वेद,हिंदी कहानी
एक कहानी एक बेटे की, बाप बेटे के नाजुक रिश्ते की, कैसे एक बेटा अपने पिता को अपने धैर्य और संयम से एक गहरे अवसाद (Depression) से बाहर निकालता है, और
अपने परिवार को खुशहाल बनता है,
कही जाता क्यों नहीं है कब
तक बैठा रहेगा घर में, कोई काम धाम नहीं करेगा तो कोई अपनी लड़की की शादी भी नहीं
करेगा तुमसे, पढ़ा-लिखा कर इंजीनिअर बना दिया, अब भी घर में बैठा हैं, ऐसे ही तानो
को सुन कर भी अनसुना कर देता हैं वेद, वेद रामचरण बाबु और सविता ने यही नाम रखा था
अपने बेटे का,
माँ बहुत भूख लगी हैं खाना
बन गया क्या, सविता खाना ले कर आई और रख दिया वेद के सामने, और साथ में चार बाते
भी परोस दी, ले ठूंस ले, और जा अपने अपने निठल्ले दोस्तों के साथ घूम गली- गली
आवारागर्दी कर और काम क्या रह गया है तेरा,
वेद बोला माँ मैं बाबु जी
के साथ खेत पर था, गेहं कटाई हो रही हैं वहां, कहीं घूम नहीं रहा था, इतना बोल कर
वेद बेपरवाही से अपनी दादी के पास बैठ कर खाना खाने लगता है,
सविता बोली हाँ तो यहीं काम
रह गया हैं अब तेरा, गेहूं काट, बोझा ढो, इसीलिए तो पढ़ा-लिखा कर इंजिनीअर बनाया था
तुझे,
तभी दरवाजे से वेद का चचेरा
भाई श्याम वेद को आवाज लगता है, भईया चलियेगा क्या खेत पर, वेद आवाज सुन कर बोलता
हैं आ रहा हूँ, माँ मैं जा रहा हूँ इतना बोल कर वेद घर से निकल गया,
श्याम वेद से बोलता
हैं- भईया कब तक ऐसे चलेगा, ठीक ही तो बोल रही हैं काकी,
एक गहरी साँस लेते हुए वेद बोला- मैं भी काम करना चाहता हूँ, अपना घर हो, गाड़ी हो, इसलिए तो कंपनी में रिज्यूम भेजता रहता हूँ, आज ही एक कम्पनी से ऑफर लैटर आया हैं 45 हजार सेलरी दे रही हैं, लेकिन क्या करू यार पैर ही बहार नहीं निकल रहे हैं, माँ कैसे सम्हालेगी इतना सब अकेली, दादी माँ 70 पार कर चुकी हैं, बाबु जी को भी सुगर और बिपि हो गया है, बाबु जी को समय पर दवा-पानी सब मिलना चाहिए, और अब माँ की भी उम्र हो चली हैं, इतना सब अकेले करना उनके बस की बात नहीं, ऋतू दीदी थीं तब इन बातो का मुझे पता भि नहीं चलता था, सब कुछ अकेले ही सम्हाल रखा था, वह मेरे घर की लक्ष्मी थी यार, आज मुझे लगता है यदि मैं बाहरजा कर पढ़ पाया तो इसका श्रेय केवल ऋतू दीदी को जाता हैं,
श्याम बोला- अरे भईया ऋतू दीदी को क्यों नहीं बुला लेते ही कुछ दिनों के लिए,
वेद थोडा गुस्सा करते हुए-
नहीं, बिलकुल नहीं, उसकी नयी-नयी गृहस्थी हैं, जिसे बहुत प्रेम से सम्हाल रही है,
उसके ससुराल वाले भी उसे बहुत प्रेम करते हैं, इस बार ऋतू दीदी और जीजा जी गोवा
घुमने गये थे, देख कितनी अच्छी तस्वीरे हैं, मोबाईल निकल कर फोटो दिखता हैं, फोटो
दिखाते वक्त वेद की आँखे चमक उठती है, ख़ुशी से चेहरा खिल उठता है,
