर आश्चर्य से मेरी और देखता है,

मैं बोला- ऐसा नहीं हो सकता यार,

श्रीधर- क्यों ?

मैं बोला- क्यों की उन्हें सरकारी नौकरी वाला लड़का चाहिए, और मैं तो अभी बेरोजगार हूँ,

इस बार छुट्टन बोला- बेरोजगार कहा है आप, अभी तो आप पढ़ाई ही कर रहे हैं,

श्रीधर बोला- यही तो, पढाई के बाद नौकरी भी लग जाएगी ?

मैंने कहा- तुम दोनों की लग गयी नौकरी? तुम दोनों भी तो पढ़ाई ही कर रहे थे ना,

श्रीधर- देख यार, कोई नहीं जानता कल क्या होगा?

मैंने कहा- भावना जी के पिता जी भी यहीं बोल रहे हैं, और वे अपनी जगह सही भी हैं, कल किसने देखा हैं, कोई भी अहम फैसला वर्तमान को देख कर लिया जाता है, और वर्तमान  में मैं बेरोजगार हूँ,

श्रीधर- एक बार उनके पिता जी से बात करने में क्या हर्ज हैं, तू कहे तो मैं बात करू उनसे?

मैं चुप ही रहा, दुसरे दिन मैं वापस शहर लौट आया, यहाँ आकर पता चला भावना जी के पिता जी ने उनका रिश्ता तय कर दिया है और लड़के वाले उन्हें देखने आने वाले हैं, मैं उदास अपने कमरे बैठा था, तभी श्रीधर और छुट्टन वहाँ आ जाते हैं, मैं उन्हें बताता हूँ की भावना जी का रिश्ता तय हो गया है और उन्हें देखने लड़के वाले आ रहे हैं, इतना सुनते ही छुटन आग बबूला हो गया, ऐसा लगा जैसे उसी की प्रेमिका उससे दूर जा रही हो,

 छुट्टन जोर से बोला- ऐसे कैसे रिश्ता तय कर देंगे, हम सब जानते है की भावना जी संजीव भईया से प्रेम करती हैं? ऐसा करिए भईया आप भाभी को भगा ले चलिए गांव, जो होगा उसे हम सब मिल कर देख लेंगे,

श्रीधर नें छुट्टन को जोर से डाट लगायी और बोला चुप बे कुछ भी बोलता रहता है, शादी होगी और सबके मर्जी से होगी, मैं मिल कर बात करूंगा भावना जी के पिता जी से,

छुट्टन –और यदि भावना जी के पिता जी नहीं माने तो ?

श्रीधर- मानेंगे और जरुर मानेंगे,

मैंने भावना जी से बात की उन्होंने मंदिर में मिलने के लिए बोला हैं, दूसरे दिन मैं, श्रीधर और छुट्टन सुबह-सुबह मंदिर पंहुच गये, श्रीधर तो पंडित था, वह मंदिर के पंडित से बाते करनें लगा, लेकिन मेरी निगाहें मंदिर के गेट पर ही टिकीं थी, मैंने भावना जी को मंदिर के गेट से अंदर आते देखा, उनके साथ एक औरत भी थी, जो शायद उनकी दादी माँ लग रहीं थी, भावना जी से उनके बारे में सुन रखा था मैंने, लेकिन कभी देखा नहीं था, जैसे ही मैंने और छुट्टन ने भावना जी की दादी को नजदीक से देखा हमारे तो पैरों के निचे से जमीं ही खिसक गयीं, हम मंदिर के पीछे छुप गये, श्रीधर को आवाज भी लगाई लेकिन वह पंडित जी से बात करने में व्यस्त था, हमारी आवाज नहीं सुना उसने, भावना जी ने मुझे देख लिया था, लेकिन उनकी दादी माँ ने नहीं देखा था मुझे, दादी माँ फूल वाले से फूल ले रहीं थीं,

छुट्टन बोला- संजीव भईया अब तो श्रीधर पंडित जी का प्लान फेल ही समझिये, अब तो मेरे वाले प्लान के बारे में सोचिये,

मैंने आश्चर्य से छुट्टन से पूछा- तेरा वाला कौन सा प्लान बे?

