डर ,

ये मेरी छोटी-छोटी कहानियो की श्रृंखला है, 

घड़ी में टाइम देखा 5:30 हो गए, अरे इतना टाइम हो गया, जल्दी-जल्दी अपना बैग उठाई और सड़क पर निकल आई, ओह इतना अँधेरा हो गया, ठंढ भी काफी हैं, बाहर आई तो हलकी बूंदा-बांदी हो रही थीं, सड़क पर एक भी आदमी दिखाई नहीं दे रहा था, एक दम सन्नाटा था, तेज कदमो से चलती हुई मैं अपने घर की ओर बढ़ने लगी, तभी मुझे कुछ कदमो की आहट सुनाई पड़ी, पीछे पलट कर देखा चार लोग थे, ऐसा लग रहा था जैसे नशे में हो, मेरे माथे पर पसीना आ गया, मैं अंदर तक हिल गयी, किसी तरह अपने डर पर काबू करते हुए तेज कदमो से चलते हुए एक गली में घुस गयी, ये मैं किस गली में आ गयी, शायद मैं रास्ता भटक गयी, डर के कारण में गलत गली में घुस आई, ओह्ह अब क्या होगा, कदमो की आहट तेज सुनाई देने लगी, शायद वे लोग मेरे नजदीक आ गये थे, अनेको बुरे ख्याल मेरे जेहन में आ जा रहे थे, गली कुछ जानी पहचानी सी लग रही है, अरे ये तो मैं मेरी बचपन की सहेली रंजू के गली में आ गयी, मैं तेज कदमो से बढती हुई रंजू के घर की ओर चल दी, वहां ताला लगा था, ओह्ह याद आया रंजू की तो शादी हो गयी हैं, लेकिन उसके मम्मी-पापा, भाई ये सब कहाँ गये, कहीं गये होंगे, मैं तेज कदमो से आगे निकल गयी, सामने एक दीवार थी, उस दीवार के पीछे छुप गयी, मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था डर के मारे मेरे हाथ पैर कांप रहे थे, इतनी ठंढ में भी मुझे पसीना चल रहा था, मैं अपना सर घुमा कर चारो तरफ देख रही थी, कदमो की आहट नजदीक आते जा रही थी, जैसे-जैसे कदमो की आवाज नजदीक आ रही थी, वैसे-वैसे मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी, तभी मुझे सामने मेन रोड दिखाई दिया, और मेन रोड पर मेरी मम्मी, शायद मुझे ही ढूंढ रहीं थीं, मम्मी को देख कर मुझमे हिम्मत आ गयी, मैंने पूरी ताकत से मेन रोड की ओर दौड़ लगा दी, तभी मेरे पैरो से कुछ टकराया शायद पत्थर से ठेस लगा और मैं जोर से पेट के तरफ से ही सड़क पर गिर पड़ी, सर उठा कर देखा तो वे चारो मेरे सामने खड़े थे, चारो ने मुझे घेर लिया था, मुझे उनके पैर दिखाई दे रहे थे, और उनके पैरो के बिच से मुझें मेरी मम्मी, मैंने चीखने की कोशिश की लेकिन डर के मारे मेरे मुहं से आवाज ही नहीं निकला, आवाज मेरे गले में ही अटक गयी थी, मैं हांफ रही थी, मेरे होंठ कांप रहे थे, मेरी सांसे उखड़ी हुई थीं, एक बार फिर मैं पूरी ताकत लगा कर जोर से चिल्लाई मम्मी ईईई!!!!!!!

फिर मेरी आँखे बंद हो गयी, और जब आँखे खुली तो मैं अपने बिस्तर पर थी, मेरी बेटी मुझे झकझोर कर उठा रही थीं, मम्मी क्या हुआ क्यों चिल्लाई आप, पति देव गुस्सा कर रहे थे, आज से ये लिखना-पढ़ना सब बंद, ना जाने कहाँ से इसे लिखने का भुत सवार हो गया हैं, ये सब उसी का नतीजा हैं, मैं चुप-चाप सुन रहीं थीं, क्यों की मैं अभी तक सपने के सदमे से बाहर नहीं आई थीं, मैं पसीने से नहाई हुई थी, मेरी सांसे तेज चल रहीं थी, मन ही मन ये सोच रही थी, थैंक गॉड ये एक सपना था, तभी मोबाईल की घंटी बजी बेटी बोली मम्मी स्कूल से फ़ोन आया हैं, बोल दू आज आप नहीं जाएँगी, मैं बोली नहीं, जा रही हूँ मैं तैयार होने, अपने कपड़े उठाई और बाथरूम में चली गयी, लेकिन दिमाग में अभी भी वही सपना घूम रहा था, न जाने सपने में भी इन्सान कहाँ-कहाँ सफ़र कर के चला आता है, उफ़ ये सपने भी ना,  

                     अल्पना सिंह

 

 

 

 

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