कहानी यादगार सफर की ,


 


रविवार का दिन था, घर में बहुत चहल-पहल थी, आयुषी की स्कूल फ्रेंड घर आई हुई थी, प्रिया उनके लिए चाय नास्ता बनाने में व्यस्त थीं, आयुषी 14  साल की डी.ऐ.वी स्कूल के क्लास 8  की स्टूडेंट थीं, प्रिया ऐसे तो किचेन में थीं, लेकिन उसका सारा ध्यान प्रिया और उसके फ्रेंड की बातों पर था, वे सभी अछत नाम के लड़के के बारे में बातें कर रहीं थीं, प्रिया और आयुषी दोनों माँ-बेटी थीं लेकिन दोनों का रिश्ता बिलकुल दोस्ताना था, जैसे ही आयुषी की फ्रेंड गयीं, प्रिया ने अक्षत के बारे में पूछ दिया आयुषी से, आयुषी बोली मम्मी बिहार बोर्ड का एग्जाम चल रहा है अभी, अक्षत अपनी साइकल से स्कूल आ रहा था, एक लड़की अपने पापा के साथ बाइक से एग्जाम देने जा रही थी, रास्ते में उनकी बाइक खराब हो गयी, और अक्षत ने अपनी साइकल उन्हें दे दी, इतना बोल कर आयुषी चहकते हुए बोली- पता हैं मम्मी उस दिन अक्षत आधा घंटा लेट स्कूल आया था, सर ने कारण पूछा तब अक्षत ने सारी बात बतायी, सर ने अक्षत से पूछा तुम्हारे पहचान वाले थे क्या वे लोग, अक्षत ने ना में सर हिलाया, तब क्लास के सारे लड़के अक्षत का मजाक उड़ाने लगे, कुछ तो बोल रहे थे अब अपनी साइकल भूल जा, नयी साइकल खरीदने की सोच तू, कुछ लड़कियां बोल रही थी बड़ा हीरो बनता है, आज घर जायेगा तो पिटेगा, पागल कहीं का, बिना सोचे समझे किसी को अपनी चीजे दे देता हैं, लेकिन मम्मी पता है आपको दुसरे दिन उस लड़की के पापा स्कूल आये थे, प्रिंसिपल सर से मिले और अक्षत के बारे में सब कुछ बताया, और अक्षत की साइकल वापस की, प्रिंसिपल सर ने असेम्बली में सभी के सामने अक्षत की साइकल वापस की और अक्षत की बहुत तारीफ की, इसके बाद क्लास के सारे लड़के-लड़कियां जो अक्षत को तरह-तरह की बातें कह रहे थे, आज वही सब अक्षत की तारीफ करते नहीं थक रहे थे, आयुषी बोलते-बोलते प्रिया से पूछ बैठी- मम्मी आपको अपने स्कूल लाइफ में ऐसे पागल से मुलाकात हुई है कभी, और ऐसे लोगो से से जिनकी सोच एक पल में बदल जाती है, प्रिया ने आयुषी की कान खींचते हुए बोली- चल अब तू मेरी खिचाई मत कर, ऐसे बहुत से लोग हैं, जो समय के अनुसार अपनी सोच बदल लेते हैं, यहीं दूनियाँ हैं बेटे, आयुषी प्रिया के कंधे पर झूलते हुए बोली, अब तुम बातें नहीं बदलो मम्मी, अपने स्कूल लाइफ की कोई स्टोरी सुनाओ, प्लीज़,प्लीज़ प्लीज़,

आयुषी के बहुत जिद करने पर प्रिया बोली- ठीक हैं मैं तुम्हें अपनी दादी माँ की एक कहानी सूनाती हूँ, कैसे उनके विचार रात में कुछ और, सुबह होते ही कुछ और हो जाते हैं,

आयुषी चहकते हुए बोलती हैं तुम्हारी दादी माँ की, यानी नानू के मम्मी की, प्रिया ने हँसते हुए कहा हाँ भई हाँ नानू के मम्मी की, इतना बोल कर प्रिया और आयुषी सोफे पर बैठ जाती है,