छुट्टन धीरे से बोला- भाभी जी को भगा कर शादी करने वाला प्लान और कौन सा प्लान,

छुट्टन की बात सुन कर मुझे हंसी आ गयी, मैंने देखा दादी माँ धीरे-धीरे मंदिर की सीढियाँ चढ़ते-चढ़ते श्रीधर के बिलकुल सामने आ कर खाड़ी हो गयीं, श्रीधर और दादी माँ आमने-सामने खड़े थे, मैंने धीरे से कहा आज श्रीधर पिटेगा, लेकिन सामने का नजारा देख कर मैं और छुट्टन आश्चर्य चकित रह गये, दादी माँ ने श्रीधर को झुक कर पैर छू कर प्रणाम किया और भावना जी को भी पैर छू कर प्रणाम करने के लिए कहा, भावना जी ने भी श्रीधर को झुक कर पैर छू कर प्रणाम किया, दादी माँ को सामने देख कर श्रीधर सकपका गया, श्रीधर चुप खड़ा था, भावना जी भी चुप खड़ी थी, भावना जी भी आश्चर्य से श्रीधर को देख रहीं थीं,

दादी माँ बोलना शुरू की- भावना

 ये देख  बहुत ही ज्ञानी और पहुचें हुए पंडित हैं, इनके देखने से ही अतुल को बच्चा हुआ ओ भी लड़का, इन्होने ने ही कहा था की लड़का ही होगा, और लड़का ही हुआ, दादी माँ श्रीधर की तारीफ के पुल बांधे जा रही थीं, और हमारी हंसी रुक नहीं रही थी,

दादी माँ बोली- पंडित जी ये मेरी पोती भावना है, आज आप अच्छे समय पर मिले हैं, आपको घर चलना पड़ेगा,

श्रीधर सकुचाते हुए धीरे से बोला- क्या बात है आप यही बता दीजिये, मैं यहीं देख लूँगा, लेकिन दादी माँ नहीं मानी, उनके जिद करने पर श्रीधर उनके साथ उनके घर चल दिया, उसने पीछे मुड़ कर मुझे और छुट्टन को देखा,ऐसा लग रहा था मनो कोई बकरा हलाल होने जा रहा हो,

श्रीधर धीरे-धीरे चलता हुआ जाने लगा, मैं और छुट्टन रूम पर वापस लौट आए, आते ही छुट्टन बोला- संजीव भईया हमें भी जाना चाहिए था उनके साथ, छोड़ आये अकेले पंडित जी को, पता नहीं वहाँ क्या हो रहा होगा,

मैं बोला- कुछ नहीं हो रहा होगा वहाँ, चुप कर के बैठ जा, श्रीधर अब पहले वाला श्रीधर नहीं है, जो हम बोलेंगे वही कहेगा, संस्कृत की मोटी-मोटी किताबे पढ़ा है उसने, पंडित हो गया है श्रीधर,

छुट्टन धीरे से बोला- इ तो आप सही बोल रहे हैं संजीव भईया, बड़े पंडित जी की जगह ले ली है उन्होंने, सारा गांव इज्जत करता है,

क्यों की हमारा श्रीधर विश्वास वाला पंडित है अंधविश्वास वाला नहीं, मैं बोला,

श्रीधर शाम तक रूम पर लौट कर आया, उसके हाथो में ढेर सारा सामान था खाने-पिने का और कपड़े भी थे, खूब दान दक्षिणा दिया था भावना जी के घर वालो ने श्रीधर को, श्रीधर आते ही हम दोनों पर बरस पड़ा-

साले मुझे वहाँ अकेला छोड़ कर भाग आये तुम दोनों रुक बताता हु मैं, एक छोटा सा डंडा उठा कर श्रीधर छुट्टन को मरने लगा और बोले जा रहा था- संजीव का चमचा बनता हैं तू रुक बताता हूँ मैं तुझे, तू भी मुझे अकेला छोड़ कर भाग आया वहाँ से,