श्याम बोलता हैं- लेकिन
भईया, ऋतू दीदी को भी आपकी चिंता रहती हैं, बाते होती है मेरी भी उनसे, हमेशा आपके
बारे में पूछती रहती हैं,
वेद हँसते हुए बोलता हैं,
कोई बात नहीं, अभी उसे केवल मेरे काम नहीं करने की चिंता होती हैं, लेकिन माँ,
बाबु जी, दादी की नहीं, इनकी देख भाल के लिए मैं यहाँ हूँ न, वह ख़ुशी से अपने
ससुराल में हैं, और तू भी उसे कुछ नहीं बतायेगा, ये वादा कर मुझसे,
श्याम ने हां में सर हिला
दिया,
रामचरण बाबु बेटे के पीछे
खड़े सारी बाते सुन रहे थे, बेटे की बाते सुन कर वे चुप चाप पीछे लौट जाते हैं, उनके दिमाग में बेटे की
बाते घुमने लगती हैं, पुरानी बाते याद आ जाती हैं, अपने दोनों बच्चो के जन्म पर
बहुत खुश थे, दोनों को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहते थे,और दोनों बच्चो ने भी
उन्हें कभी निराश नहीं किया, खूब मन लगा कर पढाई कि, बेटी ऋतू ने पढाई के
साथ-साथ घर की जिम्मेदारी कब अपने कंधो पर उठा लिया पता भी नहीं चला, ग्रेजुएसन
करने के बाद ऋतू बी.एड करना चाहती थी, लेकिन रामचरण जी ने अपनी जिम्मेदारी को
ज्यादा महत्त्व दिया, बेटी का विवाह एक पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती हैं,
इसलिए बेटी का विवाह कर दिया, रामचरण बाबु की इच्छा थी की वेद पढ़-लिख कर इंजीनिअर बने, वेद इंजीनियर भी बन
गया, और एक प्राइवेट कंपनी में जॉब भी लग गयी, बेटे की नौकरी लगने से रामचरण बाबु
की आर्थिक स्थिति सुदिढ़ हो गयी, बेटी की शादी में उन्हें बहुत मदद मिला, सब ठीक चल
रहा था, तभी एक हादसा हुआ,
पास के गाँव में उनके एक रिश्तेदार रहते थे उनकी मृत्यु हो जाती है, रामचरण बाबु अपने रिश्तेदार के मृत्यु भोज में सम्मलित होने जाते है, वहां की कहानी सुन कर रामचरण बाबु के होश उड़ जाते है, उनके रिश्तेदार का लड़का विदेश में रहता था, चार साल से अपने बेटे का इन्तजार करते-करते आज उनकी मृत्यु हो गयी, अंतिम संस्कार करने भी नहीं आया उनका बेटा, केवल पैसे भिजवा दिया, ये सारी बाते सुन कर रामचरण बाबु को धक्का सा लगा, दिमाग शून्य हो गया, उनको वेद की कही बात याद आ गयी, वेद कह रहा था- मेरे अच्छे काम को देख कर कंपनी मुझे विदेश भेज रही है, रामचरण बाबु के कदम लड़खड़ाने लगे, रामचरण बाबु का पूरा शारीर पसीना से भीग गया, घर आते-आते रामचरण बाबु दरवाजे पर ही लड्खाकर कर गिर जाते हैं, वेद और सविता बहुत घबरा जाते है, वेद कुछ गाँव वालो के साथ मिलकर रामचरण बाबु को
हॉस्पिटल ले कर
जाता है, डाक्टर साहेब चेक करने के बाद वेद को एक पर्ची देते हुए बोलते हैं ये
दवाईयां हैं ले लीजिये, इन्हें माईनर अटैक आया हैं, अभी तो सब ठीक हैं लेकिन आगे
से विशेष ध्यान रखियेग,
