पहला प्रेम पत्र (भाग -3)
पहला प्रेम पत्र (भाग -3)
एक सुबह सो कर उठी तो देखा उसके कमरे की खिड़की खुली थी, झांक कर देखा वहां कोई नहीं था, मैं दौड़ कर छत पर गयी, कुर्सी थीं वहां, उस पर किताब भी रखी हुई थीं, लेकिन दिल जिसे देखने के लिए बेचैन था वो नहीं था, मैं चारो तरफ देखने लगी, लेकिन वो कही नहीं दिखाई दिया, मैं अपनी आँखे बंद कर वही खड़ी हो गयी और मन ही मन सोच रही थी, वो नहीं हैं शायद आंटी कमरा साफ कर रही होंगी, जब आँखे खोली तो वह बिलकुल मेरे सामने खड़ा था और अपने आँखों से इशारे कर पूछ रहा था “मुझे ही ढूंढ रही हो ?” अचानक से उसे सामने देख कर मैं घबरा गयी, मैं दौड़ कर सीडीओ के पास दीवार के पीछे छुप गयीं, मेरा दिल जोर-जोर से धडकने लगा, मैं भी कितनी बावली थीं, जिसकी एक झलक देखने के लिए इतनी तड़प रही थी, उसे सामने देख कर छुप गयी, थोड़ी देर मैं वहीँ दीवार के पीछे आँखे बंद किये खड़ी रही, मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था, मैंने धीरे से झांक कर देखा वह वहीँ खड़ा मुस्कुरा रहा था, उसे देखने के बाद, कैसा एहसास हुआ पता नहीं लेकिन मेरे पैर जमीं पर नहीं टिक रहे थे, जैसे मेरे पंख निकल आये हो, मैं हवा में उड़ रही थीं, मैं शब्दों में बयाँ नहीं कर सकती की उसका मुझे ऐसे मुस्कुरा कर देखना मेरे दिल को कितना सुकून दे रहा था, मैं दौड़ कर अपने कमरे में आई, अपनी खिड़की से झांक कर देखा तो वह भी अपने खिड़की से मुझे ही देख रहा था, फिर शुरू हो गयी नजरो से नजरो की लुका-छिपी, इशारो-इशारो में बाते, कभी छत के उपर से, किताबो के पीछे से, कभी गली के नुक्कड़ पर, कभी स्कूल के रास्तो में छोटी छोटी मुलाकाते होने लगी,आँखों ही आँखों में इशारो से रोज बाते होती थी, लेकिन जुबां से कभी कोई बात नहीं हो पायी,लगता था जैसे मर्यादा की एक लाईन खिची हुई थी हमदोनो के बिच, जिसे न वो लाँघ पा रहा था और नाही मैं l ना उसने कभी बात करने की कोशिश की और न मैंने,
एक दिन आंटी मिठाई ले कर आई,मम्मी ने हंस कर कहा- अरे सरला जी ये मिठाई किस ख़ुशी में,
आंटी बोली - नील ने एन.डी.ए (नेशनल डिफेन्स एकेडमी ) का एग्जाम पास किया है,
मम्मी हँसते हुए बोली- अच्छा तो अपना नील अब अफसर बन कर देश की सेवा करेगा, ये तो बहुत ख़ुशी की बात हैं, आईये बैठिये, मम्मी ने मुझे बुलाया, माहि देखो आंटी मिठाई ले कर आई हैं, मैं मिठाई ले कर किचन में चाय बनाने चली गयी, और मन ही मन सोच रही थी ओह तो जनाब एन.डी.ए का एग्जाम देने गये थे, और मन ही मन उसके अफसर बनने पर खुश हो रही थी,
समय पंख लगा उड़ रहा था, तिन साल गुजर गये, मैं स्कूल से कालेज में आ गयी, और नील अफसर बन गया, लेफ्टिनेंट कमांडर, यूनिफार्म में वह किसी हीरो जैसा लग रहा था,लेकिन दोनों का प्यार अभी भी खामोशियो में ही बाते कर रहा था, आँखों ही आँखों में इशारो इशारो में, लेकिन कुछ तो अलग था इस बार, पहले दूर से देखा करता था, लेकिन आजकल पास आने की कोशिश करने लगा था, कभी-कभी मेरे बिलकुल करीब आ कर रुक जाता था, जैसे कुछ कहना चाहता हो, जब वो मेरे पास गुजरता तो मेरी धड़कने तेज़ हो जाती माथे पर पसीना आ जाता, मैं भी बहुत कुछ सुनना चाहती थीं, मुझे भी उसके कुछ बोलने का इंतजार था,
आखिर वह पल आ ही गया, इस
बार छुट्टियों में जब वह घर आया, कुछ अलग ही बात थी, कुछ बैचन सा दिख रहा था वो
मुझे, शायद उसने निश्चय कर लिया था की इस बार वह अपने प्यार का इजहार कर के रहेगा, मैं और मम्मी मार्किट गयीं थी, घर आई तो देखा वह मेरे घर में ही बैठा था, शायद
इस उम्मीद में की मुझसे मुलाकात हो जाए, क्यों की आज उसकी छुट्टी का आखरी दिन था,
मम्मी ने उसे देखते ही पूछा- तुम कब आये नील,
नील ने कहा-“ 15 दिन हो गये आंटी,आज रात
की ट्रेन से निकलना भी है ”
मम्मी बोली- “आज ही ? इतनी
जल्दी छुटियाँ ख़तम हो गयी?”