छुट्टन श्रीधर से बच कर इधर-उधर भाग रहा था और मेरी हंसी रुक नहीं रही थी, हम तीनों जोर-जोर से हंसने लग, हम पूरानी बात याद करने लगे जब हमनें भावना जी की दादी माँ को बेवकूफ बना कर ढेर सरे पैसे ठगे थे, बात तब की हैं जब हमने श्रीधर को पंडित जी बना कर पैसे कमाने का जुगाड़ लगाया था, श्रीधर को धोती पहननी भी नहीं आती थी, किसी तरह से धोती को लपेट कर माथे पर चन्दन का टिका लगा कर पहुँच गये नदी किनारे, उस दिन कार्तिक पूर्णिमा थी, स्नान ध्यान का दिन था, नदी किनारे काफी भीड़ थीं, ऐसा नहीं था की वहां केवल श्रीधर पंडित था, ढेर सारे पंडित जी थे वहाँ, सारे पंडित जी पूजा-पाठ करने में व्यस्त थे, थोड़ी देर इधर-उधर घुमने के बाद हमने श्रीधर से कहा- तू यहाँ बैठ, हम लोग देख कर आते हैं, थोड़ी दूर आगे बढ़ने पर हमने देखा एक बूढी औरत इधर-उधर किसी को ढूँढ रही थी, हमने उनसे पूछा आप किसे ढूँढ रहीं है दादी माँ, औरत बोली पंडित जी को ढूँढ रही हु बेटा, वे हमारे पुरोहित जी हैं, लगता हैं वे आज नहीं आये है,  मैंने कहा- चलिए दादी माँ हम एक पंडित जी को जानते जो बनारस से आये हुए हैं, आज आप उन्ही से पूजा करा लीजिये, भगवान शिव की विशेष कृपा हैं उनके उपर, उनके पास दिव्य दृष्टी है, देख कर ही भूत-भविष्य सब बता देते हैं, ऐसे पंहुचे हुए महात्मा हैं, मैं और छुट्टन श्रीधर की गुणगान किये जा रहे थे, हम दोनों दादी माँ को ले कर श्रीधर के पास पहुंच, श्रीधर के पूजा से दादी माँ बहुत प्रभावित हुई, दक्षिणा भी अच्छा दिया दादी माँ ने, फिर क्या था, हमारी पंडित की दुकान चल निकली, फिर तो हम प्रत्येक रविवार को वहां जाने लगे, एक रविवार को जैसे ही हम वहां पहुंचे दादी माँ वहां पहले से ही खड़ी थीं, उनके साथ एक औरत भी थी,

दादी माँ ने श्रीधर से उनका परिचय कराया, ये मेरी छोटी बहु है पंडित जी, जरा इसको देखिये तो, पांच साल विवाह को हो गये, अभी तक इन्हें कोई बच्चा नहीं है, सब ठीक तो है न,

श्रीधर बोला सब ठीक है माता जी, अभी तो पांच ही साल हुए हैं, एक दो साल के अंदर ही लल्ला होगा, आप बिना वजह ही चिंता कर रही हैं, श्रीधर के पास सेव था, सेव को बहु के हाथो में देते हुए कहा- लीजिये प्रसाद और निश्चिंत हो कर घर जाईये, दोनों सास-बहु सेव ले कर ऐसे खुश हुई जैसे उन्हें पुत्र होने का वरदान मिल गया हो, वे दोनों ख़ुशी-ख़ुशी वहां से चली गयीं, लेकिन आज दादी माँ ने एक पैसा नहीं दिया,

मैं बोला- ऐसे तो चल गयी तेरी पंडितो वाली दुकान,

छुट्टन बोला- हां भईया, एक तो पैसे नहीं मिले और एक सेव था ओ भी चला गया,

श्रीधर गुस्से से बोला- देख संजीव ये कोई पंडितो वाली दुकान नहीं है, और इसमें मैं उनकी क्या मदद कर सकता था बोल, पुत्र्येस्ठी यज्ञ करने के लिए बोलता क्या उन्हें राजा दसरथ की तरह,

मैं बोला- तू उनकी नहीं हमारी मदद जरुर कर सकता था, यज्ञ नहीं तो थोड़ा पूजा पाठ ही करा देता, थोड़े पैसे मिल जाते हमें, इतना बोल कर मैं और छुट्टन हंसने लगे,