वेद और सविता दोनों सोच में
पड़ जाते हैं ऐसा क्या हुआ था वहां, जो इन्हें अटैक आ गया, सारी बात जानने के बाद
सविता रामचरण बाबु को समझाने की बहुत कोशिश करती है, कहती है सारे लोग ऐसे नहीं
होते, 100 में से कोई एक ऐसा होता हैं, हमारा बेटा ऐसा नहीं हैं, हमे
हमारे बेटे पर पूरा भरोसा हैं, और आप भी तो गये थे बाहर काम करने, बाबु जी के जाने
के बाद क्या मैंने माँ जी की सेवा में कोई कमी की हैं, जो हमारा बेटा हमारे साथ ऐसा
करेगा,
रामचरण बाबु बोलते हैं हमलोगों
का समय कुछ और था सविता, अब समय बदल गया हैं, अब बेटे विदेश जाते हैं तो वापस ही
नहीं आते वहीँ बस जा रहे हैं, बूढ़े माँ बाप को बोझ समझते हैं उन्हें वृद्धा आश्रम
में भेज देते हैं,
सविता- ये वृद्धा आश्रम ये
क्या होता हैं जी,
रामचरण बाबु बोलते हैं-
जैसे अनाथ बच्चो के लिए अनाथ आश्रम होता हैं, बूढ़े लोगो के लिए वृद्धाआश्रम होता
है,
सविता बोलती है- मैंने तो
ना देखा कोई वृद्धा आश्रम दूर दूर तक,
रामचरण बाबु बोलते है- ये
बड़े-बड़े शहरो में होता हैं,तू नहीं समझेगी, रामचरण बाबु किसी भी तरह से समझने को
तैयार नहीं थे, उनके दिमाग में वह बात घर कर गयीं थीं,
वेद भी इस बात को समझ गया
था, वेद अपने बाबु जी को खोना नहीं चाहता था इसलिए उसने बाहर जा कर काम करने का इरादा ही छोड़ दिया,
पहले वेद के लिए रिश्तो की
लाईन लगी हुई थी, लेकिन अब रिश्ता दरवाजे से लौट जा रहा था, सविता पति को तो कुछ
बोल नहीं सकती, इसलिए सारा गुस्सा वेद पर निकलती थी, रामचरण बाबु ये जानते थे, फिर
भी उन्होंने चुपी साध ली थी, लेकिन आज वेद की बातो ने उनकी अंतरात्मा को झकझोर के
रख दिया, जैसे किसी ने उन्हें नींद से जगा दिया हो, ये क्या कर रहा था
मैं अपने पुत्र मोह के कारण अपने ही बेटे के सफलता के रास्ते का रोड़ा बन रहा था,
भविष्य की चिंता में अपने ही हाथो अपने बच्चो का वर्तमान बिगाड़ रहा था मैं, कल की
चिंता में आज को अंधकार से भर रहा था मैं, ये मैं खुद पर सक नहीं कर रहा था, अपने
परवारिश पर सक कर रहा था, अपने संस्कार पर सक कर रहा था, मैं ऐसा नहीं कर सकता,
मुझे सब ठीक करना होगा,
घर आते ही रामचरण बाबु
सविता से बोलते हैं, अपना ख्याल रखा करो ज्यादा काम करोगी तो बीमार पड़ जाओगी,
मैंने धनियाँ के मेहरारू को बोल दिया हैं अभी वह मायके गयी हैं, मायके से आएगी तब
घर के कामो में तुम्हारा हाथ बटा दिया करेगी,
सविता आश्चर्य से अपने पति
को देख रही हैं,
रामचरण बाबु बोलते हैं-
सुनो वेद और मेरा खाना साथ में लगाना,
सविता बोलती है- अभी वेद
नहीं आया है,
रामचरण बाबु बोलते है ठीक
है जब आये तो मुझे बुला लेना,
वेद घर आते ही अपने बाबु जी
के पास जाता हैं, आपने मुझे बुलाया बाबु जी?