प्रिया बोलती हैं- बात तब की हैं जब मैंने इंटर का एग्जाम दिया था, दादी माँ की तबियत ठीक नहीं थीं, उनका इलाज बनारस से ही चलता था, इसलिए मम्मी पापा को उन्हें ले कर बनारस जाना था, पापा ने कहा प्रिया को भी साथ ले लेते हैं थोडा घूमना भी हो जायेगा, प्रिया इतना बोलते-बोलते पूरानी यादों में खो गयीं,

मैं, मम्मी, पापा और दादी माँ बनारस के लिए निकल गये, हमारे साथ पापा के एक दोस्त भी थे, वे पंडित थे, वे बोले बनारस चल रहे हैं तो विंध्याचल भी घूम लेंगे, प्लान के मुताबित हमलोग बनारस से विंध्याचल चले गये, पंडित जी विध्याचल पहले भी जा चुके थे, वे एक गाइड की तरह सभी जगह घुमाने लगे, पंडित जी हमलोगों को पहाड़ो के बिच अष्ठ्भूजी माँ के मंदिर ले कर गये, बहुत ही मनोरम दृश्य था, मुझे तो पहाड़ो पर घुमने में बहुत ही अच्छा लग रहा था, पंडित जी अपनी गुणगान करते नहीं थक रहे थे,

पंडित जी बोल रहे थे वकील साहब कई सारे लोग निचे से ही विंध्यवासिनी माँ के दर्शन कर के लौट जाते हैं उपर तो बहुत ही कम लोग आते हैं, दरअसल उन्हें पता ही नहीं होता की उपर भी घुमने की जगह हैं, हालाँकि और भी बहुत से लोग घूम रहे थे पहाड़ो पर, मेरे पापा जी उनके हाँ में हाँ मिला रहे थे, हम लोग अपने ही धुन में धीरे-धीरे चलते हुए आगे बढ़ रहे थे, तभी पंडित जी जोर से बोले- वकील साहब जल्दी-जल्दी चलिए 3 बज गये, 5 बजे तक हमें निचे उतर जाना होगा नहीं तो हमें कोई ऑटो-रिक्सा नहीं मिलेगा,  शाम होते ही यहाँ कोई नहीं रुकता है, बहुत से जंगली जानवर है इन जंगलो में, जो शाम होते ही बहर निकल आते हैं, हमलोग जल्दी-जल्दी चलने लगे, लेकिन मेरी दादी माँ जल्दी-जल्दी नहीं चल पा रहीं थीं, एक तो उनकी उम्र हो गयी थी, उस पर से वे थक गयीं थीं, फिर क्या था शाम हो गयी, हम लोग निचे नहीं उतर पाए, शाम होते ही पंडित जी हमें एक आश्रम में ले आये, पापा के चेहरे पर चिंता की रेखा साफ-साफ दिख रहा था, पहाड़ो के बिच तिन-चार रूम थे, और कोई समय होता तो बहुत ही मनोरम दृश्य था, लेकिन उस समय हमलोग बहुत डरे हुए थे, शाम के सात बज चुके थे, वहां केवल चार-पांच लोग ही रह गये, सभी साधू, पंडित थें, उनमे से किसी एक ने आ कर एक रूम का दरवाजा खोल दिया, दो चौकी के उपर बिस्तर लगा हुआ था, खाने के लिए उन लोगो ने पापा से पूछा, पापा ने कहा नहीं, यदि चावल आटा मिल सकता है तो दे दीजिये हम लोग खुद से बना लेंगे, सारा सामान ला कर दे दिया उन लोगो नें, शायद उन लोगो ने भी भांप लिया था की हम लोग डरे हुए हैं, इसलिए उन लोगो ने ज्यादा सवाल जवाब नहीं किया, लेकिन तभी मेरी दादी माँ पंडित जी को कोशने लगी, बोलने लगी पंडित जी ही हमलोगों को जान बुझ कर यहाँ ले कर आये हैं, मैंने महसूस किया की दादी माँ और मेरी मम्मी को जंगली जानवरों से ज्यादा उन पांच आदमियों का डर था, एक लड़का जो बहुत पहले से ही हमारे पीछे-पीछे चल रहा था, वही आ कर रुक गया, अभी तो मेरी दादी माँ का गुस्सा सातवे आसमान पर था, दादी माँ को उस लड़के पर भी सक हो रहा था, दादी माँ उस लड़के को झोली भर भर कर गालियाँ दे रही थीं, हमें सख्त हिदायत दी गयी की रात में हम किसी कीमत पर दरवाजा नहीं खोलें, यहाँ जंगली जानवरों का खतरा रहता हैं, एक तरफ दादी माँ और एक तरफ मम्मी बिच में मैं चौकी पर सोए, पापा और पंडित जी निचे एक पतली सी चादर बिछा कर सो गये, खैर रात बीत गयी, मुझे तो पता भी नहीं चला कब सुबह हो गयी, मेरी तो तब आँख खुली जब मम्मी ने मुझे जगाया, उन साधुओ में से एक साधू मेरे पापा के पास आया और बोला- आपका बेटा बहुत अच्छा और बहादुर हैं, रात भर पहरेदारी करता रहा, ऐसा बेटा भगवान सभी को दें, पापा चौक गये बोले कौन सा बेटा, सामने देखा तो ये वहीँ लड़का था जो बहुत देर से हमारे पिछे-पिछे चल रहा था, पास के जंगली पेड़ से दातुन तोड़ कर मुहं धो रहा था, हँसते हुए मेरे पापा के पास आया और बोला- अभी चलना हैं अंकल या आज भी रुकने का इरादा हैं,