हम तीनो ऐसे ही आपस में बाते करते रूम पर चले आये, कुर्सी पर बैठ कर श्रीधर ने एक गहरी साँस ली, ऐसे ही कुछ दिन बीत गये, एक रविवार दादी माँ हमें मिल गयी, हमेशा की तरह दादी माँ ने श्रीधर को प्रणाम किया,

 श्रीधर ने दादी माँ से पूछा- कैसी हैं माता जी, सब ठीक है न, दादी माँ ने कहा-ऐसे तो सब ठीक है पंडित जी केवल छोटी बहु को बच्चा नहीं हो रहा है उसे ही ले कर परेशान हूँ, कोई उपाय बताईये पंडित जी,

श्रीधर बोला- कोई उपाय मतलब,

दादी माँ ने कहा- कोई पूजा-पाठ, बताईये पंडित जी,

 मुझे और छुट्टन को एक मौका मिल गया, मैंने कहा- कोई पूजा पाठ होती हैं तो करा दीजिये पंडित जी,

छुट्टन भी मेरी हाँ में हाँ मिलते हुए बोला- हाँ पंडित जी कोई उपाय बता दीजिये, श्रीधर घुर कर हम दोनों को देखता है, और धीरे से बोलता है ठीक है माता जी, मैं अपने गुरु जी से पूछ कर बताता हूँ, कल यहीं मिलिएगा,

हम तीनों रूम पर चले आये, श्रीधर गुस्से से बोला- और कितने पाप करवओगें तुम दोनों मुझसें, मैं हँसते हुए बोला ये आखिरी हैं, पूजा-पाठ के नाम पर हमने दादी माँ से बहुत से पैसे ले लिए, फिर क्या था, दादी माँ तो हमारे पीछे ही पड़ गयी, जैसे पूजा न हो कर कोई जादू हो, जब भी मिलती बोलती अभी तक कोई नया समाचार नहीं हैं पंडित जी, पूजा तो सही से किया था आपने, श्रीधर बड़े प्यार से बोलता माता जी थोड़ा इन्तजार कीजिये, आप जल्द ही दादी बनिएगा, थोडा सब्र रखिये, एक बार तो हद ही कर दिया दादी माँ ने, बिच मार्किट में मिल गयी और वही शुरू हो गयी, उस समय श्रीधर हमारे साथ नहीं था, दादी माँ बोली- पंडित जी कहाँ हैं बेटा, पूजा तो कोई काम ही नहीं कर रहा है, उनसे मिलना था, किसी तरह से दादी माँ से पीछा छुड़ा कर हम वहाँ से भागे, अब तो जहाँ भी दादी माँ को देखते उधर से अपना रास्ता ही बदल देते, उसके बाद हमने नदी वाले मंदिर पर जाना ही बंद कर दिया,

उस समय के बाद आज ही श्रीधर और दादी माँ आमने सामने हुए थे,

श्रीधर कुर्सी पर बैठते हुए बोला, भावना जी माता जी के बड़े बेटे की बेटी हैं, अतुल माता जी के छोटे लड़के हैं और भावना जी के चाचा जी हैं, अतुल जी को लड़का हुआ है, और भावना जी के घर के सभी लोग बहुत खुश हैं, संजीव तुम्हारे लिए भी एक खुशखबरी है, फिलहाल भावना जी की शादी टूट गयी हैं, मैं खुश होते हुए बोला अच्छा, कैसे?

श्रीधर बोला- कुंडली नहीं मिली दोनों की

मैं आश्चर्य से बोला- कुंडली नहीं मिली ?

हां, लड़के के कुंडली में दोष था, इसलिए दादी माँ ने रिश्ता तोड़ दिया, एक गहरी साँस लेते हुए श्रीधर बोला- यार संजीव भावना जी के सारे घर वाले बहुत ही अच्छे हैं, पढ़े-लिखे और सभ्य परिवार है, लेकिन उनकी दादी माँ बहुत ही अंधविश्वासी हैं, अंधविश्वास के चक्कर में वे कहीं भावना के लिए कोई गलत फैसला न ले लें, क्यों की घर के सारे लोग उनकी बहुत इज्जत करते हैं,

मैंने कहा- हाँ तो, इसमें चिंता वाली क्या बात हैं, बहुत प्यार करती हैं वे अपनी पोती से, चलो कुछ भी हो भावना जी की शादी का टेंशन ख़तम हुआ,