नील बोला- “हां, दूसरी जगह
पोस्टिंग हुई है ना, तो सोचा वहां जाने से पहले मम्मी पापा से मिलता जाऊ”
मम्मी बोली- “हां, बिलकुल
सही किया l इसी बहाने सभी से मिलना जुलना हो गया फिर मम्मी ने मुझे आवाज लगाई
माहि... चाय बनाना थोडा, ”
नील खड़े होते हुए बोला- “नहीं
नहीं आंटी, आप लोग आराम कीजिये, मैं चलता हूँ, मुझे पैकिंग भी करना हैं रात की
ट्रेन हैं मेरी, “
नील ने मम्मी पापा दोनों को
प्रणाम किया और चला गया, मैं दुसरे कमरे से सारी बाते सुन रही थी, जैसे ही वह
गया मैं दौड़ कर छत पर गयी, वह भी छत पर आ गया था l उसके हाथ में एक कागज थी, उसने
उस कागज को मेरे छत के रेलिंग पर रख दिया और साथ में एक गुलाब का फूल, और
धीरे-धीरे चलता हुआ जाने लगा, मैंने देखा वह अपने सीढियों से उतरते हुए मुड़-मुड़
कर मुझे ही देख रहा था, धीरे-धीरे चलते हुए मैंने धडकते दिल से उस कागज को उठाया उसे
खोल कर पढने ही वाली थी की मम्मी की आवाज सुनाई दी माहि......
मैंने जल्दी से कागज और गुलाब के फूल को उठाया और भाग कर निचे आ गयी, कमरे में आ कर देखा वह अपनी खिड़की पर खड़ा था, शायद मेरा ही इन्तजार कर रहा था, मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और धडकते दिल से ख़त को पढने लगी, बिलकुल फौजियों वाले स्टाइल में ख़त लिखा था उसने, पढ़ का मुझे हंसी आ गयी, मैंने उसे देखा वह भी अपने खिड़की पर खड़ा हंस रहा था, ख़त के निचे उसने अपना नंबर लिखा था, फ़ोन करने के लिए इशारा कर वह निकल गया अपनी अगली पोस्टिंग पर, ये उसका इजहारे मुहब्बत था, और मेरा पहला प्रेम पत्र, यानी फर्स्ट लव लेटर,
माना की ओरों से जुदा था तेरा अक्स, पर इतना भी क्या गुमां, इजहारे मुहब्बत की सजा आसुओं से दे गये, दिन का चैन रातो की नींद ख्वाबो का कारवां ले गये दिल को कोई शिकायत न थी, इन्तहां तो तब हुई जब भरी महफ़िल में मुझे तन्हां कर गये,
मैं अभी सो कर उठी थी, चाय का बर्तन गैस पर बैठाई ही थीं की मम्मी की आवाज सुनाई दी “माहि.......मैं नील के घर जा रही हूँ, ”
मैं मन ही मन सोच रही थी की
मम्मी सुबह-सुबह नील के घर क्यों जा रही है, तभी मुझे सरला आंटी के जोर से रोने की
आवाज सुनाई दी, मैं भाग कर घर से बहर आई, देखा नील के घर के बहार काफी भीड़ लगी
हुई थी, मैंने गैस बंद किया और दौड़ कर नील के घर आई, मैं मन ही मन सोच रही थी
क्या हुआ पता नहीं, तभी किसी ने कहा- नील शहीद हो गया !