पापा हँसते हुए बोले- आज निकलेंगे,  उस लड़के ने कहा- चलिए तब,                          

पापा ने उस लड़के से पूछा आप भी इधर घुमने आए थे,

 मैं यहीं का रहने वाला हूँ, फ़ौज में काम करता हूँ, छुटियो में जब भी घर आता हूँ, इधर घुमने जरुर आता हूँ, उस लड़के ने कहा, मैं देख रहा था अंकल आपलोग बहुत डरे हुए थे, ऐसे डरने की बात भी थीं, दिन में ये जगह जितनी सुंदर और सुहावनी हैं, रात में उतनी ही डरावनी, रात में यहाँ रुकना खतरे से खाली नहीं होता, और ओ भी तब जब फेमिली साथ हो, ऐसे मेरी गाड़ी निचे खड़ी हैं और मेरे कुछ दोस्त भी, मैं रात में आप लोगो को और डराना नहीं चाहता था इसलिए चुप रहा, यदि आप चाहे तो मै बस स्टॉप तक छोड़ सकता हूँ आपलोगों को, पापा तैयार हो गये, निचे जीप खड़ी थीं, उस लड़के ने हमलोगों को बस स्टापेज पर छोड़ दिया, यहाँ से आपलोगों को बनारस के लिए आसानी से बस मिल जायेगा, मेरी दादी माँ झोली भर-भर कर दुआएं दे रही थी, जिसे दादी माँ रात भर झोली भर गालियाँ दे रहीं थी, और मैं हंस रहीं थी, सभी उसकी तारीफ कर रहे थें, मैं उसे जीप में बैठ कर जाते हुए तब तक देखती रही जब तक उसका मुस्कुराता चेहरा मेरी आँखों से ओझल नहीं हो गया,

इतना सुन कर आयुषी जोर-जोर से हंसने लगी, प्रिया भी हंस रही थी, तभी निशांत की आवाज सुने पड़ी, निशांत सोफे पर बैठते हुए बोले- क्या बात है भाई दोनों माँ-बेटी इतना क्यों हँसे जा रही हो, मुझे भी सुनाओ चुटकुला, आयुषी हँसते हुए अपने पापा के बगल में बैठ कर बातें करने लगी,

निशांत ऑफिस से आ गये थे, प्रिया चाय-नास्ता बनाने किचेन में चली गयीं,

                                                             अल्पना सिंह

 

 

 

 

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