श्रीधर बोला- ज्यादा खुश होने की जरुरत नहीं है, ढेर सारी तस्वीरें हैं उनके पास, और दादी माँ ने अपने छोटे बेटे अतुल को आर्डर दिया है, सभी की कुंडली लाने के लिए, सभी सरकारी नौकरी में अच्छे पोस्ट पर हैं,

मैं बेपरवाही से बोला- हाँ तो सभी की कुंडली भी तो मिलनी चाहिए, मेरी बात सुनकर छुट्टन हंसने लगा,

श्रीधर बिस्तर पर लेटा हुआ था, चौक कर उठ कर बैठ गया, और बोला- मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला हूँ, मैं बोला- केवल तू ही मेरी मदद कर सकता है, और तू भूल रहा हैं की तू यहाँ मेरी मदद करने आया है,

 श्रीधर बोला हाँ तो करूँगा ना मैं भावना जी के पिता जी से बात, लेकिन मैं कोई झूठ नहीं बोलने वाला हूँ, और झूठ बोलने की जरुरत नहीं हैं यार, तेरी कुंडली भावना जी के कुंडली से परफेक्ट मैच करती हैं मैंने मिलाया हैं ना,

मैं बोला- केवल कुंडली मिलने से शादी हो जाएगी क्या?                                     

श्रीधर बोला- तो सरकारी नौकरी होने से भी शादी नहीं होने वाली है,

वही तो मैं भी बोल रहा हूँ, श्रीधर मेरी और देखता है, तुम्ही ने तो बताया की बहुत से सरकारी नौकरी वालों की तस्वीर हैं उन लोगो के पास, और दादी माँ ने सभी की कुंडली भी मंगवायी है, तो किसी न किसी की कुंडली मिल ही जाएगी, फिर तो भावना जी की शादी उसी लड़के से होगी, क्यों की कुंडली भी मिल गयी और सरकारी नौकरी भी, मैं श्रीधर का हाथ अपने हाथो में लेते हुए बोला- बस केवल एक साल और, यदि इस एक साल में मेरी सरकारी नौकरी नहीं लगी तो जो तू बोलेगा वहीँ करूँगा,

श्रीधर मेरी बात मान गया, उसने भावना जी को ही मंगली बता दिया, मंगली कुंडली वाले लड़के या लड़की की शादी हमेशा मंगला लड़के, लड़की से ही होती ऐसी मान्यता है हिन्दू धर्म में, फिर क्या था भावना जी की शादी एक के बाद एक काटने लगी और हमारी प्रेम की गाड़ी बिना रोक-टोक के आगे बढ़ने लगी,

साल भर के अंदर ही मैंने बैंकिंग की प्रतियोगिता पास कर ली और मेरी नौकरी बैंक में लग गयी, श्रीधर का भावना जी घर आना जाना था, उसने मेरी और भावना जी की शादी भी फिक्स करवा दी, कुंडली भी मिला दिया उसने, सब ठीक चल रहा था लेकिन तभी उस उपर वाले ने मेरे जीवन की बागडोर अपने हाथो में ले लिया, थोड़े समय के लिए ही सही, जी हां सही पढ़ा आपने, मैंने एक साल पहले अपनी चाल चल दी थी, मैं सोच रहा था की मैं अपनी चाल में कामयाब हो गया था, और सब कुछ अपने हाथो में कर लिया है, लेकिन मैं ये भूल गया था की उस उपर वाले ने तो अपनी चाल चली ही नहीं, उसकी चाल तो अभी बाकि थी, एक साल बाद उपर वाले ने मेरी चाल का जवाब दिया,और जब उसने जवाब दिया तब मुझे दिन में तारे दिखा दिया,

मेरी पोस्टिंग दुसरे शहर में थी, मैं अपने नौकरी पर था, श्रीधर भी अपने ससुराल गया हुआ था, दोनों तरफ शादी की तैयारी जोर-शोर से चल रही थी, तभी एक हादसा हो गया, मेरी माता जी कार्ड बांटने अपने मायके गयी हुई थीं, कार्ड पर मेरे ससुर जी का नाम पढ कर मेरे मामा जी चौकं गये,

मामा जी बोले- अरे दीदी आपने बताया नहीं संजीव मंगला हैं?

