Diapers
Diapers – इस बार होली में मैं अपने एक पड़ोसी के घर गयी, उनका घर मेरे
घर से थोड़ी दुरी पर हैं हर दिन मिलना नहीं हो पता है, या यूँ कहे महीनो नहीं मिलना
हो पाता है, होली था तो सभी औरते उधर चल दी, मैं भी चल दी उनके पीछे-पीछे, हम सभी वहा जा कर रुक
गए, संजू आंटी बोली-किरण बाहर ही आ जाओ,
हम अंदर आयेंगे तो तुम्हारा घर गन्दा हो जायेगा,
किरण भाभी हँसते हुए बाहर
निकल आई, उनके बाल गिले थे, लग रहा था अभी अभी नहा कर आई है,
मैंने कहा ये क्या भाभी आप
बिना होली खेले ही नहा ली,
भाभी हंस कर बोली- मेरा तो
रोज तिन चार बार नहाना हो जाता है,
मैं बोली- तिन चार बार
क्यों ?
भाभी बोली- सासु माँ के
कारण, मेरी सासु माँ बीमार रहती हैं ना, मैं मन में सोची सासु माँ बीमार रहती हैं
इसमें नहाने का क्या सम्बन्ध हो सकता हैं
संजू आंटी बोली- ठीक हैं तो
आप जा कर सम्हालि, हम लोग चलते है,
किरण भाभी बोली- ऐसे कैसे
चलते हैं बिना कुछ खाए-पिए वह भी होली के दिन, किरण भाभी के जिद करने पर हम सब उनके
घर के अंदर आ गये, हम पांच औरते थीं, उन्होंने हमें हॉल में बैठाया और किचेन में
चली गयी, थोड़ी देर में एक आवाज सुनाई दी मम्मी दादी कुछ बोल रही है, भाभी दौड़ कर
रूम में गयी और कंधे से सहारा देते हुए एक वृद्ध महिला को ले कर निकली, शायद यही
उनकी सासु माँ थी, मैं झट से उठी और दूसरी तरफ से सहारा दिया, उन्हें बाथरूम जाना था,
बाथरूम का रास्ता हॉल से हो कर जा रहा था, बाथरूम तक भी रोक नहीं पायीं, हॉल भी
गन्दा हो गया, मैं किरण भाभी के साथ उन्हें सहारा दे कर बाथरूम ले गयी, किरण भाभी
ने बाथरूम पहले से एक चेयर लगा रखा था, भाभी सासु माँ को वहां बैठा कर हॉल में गयी
हॉल साफ किया और वापस आ कर सासु माँ को नहलाया कपडे बदले अपने भी कपडे बदले , मेरे
कपडे भी गंदे हो गये थे मुझे भी कपडे दिया मैं भी कपडा चेंज कर, सासु माँ को सहारा
दे कर बहार लायी,
सजू आंटी बोली किरण इन्हें
हॉल में ही रखा कर, हॉल से बाथरूम की दुरी कम हैं,
किरण भाभी बोली- यहीं हॉल
में ही सोती हूँ मैं इनके साथ, ( मैंने देखा एक बेड भी लगा हुआ था हॉल में) और
सोफे पर मेरे पति सोते हैं, उनके रहने पर आसानी होती हैं इन्हें..........,दो साल
पहले इन्हें लकवा मार दिया था, तब इलाज और मालिश से ठीक हो गयी थी, हाथो में लकुटी
ले कर अपना काम कर लेती थी, लेकिन ये दूसरी बार लकवा मार दिया,तब से माँ जी बिलकुल
लाचार हो गयी अपना काम भी नहीं कर पाती है, मेड रखा हैं, इन्होने ने, लेकिन माँ जी
का सारा काम मैं खुद करती हूँ, विश्वाश नहीं मुझे उस पर, आखिर गैर तो गैर ही होता
हैं,
उनकी ये बात मेरे दिल को छू गयी, उनका बोलने का
लहजा देहाती था, लेकिन ना जाने क्यों किरण भाभी मुझे बहुत खुबसूरत दिख रही थी, मैं
किरण भाभी को देख रही थी, लेस मात्र भी घृणा नहीं थी उनके चेहरे पर, उन्होंने बड़े
प्यार से सासु माँ को बेड पर बैठाया, मैं थोड़ी देर चुप रही फिर धीरे से बोली- आप
डायपर(diapers ) क्यों नहीं यूज़ करती है, यदि आप अफ्फोर्ड कर सकती हैं तो,
किरण भाभी आश्चर्य से डायपर
ये तो बच्चो के लिए होता है,
मैं बोली- अब बड़ो के लिए भी
आ गया है, ऑनलाइन माँगा लीजिये,
अफ्फोर्ड करने की क्या बात है, उससे ज्यादा पैसा तो दवा में लग जा रहा हैं गिले कपड़ो की वजह से या बार-बार नहाने की वजह से,जल्दी - जल्दी बीमार पड़ जा रही हैं, मैं अभी इनसे (हसबैंड )से कहती हूँ डायपर लाने के,
मैंने देखा उनकी सासु माँ कुछ
मांग रहीं हैं, लेकिन क्या? किरण भाभी उठीं और उनके लिए खाना ले कर आई, ओह्ह तो
खाना मांग रही थीं, जैसे एक माँ अपने बच्चे के इशारे को समझ जाती है, वैसे ही किरण
भाभी भी उनके इशारे को बिना बोले समझ गयी,
किरण भाभी ने बच्चे की तरह गले में टावल लगाया,
और उन्हें अपने हाथो से खाना खिलने लगी, मेरे पास कोई शब्द नहीं थे उनसे बोलने के
लिए, मैं निशब्द केवल उन्हें देख रहीं थी, उनके सेवा भाव को, उनके प्रेम को, उनके
समर्पण को,
अल्पना सिंह
Bhut hi achi kahani
ReplyDeletevery nice story
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