रामचरण बाबु वेद से बोलते
हैं- बेटा मैं सोच रहा हूँ इस बार की फसल बेच कर ऋतू को बी.एड करा दूँ, एक बार दामाद
जी से बात कर लो,
वेद आश्चर्य से बाबु जी को
देखता हैं और बोलता है ठीक हैं बाबु जी, वेद अपने जीजा जी को फ़ोन लगता हैं, और
बोलता हैं जीजा जी ख़ुशी-ख़ुशी मान गये हैं,
रामचरण बाबु के चेहरे पर
संतोष के भाव दिखाई देते हैं,
खाना लग गया है सविता बोलती
हैं, दोनों बाप-बेटे खाना खाने बैठते हैं, थोड़ी देर चुप रहने के बाद रामचरण बाबु बोलते
हैं- वेद तुमने अपने बारे में क्या सोचा हैं,
वेद एक बार फिर आश्चर्य से अपने बाबु जी को
देखता हैं, क्या सोचा है मतलब?
रामचरण बाबु बोलते हैं-
मतलब अपने नौकरी के बारे में, मैं बोल रहा था की एक बार तुम अपनी पुरानी वाली
कंपनी में क्यों नहीं कोशिश करते हो, वे लोग तुम्हारे काम को जानते भी हैं, और वह
कंपनी तुम्हे विदेश भी भेज रही थी, वेद अपने बाबु जी की बाते सुन रहा था, रामचरण
बाबु हँसते हुए बोलते हैं तुम्हारे विदेश में नौकरी लगने से शायद मुझे और तुम्हारी
माँ को भी विदेश घुमने का मौका मिल जाये, इतना बोल कर रामचरण बाबु खिलखिला कर
हंसने लगते हैं,
बहुत दिनों बाद वेद अपने बाबु जी को ऐसे खुल कर हँसते हुए देख रहा था, कोई अवसाद नहीं था उनके चेहरे पर, खाना ख़तम कर वेद और रामचरण बाबु आँगन में बिछे खाट पर आ कर बैठते हैं, वेद अपने बाबु जी के हाथो को अपने हाथो में लेकर कहता हैं- बाबु जी इस दुनिया में सभी रिश्ते प्यार और विश्वास पर ठीके होते हैं, ये प्रेम और विश्वास ही तो है बाबु जी, जो परिवार को दुसरे से जोड़े रखता हैं, मेरा आपका रिश्ता तो इस प्यार और विश्वास से भी उपर हैं बाप बेटे का रिश्ता, मैं जनता हूँ आपने और माँ ने मुझे और ऋतू दीदी को पाल-पोस कर बड़ा करने में, हमें खुश रखने के लिए बहुत से समझौते किये हैं, लेकिन बाबु जी केवल माँ बाप ही अपने बच्चो से प्यार नहीं करते, बच्चे भी अपने माँ बाप से बहुत प्यार करते हैं, सिर्फ माँ-बाप ही अपने बच्चो को खुश नहीं देखना चाहते, बच्चे भी अपने माँ बाप को खुश देखना चाहते है, बाबु जी मैं दुनियां में कही भी जाऊ लौट कर आप दोनों के पास ही आऊंगा, इतना विश्वास कर सकते हैं आप मुझ पर, रामचरण बाबु अपने बेटे को सिने से लगा लेते हैं,
बाप बेटे को ऐसे गले मिलते
देख सविता के आँखों में आंसू आ जाते हैं, उसे ऐसा लगता हैं मानो अवसाद के काले घने
बादल जिसने उनके घर को घेर रखा था सूरज की पहली किरण उसे चिर कर नया सवेरा ले आई
हो,
अल्पना सिंह
Very nice story 👏
ReplyDeletethankyou so much
Deletebhut achi kahani hai
ReplyDeleteNice story
ReplyDeleteThanks
DeleteNice story
ReplyDeleteThank you
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