माँ बोली- अरे नहीं-नहीं भईया, संजीव मंगला नहीं हैं,

मामा जी बोले- तो क्या कुंडली नहीं मिलवाया आप लोगो ने?

माँ बोली- क्यों क्या हुआ भईया?

मामा जी बोले- क्यों की लड़की मंगली हैं,

माँ बोली- अरे नहीं भईया आपको कोई ग़लतफ़हमी हुआ है, वो कोई और लड़की होगी;

मामा जी बोले- नहीं दीदी यही लड़की हैं, मेरे दोस्त के बेटे की शादी इसी लड़की से तय हुआ था, सब कुछ तय हो गया था, लड़की मंगली थी इसी वजह से शादी टूट गयी,

लेकिन भईया श्रीधर पंडित जी ने शादी तय करवाया है, उन्होंने ने ही कुंडली भी मिलाया हैं, बोले सब ठीक हैं,

मामी जी बोली- अरे दीदी, लड़की के मंगली होने के कारण शादी नहीं तय हो रहा होगा इसीलिए कहीं नकली कुंडली तो नहीं बनवा लिया उन लोगो ने, सब कुछ ठीक से पता कर लीजियेगा तभी शादी कीजियेगा,

फिर क्या था माँ घर वापस लौट आई और सारे घर में हंगामा खड़ा कर दिया उन्होंने, अब ये शादी नहीं हो सकती, इसके बाद मेरी और भावना जी की शादी टूट गयी, मैंने माँ को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन मेरी माँ नहीं मानी, मैंने सच बताने की कोशिश की लेकिन माँ थीं की कुछ सुनने को तैयार नहीं थीं, उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया या दो में से एक को चुनना पड़ेगा या तो वो लड़की या फिर माँ, ये तो तय था की मैं माँ को ही चुनता, लेकिन मैं हार गया था, आनन-फानन में मेरी दूसरी जगह शादी तय हो गयी, माँ की पसंद से, लड़की देखने को कहा गया मैंने साफ मना कर दिया, माँ को पसंद हैं तो सब ठीक हैं, लेकिन मेरा मन कहीं नहीं लग रहा था, मैं बिलकुल देवदास बन गया था, श्रीधर चुप- चाप सारे काम कर रहा था, लेकिन छुट्टन मुझे बार-बार लड़की देखने की जिद कर रहा था,

छुट्टन –एक बार लड़की से मिल लीजिये संजीव भईया, सारी जिंदगी का सवाल हैं,

मैंने कहा- तूने देखा था,

छुट्टन- मुझ मे और आप में फर्क हैं ना संजीव भईया, आप बैंक के ऑफिसर बन गये हैं और मैं छुट्टन लोहार,

छुट्टन की बाते सुन कर मुझे हंसी आ गयी, श्रीधर भी वहीं था, श्रीधर भी हंसने लगा, श्रीधर ने धीरे से कहा एक बार मिल ले लड़की से, शायद लड़की की खूबसूरती तेरा मन बदल दे,

मैंने घर आ कर माँ से कहा मुझे लड़की से मिलना है, फिर क्या था घर में महाभारत छिड़ गया, माँ ने सारा घर अपने सर पर उठा लिया, माँ का ये रूप मैंने पहले कभी नहीं देखा था,

माँ- अब लो, इन दो दिन में बारात निकले वाली है और साहबजादे को लड़की से मिलना है, पहले कहा गया तो लड़की देखि नहीं, अब दो दिन में शादी है तो इन्हें लड़की देखनी है,

दीदी- यदि लड़की तुझे पसंद नहीं होगी तो तू शादी नहीं करेगा, कितनी बदनामी होगी सोचा है तूने,

मैंने कहा- क्यों पसंद नहीं होगी लड़की, तुम लोगो ने देखा हैं न लड़की, लड़की अच्छी हैं ना, फिर इसमें इतना हंगामा करने की क्या जरुरत है, मैं एक बार लड़की से मिलना चाहता हूँ बस,

