पहला प्रेम पत्र (भाग -2)

 

पहला प्रेम पत्र(First love letter )

[दिल के कोरे कागज पर प्रेम का पहला सिंग्नेच्र्र अक्सर गुमनाम रह जाता हैI]    मेरी ये कहानी काल्पनिक हैं, मेरी ये कहानी थोड़ी लम्बी हो गयी है, इसलिए कुछ किस्तों में आपके सामने ला रही हूँ, कोई सुझाव या सुधार हो तो कमेन्ट कर जरुर बताये, यदि लेखनी में कोई गलती हो गयी हो तो माफ़ कीजियेगा, अपना आशीर्वाद और स्नेह बनाये रखियेगा,


बात तब की हैं जब मैं नववी क्लास पास कर दसवीं में गयी थी, वह मेरे घर के बगल वाले घर में रहता था, यूँ तो मैं उसे बचपन से जानती थीं लेकिन अभी उसके देखने का नजरियाँ बदल गया था ! या मैं बदल गयी थी, इतनी समझ तो थीं नहीं मुझमे उस वक्त, लेकिन कुछ तो चल रहा था मेरे उसके बिच, वह भी छत पर रहता था और मैं भी, दोनों घंटो एक दुसरे को देखते रहते थे, वह भी चुप रहता था मैं भी, घर पास-पास था, इसलिए लगभग हर दिन मुलाकात हो जाती थी, नजरो से नजरे मिल जाती तो नजरे चुरा लेती थी मैं, और जिस दिन वह नजर नहीं आता नजरे उसे देखने के लिए बैचेन हो उठती थीं, ये कैसी कसमकस थी, दिल जो समझ रहा था, दिमाग उसे मानने को तैयार नहीं था, मोहल्ले के चौराहे पर एक शिव मंदिर था, वह वहीँ खड़ा रहता था, (लोफर कहीं का, आते-जाते लडकियों, औरतो को तारता रहता है, आवारा कही का, स्कूल के बहार भी खड़ा रहता हैं, अपनी सहेलियों से ऐसी बाते करते चोर निगाहों से उसे देखती हुई घर आ जाती थीं, ) उस दिन उसने गुलाब की कलि कह कर क्या संबोधित किया, मेरी सहेलियां हँसने लगीं, मुड़ कर देखा तो वह भी हँस रहा था, उसके दोस्त भी हँस रहे थे, लेकिन मुझे क्या हुआ मुझे पता नहीं, गुस्से से मेरा चेहरा लाल हो गया, मैं उसके पास जा कर गुस्से से बोली
लोफर आवारा कहीं का, कुछ गालियाँ भी निकल गयी मेरे मुहं से” l वह तब भी हँस रहा था, मैं गुस्से में बोले जा रही थी- “ बहुत नाम रौशन कर रहे हो अंकल-आंटी का”

 इतना सुन कर थोडा सीरियस होते हुए बोला- “काम तो मैं ऐसा करूँगा की मुझे बनाने वाले को भी फक्र होगा मुझ पर”,

 

मैं गुस्से से बोली- कैसे ? ऐसे नुक्कड़ पर खड़े हो कर लडकियों को छेड़ कर,

 इस बार मेरी बारी थीं, इतना सुन कर मेरी सहेलियां और उसके दोस्त सभी हँसने लगे, और मैं तेज कदमो से चलते हुए अपने घर की ओर चली आई, मेरा गुस्सा अभी भी शांत नहीं हुआ था, घर पहुँच कर बैग टेबल पर रखा और दनदनाती हुई जा पहुंची उसके घर,“ आपका लड़का बिलकुल आवारा हो गया है, गली में खड़े हो कर लडकियों को छेड़ते रहता हैं”,

 अंकल-आंटी दोनों मेरी बात सुन कर सकते में आ गये,

अंकल गुस्से से बोले- आने दो उसे बताता हूँ मैं “, अंकल गुस्से से बोले जा रहे थे- आवारा हो गया हैं एक दम, गली के नुक्कड़ पर खड़े हो कर लडकियों को छेड़ रहा है आज कल, पढ़ाई-लिखाई साढ़े बाईस, वेश तो देखो साहबजादे का कैसा बना रखा हैं, 

मैंने पीछे मुड़ कर देखा, वह मेरे पीछे ही खड़ा था, वह कब मेरे पीछे आ कर खड़ा हो गया मुझे पता भी नहीं चला, बाल बिखरे, आधी शर्ट जींस से बाहर, आधी अंदर, मैंने कनखियों से देखा, वह मुझे ही देख रहा था, मैं निचे सर किये वहां से घर चली आई, उसे डांट खिला कर मुझे बहुत ख़ुशी हुई, लेकिन ये ख़ुशी ज्यादा देर नहीं रही, सो कर उठी तो देखा उसके कमरे की खिड़की बंद थी, मन ही मन सोचा गुस्से में होगा, कुछ सोचते हुए छत पर गयी, वहां भी नहीं था, जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया उसकी एक झलक देखने के लिए बैचैन हो गयी मैं, दसों बार छत पर गयी, उसके कमरे की खिड़की को झांक रही थी बार-बार, मन ही मन गुस्सा कर रही थी उस पर, इतना भी क्या गुस्सा जनाब का, अभी जाती हूँ उसके घर और बताती हूँ उसे,” लेकिन कुछ सोच कर आधे रास्ते से लौट आई, पता नहीं क्या सोचेगा मेरे बारे में? उसने मुझसे कभी कुछ कहा थोड़े ही हैं, लेकिन देखता तो रहता हैं, हाँ तो देखने से क्या? कई सवाल खुद से पूछती और उसका जवाब भी खुद ही दे रही थी, ऐसे ही दिल और दिमाग के उधेड़-बुन में तिन दिन गुजर गये, ये कैसी कसमकस थी पता नहीं, मैं खुद ही खुद को समझा रही थी, उसके दिल में कुछ नहीं तुम्हारे लिए ऐसे ही मस्ती कर रहा होगा, लेकिन दिल हैं की मानता नहीं, उसकी एक झलक देखने के लिए कभी छत पर, कभी शिव मंदिर चली जा रही थी, इसी हां ना में एक सप्ताह गुजर गया, क्रमस:

                             अल्पना सिंह

 

 

 

 

 

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