नील शहीद हो गया ! मैंने
इतना सुना तो मुझे चक्कर आ गया, मैं दीवार के सहारे से एक कोने में खड़ी हो गयी, कल
ही रात तो पढ़ रही थी मैं उसका दिया ओ पहला प्रेम पत्र.........मैंने अपनी आँखे बंद
कर ली,
वह मेरा पहला प्रेम पत्र
आखरी प्रेम पत्र बन गया, पूरा शहर उसके घर में उमड़ पड़ा, सभी के आँखों में आंसू
थे, मैं एक कोने में बूत बनी खड़ी थीं, मेरा दिल जोर-जोर से रोने का कर रहा था
लेकिन न जाने क्यों मैं चुप थी, केवल मेरे आँखों से आंसू बह रहे थे, उसकी बाते
दिमाग में गूंज रही थी, मैं ऐसा काम कर जाऊंगा की बनाने वाले को भी मुझ पर फक्र
होगा, 23 साल की उम्र में ओ दुनियां छोड़ कर जा चूका था, लेकिन सभी के जुबां पर उसके
बहादुरी के किस्से थे, तिरंगे में लिपटा उसका पार्थिव शरीर जब दरवाजे पर लाया गया
सारा शहर उसके अंतिम दर्शन के लिए टूट पड़ा, सबकी आँखे नम थीं, उनके सारे नाते
रिश्तेदार आ गये थे, आंटी और अंकल को होश नहीं था, अपने एकलौते बेटे की देश पर
न्योछावर होने पर फक्र करे या उनकी अपनी दुनियां लुट जाने का मातम, आंटी का गला
बैठ गया था रोते-रोते, कोई उन्हें क्या संतावना देता, बेहोसी के हालत में थीं,
दूसरों के लिए ये बोलना आसन होता हैं, आपके बेटे ने देश के लिए अपने प्राण
न्योछावर किया हैं, वह वीर हैं, वह मरा नहीं अमर हो गया है, लेकिन एक माँ के लिए
इन सारे शब्दों के कोई मायने नहीं थे, वह उनके कलेजे का टुकड़ा था, नव महीने कोख
में रख कर मृत्यु तुल्य कष्ट सह कर जन्म दिया था उसे, अपने खून को दूध बना कर
पिलाया, 23 साल बड़े नाज से पाल-पोस कर बड़ा किया, बहुत अरमान बहुत लालसाए जुडी थी बेटे
से, जीने का सहारा था वह उनका, वही बेटा आज उन्हें हमेशा के लिए छोड़ कर जा चूका
था, बड़ा गर्व था उन्हें अपने बेटे पर, याद है मुझे जब वह लेफ्टिनेंट कमांडर की
ट्रेनिंग पूरा कर आया था, सारे मोहल्ले में मिठाईयां बांटी थी उन्होंने, यूनिफार्म
में ही ले कर आये थे मेरे घर, बहुत स्मार्ट और हैंडसम दिख रहा था, वही बेटा आज
उन्हें छोड़ कर चला गया, किसी के पास कोई शब्द नहीं थे उन्हें सान्तवना देने के
लिए, इसलिए सारा वतावरण निशब्द था, केवल सिसकियों की आवाजे थीं, सभी की आँखे नम
थीं, और मैं सभी को देख रही थी, सहमी सी एक कोने में खड़ी, कौन समझेगा मेरी कोमल
भावनाओ को, उसके अंतिम दर्शन के लिए भी ना जा सकी, जिसे देखे बिना चैन नहीं मिलता था,
जिसकी एक झलक देखने के लिए दसों बार छत पर जाती थीं, आज उसे अंतिम बार भी ना देख
सकी मैं, बड़ी शान से उसकी अंतिम यात्रा
निकली और मैं बुत बनी खड़ी देखती रह गयी,
अंकल-आंटी उसके अंतिम संस्कार करने गाँव गये तो वापस ही नहीं आये, चारो तरफ
सन्नाटा था, लेकिन मेरे अंदर कुछ टूट सा गया था, अब मैं छत पर नहीं जाती, और ना ही
चौराहे वाले शिव मंदिर में, कभी कभी चोरी से उसका दिया पहला और आखरी प्रेम पत्र पढ़
लेती थी, ख़त पढ़ते वक्त ऐसा लगता मानो वह मेरे सामने खड़ा हो, आँखों में आंसू आ
जाते, अकेले में रो लेती, और फिर उस ख़त को सम्हाल कर रख लेती थी, सबसे छुपा कर,
हालांकि उस ख़त का कोई मायने नहीं रह गया था मेरे जीवन में, फिर भी सबसे अनमोल चीज
थी मेरे लिए उसका प्यार, उसका दर्द और ओ ख़त,
समय हर घाव को भर देता, समय किसी के चले जाने से ना रुका था न रुका हैं और न कभी रुकेगा, समय अपनी गति से चलता है, मेरा समय भी कट रहा था, आहिस्ता आहिस्ता मैं अपने जिंदगी में वापस आने लगी, और फिर मेरी शादी विभु से हो गयी, 12 साल 12 साल हो गये हमारे शादी को, इतना आसन नहीं था मेरे लिए इस नए जीवन की शुरुआत करना, लेकिन विभु बहुत ही अच्छे इन्सान हैं, उनके साथ और प्यार के सहारे मैं अपने जीवन में आगे बढ़ गयी, और रूही का आना मेरी जिंदगी में एक नया रंग भर दिया, और आज क्यों मेरा अतीत मेरे सामने खड़ा हो गया ? क्यों ?