माँ बोली- क्यों की तुझे वो मंगली लड़की पसंद है इसलिए, पहले नहीं देखा तो आज क्यों मिलना हैं लड़की से,

मैंने भी साफ-साफ कह दिया, मुझे लड़की से मिलना है तो बस मिलना हैं, लड़की से मिलूँगा तभी शादी करूँगा,

आखिर पिता जी ने इजाजत दे दी लड़की से मिलने की, बारात दरवाजे पर खाड़ी थीं, मैं दुल्हे के वेश में था, चरों तरफ चहल-पहल थीं, लेकिन मैं बिलकुल खुश नहीं था, केवल अपनी माँ को देख रहा था, वो बहुत खुश थीं, सबसे छोटे और ऑफिसर बेटे की शादी कर रहीं थीं वो, पिता जी से लड़ाई कर बनारसी साड़ी खरीदा था उन्होंने, पिता जी बोल रहे थे- अरे तुम्हारी शादी नहीं है जो बनारसी साड़ी खरीद रही हो, लेकिन माँ को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, ख़ुशी के मारे उनके तो पैर जमिन पर नहीं थे,

हालाकिं मेरी जिद थी की मैं पहले लड़की से मिलूँगा तभी शादी करूँगा, इसलिए एक लड़की आई और मुझे एक कमरे में ले गयीं, वो लड़की मुझे कमरे में छोड़ कर बाहर चली गयी, वहाँ भावना जी को दुल्हन के रूप में देख कर मै आश्चर्य चकित हो गया, मुझे अपनी आँखों पर विश्वाश नहीं हो रहा था, थोड़ी देर में श्रीधर और छुट्टन भी कमरे में आ गये, छुट्टन हँसते हुए बोला- मैं बोल रहा था न संजीव भईया, लड़की देख लीजिये, लड़की को देख कर आपका मन हरा-हरा हो जायेगा, मैं श्रीधर और भावना जी तीनों हंसने लगे, मैं श्रीधर की ओर देखा और पूछा ये चमत्कार कैसे हुआ, माँ को पता है ये वही लड़की हैं, श्रीधर ने कहा माँ को ये पता है की ये लड़की मंगली नहीं है, पर ये सब कैसे हुआ, श्रीधर मुझे सच बताया,

माँ मायके से कार्ड बांटे बिना ही लौट आई और आते ही हंगामा खड़ा कर दिया था, अरे क्या हुआ, पिता जी ने माँ से पूछा, माँ बोली- लड़की वालो ने हमें धोखा दिया हैं,

पिता जी- क्या धोखा दिया है बताओगी,

माँ- उन्होंने हमें नकली कुंडली दिखा कर शादी तय कर लिया हैं,

पिता जी बोले तुम्हे किसने बताया की कुंडली नकली है,

माँ बोली- बड़े भईया ने, उनके दोस्त के लड़के की शादी इसी लड़के से तय हुई थी, लड़की मंगली थी जिसके कारण रिश्ता टूट गया, अब आप ही बताओ हमारा संजीव मंगला है क्या,

पिता जी बेपरवाही से बोले होगा मंगला तभी तो कुंडली मिलायी है श्रीधर पंडित जी ने,

माँ बोली- नहीं-नहीं मैंने पूछा है बड़े पंडित जी से, संजीव मंगला नहीं हैं, और यदि लड़की मंगली होगी तो ये शादी हरगिज नहीं हो सकती,

पिता जी गुस्से से बोले- ठीक है लाओ दोनों की कुंडली मैं बड़े पंडित जी से दिखता हूँ, माँ कुंडली ला कर देती है,

पिता जी कुंडली ले कर गुस्से में बडबडाते हुते निकल जाते हैं, पिता जी बड़े पंडित जी को कुंडली दिखाते हैं, बड़े पंडित जी कुंडली देख कर बोलते है- कुंडली बिलकुल सही है, इसमें ना तो लड़का मंगला है और ना लड़की मंगली हैं, दोनों की कुंडली भी विवाह योग्य है,

पिता जी बोले मतलब

बड़े पंडित जी बोले- मतलब दोनों की कुंडली मिल रही है, दोनों के कुंडली में कोई दोष नहीं है, श्रीधर गलत कुंडली नहीं मिलायेगा मुखियां जी,

