पहला प्रेम पत्र,(First Love Letter)

[दिल के कोरे कागज पर प्रेम का पहला सिंग्नेच्र्र अक्सर गुमनाम रह जाता है,]  

मेरी ये कहानी काल्पनिक हैं, मेरी ये कहानी थोड़ी लम्बी हो गयी है,इसलिए कुछ किस्तों में आपके सामने ला रही हूँ, कोई सुझाव या सुधार हो तो कमेन्ट कर जरुर बताये,यदि लेखनी में कोई गलती हो गयी हो तो माफ़ कीजियेगा, अपना आशीर्वाद और स्नेह बनाये रखियेगा,

  

मुहब्बत की बात निकलती है, तो थोड़ी लम्बी हो ही जाती है कहानी,

दिल ठहर ही जाता है, चाहे हो साठ बरस का


दौर या हो सोलह बरस की अल्हड़ जवानी,

 मेरी कहानी भी थोड़ी लम्बी हो गयी हैं इसलिए कुछ किश्तों में आपके सामने ला रही हूँ, कोई भी सुझाव या सुधार कमेंट कर जरुर बताये, और यदि लेखनी में कोई गलती हो जाये तो माफ़ कीजियेगा, अपना स्नेह और आशीर्वाद बनाये रखियेगा,

मेरा पहला प्रेम पत्र                                    

पापा इस बार छुट्टियों में कहीं घुमने चलते हैं, मेरी सारी फ्रेंड घुमने जा रहीं हैं, रूही ने मचलते हुए कहा,

विभु रूही को गोद में उठा लेते हैं, और हँसते हुए बोले- हाँ तो हम भी चलते हैं ना घुमने,

रूही ख़ुशी से उछल पड़ती हैं l सच्ची पापा, हम भी चल रहे हैं घुमने,          

 विभु ने कहा- हाँ, रूही ख़ुशी से विभु से लिपट जाती है,

थैंक यू पापा, थैंक यू सो मच,

 माहि इस बार हमलोग छुट्टियों में दिल्ली घुमने चलते हैं, रूही का मन भी रह जायेगा और हमें भी  थोडा चेंज मिल जायेगातुम चलने की तैयारी करो, मैं टिकट निकलता हूँ,

माहि ने हंस कर कहा-ओके,

विभु- माहि जल्दी करो, ट्रेन छुट जाएगी,

रूही- जल्दी करो न मम्मी ट्रेन छुट जाएगी तो हम लोग कैसे जायेंगे? रूही ने मचलते हुए कहा,

आ रही हूँ ! मैं अपने बैग को बाजु में टांगते हुए बोली,

अभी मैं अपनी ही साडी में फंस के गिरने वाली थी की विभु ने मुझे थाम लिया, और हँसते हुए बोले- “अरे अरे सम्हाल कर, अभी ट्रेन में दो घंटे लेट है”,

 मैं गुस्से से बोली- तो अभी चिल्ला क्यों रहे थें,

 विभु हँसते हुए बोले- “एक तो तुम औरतो को तैयार होने में देर होती है, और दूसरी बात ये की हमें स्टेशन पर 30 मिनट पहले तो पहुँचाना चाहिए”,

मैं हँस कर बोली चलिए फिर, मैं तैयार हो गयी,

 रूही दौड़ते हुए आई और पापा से लिपट गयी, और बोली-  मैं भी तैयार हो गयी पापा,

 टैक्सी आ कर गेट पर खड़ी हो गयी, हम टैक्सी में बैठ कर स्टेशन निकल गये, हम ट्रेन पर भी बैठ गये, सारे रास्ते रूही की बक बक चालू रही, विभु रूही से बहुत प्यार करते है, रूही पापा की परी थी,

विभु ने पहले से ही ऑनलाइन होटल बुक कर रखा था, हम लोगो को होटल पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी, रात में हमलोगों ने होटल में आराम किया, विभु ने कार बुक कर रखा था, सुबह-सुबह हम तीनो दिल्ली घुमने निकल गये, चार दिनों की ट्रिप थीं, लोटस टेम्पल, लालकिला, कुतुबमीनार, अक्षर धाम मंदिर, सभी जगहों पर घुमने गये, कार का ड्राईवर केवल ड्राईवर ही नहीं एक अच्छा गाइड भी था, दिल्ली के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था, कब, क्यों, कैसे बना, ये सारी कहानी भी बताता जा रहा था, चांदनी चौक, संसद भवन, राजघाट, के बाद हम लोग इंडिया गेट घुमने गये, इंडिया गेट कब बना, कैसे बना, किसने बनवाया, और क्यों, ये सारी बाते बताता जा रहा था, हम उसके पीछे-पीछे सुनते हुए चलते जा रहे थे, रूही कई सवाल भी पूछ रही थी और वह गाईड बना ड्राइवर हर सवाल का जवाब हँस कर दे रहा था, उसकी आँखों में एक अलग ही चमक थी, वह रूही को बता रहा था,” यह देखो बिटियाँ यह अमर जवान ज्योति स्मारक हैं, जो हर वक्त जलते रहता हैं, ये स्मारक भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान जान गवाने वाले सैनिको की याद में बनाया गया था, इंडिया गेट पर ही राष्ट्रीय युद्ध स्मारक भी बनाया गया हैं, इन जवानों की कुर्बानी ही है, जिसके कारण हमारा ये देश महफूज हैं, ये उन जवानों की याद में बनाया गया है जिन्होंने देश के लिए हँसते हँसते अपनी जान दे दी, धन्य है वो माताएं जिन्होंने ऐसे वीर सपूतो को जन्म दिया, हम सदा इनके ऋणी रहेंगे, भारत माँ को अपने इन वीर सपूतो पर हमेशा फक्र रहेगा,”

वहां रखे रायफल और उस पर टंगा फौजियों वाला हेलमेट, मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कोई हैं वहां, कोई जाना पहचाना सा चेहरा, मैंने मन ही मन कहा- नहीं-नहीं, ये नहीं हो सकता, ये मेरा भ्रम हैं, मैंने अपने चारो तरफ सर घुमा कर देखा, वहां कोई नहीं था, फिर मुझे क्यों लग रहा है, की कोई मुझे देख कर मुस्कुरा रहा है, मेरी धड़कन तेज चलने लगी, वह गाईड बना ड्राइवर अपने ही धुन में बोले जा रहा था, और उसकी सारी बाते मेरे दिल के किसी कोने में छुपे दर्द को कुरेद रही थी, मेरा सर घुमने लगा, मेरे आँखों के आगे अँधेरा छा गया, मैंने विभु से कहा- मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा हैं, मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही, मैं कार में जा कर बैठती हूँ, आप लोग घूम कर आईये,

विभु परेशान हो गये बोले- नहीं हम वापस चलते हैं,

 मैंने बहुत कहा- लेकिन विभु और रूही नहीं माने, हमलोग वापस होटल लौट आये, विभु को कैसे बताती की “ जिस दर्द को मैंने सालो से अपने अंदर छुपा कर रखा था, आज वही दर्द मेरे सिने में वापस लौट आया हैं”, मैं चाह कर भी नार्मल नहीं हो पा रही थी, और हम अपनी ट्रिप बिच में ही छोड़ कर वापस लौट आये, आँखों के सामने सालो पहले की याद ताज़ा हो गयी, दिमाग में पुरानी यादें उथल-पुथल मचा रही थीं,

                                                                        अल्पना सिंह


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