घर आ कर मैं कुछ ढूंढ रही
थी, कहाँ गया, कहाँ रख दिया मैंने, बहुत बैचनी महसूस कर रही थी मैं, जैसे मेरी जिंदगी
का कोई हिस्सा गुम हो गया हो, चारो तरफ देखा वह मुझे कही नहीं मिला, सालो बाद मुझे
लग रहा था की मैं जोर जोर रोऊ,
विभु घर आये तो सारा घर
बिखरा हुआ था, क्या ढूंढ रही हो तुम,
विभु की आवाज सुन कर मैं
अपने साडी के पल्लू को ठीक कर जल्दी से बाथरूम में चली गयी, कही विभु मेरे आँखों
में आंसू ना देख ले, मैं अपने फेस को टावेल से पोछते हुए बहर निकली और बोली कुछ
नहीं, बस ऐसे ही कुछ ढूंढ रही थी,
विभु बोले- क्या? मुझे
बताओ,तुम क्या ढूंढ रही हो, शायद उसे ढूँढने में मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकू, या
तुम ये ढूंढ रही हो,
मैंने पलट कर देखा विभु के
हाथो में एक कागज था, मैंने उस कागज को अपने हाथो में ले कर देखा, ये तो वही ख़त
था, मैं आश्चर्य से विभु को देखती रह गयी, और अंदर तक सिहर गयी, मैं मन ही मन सोच
रही थीं, विभु को सारी सच्चाई पता चल गयी, न जाने विभु अब क्या करेगा, मैं ये सोच
ही रही थी की विभु ने अपने दोनों हाथो से मेरे कंधे को पकड़ कर मुझे बेड पर बैठा
दिया और खुद भी बैठ जाते हैं, अपने दोनों हथेलियों से मेरे चेहरे को उपर कर मेरी
आँखों में देखने लगे, मैं अपने आँखों के आंसू को छुपाने का असफल प्रयास कर रही थी,
विभु ने मुझे सीने से लगा लिया, मैं भी विभु के सिने से लग गयी, मेरे आंसुओ के
बांध टूट गये थे मैं विभु के सिने से लग कर जोर-जोर से रोने लगी, सालो से जिस दर्द
को दिल में छुपा कर रखा था वह सब आंसू बन कर निकल रहे थे, विभु केवल प्यार से मेरे
कंधे को सहला रहे थे, थोड़ी देर बाद विभु अपने हथेलियों से मेरे चेहरे को पकड़ते
हैं, मेरे आँखों से आंसू को पोछते है, और कहते है- मुक्त करो उसे, उसे कैद कर रखा
हैं तुमने, सारी दुनिया ने उसे आजाद कर दिया है, लेकिन तुमने उसे अपने अंदर कहीं
कैद कर रखा हैं, उसे आजाद नहीं करोगी तो वापस वह इस दुनियां में कैसे आएगा, शायद
वह तुम्हारे गोद में ही आना चाहता हैं, यही इशारे कर रहा हैं,
इतना बोल कर विभु ने एक और
कागज मेरे हाथो में रख दिया, मैं आश्चर्य से विभु को देखती हूँ, वह मेरी प्रेगनेंसी
रिपोर्ट थी, मैं फिर से माँ बनने वाली थीं, मैं एक बार फिर विभु के सिने से लग
जाती हूँ, विभु भी मुझे अपने बाहों में कस लेते हैं और प्यार से मेरे सर को सहलाने
लगते हैं,
अल्पना सिंह
Very nice
ReplyDeleteNice story
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