पिता जी बड़े पंडित जी से बात ही कर रहे थे तभी वहां भावना जी के पिता जी आ जाते है, पिता जी बोले- अरे समधी जी आप यहाँ, भावना जी के पिता जी बोले- समधन जी फ़ोन की थी, कह रहीं थीं हमने उनको गलत कुंडली ले दिया हैं, हमने आपको कोई गलत कुंडली नहीं दिया है, श्रीधर पंडित जी जानते थे की हमारी बच्ची मंगली है, इसीलिए तो श्रीधर पंडित जी ने आपके लड़के से शादी तय करायी, क्यों की आपका लड़का भी मंगला है,

पिता जी चौक गये उन्होंने भावना जी के पिता जी से पूछा- आपको किसने बताया की मेरा लड़का मंगला है?

भावना जी के पिता जी बोले- श्रीधर पंडित जी ने,

पिता जी पूछे- और आपकी लड़की मंगली हैं ये किसने बताया?

भावना जी के पिता बोले- श्रीधर पंडित जी ने,

बड़े पंडित पिता जी से पूछे- क्या हुआ मुखियां जी सब ठीक हैं ना?

पिता जी बोले हमें तो लग रहा था, दाल में कुछ काला हैं, लेकिन यहाँ तो पूरी की पूरी दाल ही काली है,

बड़े पंडित जी बोले- छुट्टनवा से पूछिये,

पिता जी बोले छुट्टनवा कुछ नहीं बतायेगा और संजीव भी कुछ नहीं बतायेगा, श्रीधर पंडित जी को बुलाईये वही सब कुछ बतायेंगे,

श्रीधर पंडित जी आये और उन्होंने सारी बात बतायी, पिता जी सारी बात सुनने के बाद भावना जी के पिता जी से बोले- देखिये समधी जी सारी बात आप जान गये यदि आपको ये रिश्ता मंजूर नहीं है तो आप ये रिश्ता तोड़ सकते हैं, बिटियाँ आपकी है इसलिए मंजूरी भी आप ही की चलेगी,

भावना जी के पिता जी बोले- अरे नहीं-नहीं समधी जी ये आप कैसी बात बोल रहे हैं, हमें ये रिश्ता दिल से बहुत पसंद हैं,

पिता जी बोले- तब तो आपको हमारी बात माननी पड़ेगी, इ लड़का बहुत ही बिगड़ गया है, इसे इसके ही तरीके से सही रास्ते पर लाना होगा,

इतना बोल कर छुट्टन हंसने लगा, देखें संजीव भईया मुखियां जी कैसे आपको आप ही के तरीके से सही रास्ते पर ले आये,

मैंने भावना जी से पूछा- आपको बुरा नहीं लगा हमने आपको धोखा दिया और दूसरी लड़की से शादी के लिए हां कर दी,

भावना जी बोली- माँ, माँ होती हैं संजीव जी और आपने माँ को चुन कर हमारा दिल जित लिया, अब तक की सारी गलती माफ़ की हमनें आपकी, इतना बोल कर भावना जी हंसने लगी,

तभी पिता जी और भावना जी के पिता जी कमरे आते हैं, पिता जी बोले क्या हुआ बेटे केवल तुम ही चाल सकते हो, हमारी चल कैसी रही,

भावना जी के पिता जी बोले- दामाद जी ये एक साल का वक्त आप हम से मांग लेते, इतना दिमाग लगाने की जरुरत नहीं पड़ती, सभी एक साथ हंसने लगे,

इस तरह हमारी शादी भावना जी से हुई,

ये सारी बातें सोच कर मैं अपने आप पर ही हंसने लगा, मैं बैंक पहुच गया और अपने काम में व्यस्त हो गया,

हेल्लो दोस्तों मैं अल्पना सिंह श्रीधर पंडित का 4 भाग ले कर आई हूँ, आपलोगों को मेरी श्रीधर पंडित कहानियो की श्रृंखला कैसी लगी कमेंट कर मुझे जरुर बताईयेगा, श्रीधर पंडित का पांचवा और अंतिम भाग के लिए जुड़े रहिये मेरे ब्लॉग https://www.mystoriess.com/ से धन्वाद,

 

 

 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 

 





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