अंतिम दर्शन,हिंदी कहानी

 



अंतिम दर्शन

“फ़ोन किया था इतनी देर क्यों लगा दी तुमने सावित्री, बच्चो का ख्याल रखना, लौटने में मुझे लेट हो सकती है, इतना बोल कर मानवी तेजी से निकल गयी,” मानवी को लौट कर आने में रात हो गया, सावित्री बेसब्री से चहल कदमी करते हुए मानवी का इन्तजार कर रही थी, जैसे ही मानवी आई, सावित्री दौड़ कर कपड़े ले कर आई, मानवी नहा-धो कर कुर्सी पर आ कर बैठी और सावित्री से पूछा- “ बच्चो ने खाना खा लिया “

सावित्री बोली- “ हाँ मैडम जी बच्चो को खाना खिला कर सुला दिया मैंने,” थोड़ी देर चुप रहने के बाद सावित्री बोली- “ मैडम जी आपके सर में मालिश कर दूँ “ मानवी ने धीरे से हाँ में सर हिलाया,

सर में मालिश करते करते सावित्री बोली- “ मैडम जी आज ही जाना जरुरी था क्या? आप दो दिन बाद चली जाती, आपना ख्याल भी तो रखना चाहिए,  

मानवी बोली- “24-25 साल का नवजवान लड़का था, एक्सीडेंट में “ कहते कहते मानवी का गला भर गया,

सावित्री बोली- “पता हैं मुझे मैडम जी सुबह से ही पुरे मोहल्ले में उस एक्सिडेंट की चर्चा है, आज अंतिम दर्शन करने क्यों जाना था दो दिन बाद भी जा सकती थी, माना आपके रिश्तेदार है लेकिन हर कोई नहीं बर्दास्त कर पता है ये अंतिम दर्शन,’

मानवी एक दम चुप हो जाती है, थोडा शांत होने के बाद बोलती है- “ उन्हें हमारी जरुरत थीं,  लेकिन सावित्री जीवन की सारी सच्चाई अंतिम दर्शन के वक्त ही समझ आती है, मैं भी 35 साल तक कभी अंतिम दर्शन नहीं किया, पहली बार मैंने अपनी बड़ी मौसी जी का अंतिम दर्शन तब मैं भटिंडा में थी,एक दिन अचानक छोटी बहन का फ़ोन आया, बड़ी मौसी को कैंसर हो गया हैं, सुनकर दिल धक् से रह गया, मिलने की प्रबल इच्छा हुई, जल्द ही ये इच्छा पूरी भी हो गयी, छठ पूजा में मैं अपने मायके आई हुई थी और बड़ी मौसी भी वहां आई हुई थीं, लेकिन उन्हें देख कर बिलकुल ऐसा प्रतीत नहीं हुआ की उन्हें अपनी बीमारी से तनिक भी भय हैं, ये उनका प्रबल आत्मविश्वास था या अपने पैसो का घमंड ये मैं आज तक समझ नहीं पाई, लेकिन उस वक्त जो उन्होंने मम्मी से कहा वे शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं “ उन्होंने कहा था की कैंसर सुन कर कोई मुझे देखने आता हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता है, मैं कोई बेचारी नहीं हूँ, आज कल कोई बीमारी बड़ी नहीं होती, सारे बीमारियों का इलाज संभव हैं केवल पैसा होना चाहिए, और मेरे पास बहुत पैसा हैं “ सुन कर हमलोगों को बहुत बुरा लगा था, हमारे अंदर उनके बीमारी को ले कर जितनी सहानुभूति और पीड़ा थी वह संभवतः उस वक्त तो ख़त्म हो गयी थी, हम सब अपने-अपने घर वापस लौट आये, फिर शुरू हुआ उनके इलाजों का सिलसिला, कभी पटना, कभी रांची, कभी मुंबई, बनारस, सभी जगहों से थक कर वापस आ गये, केमो थेरेपी, आयुर्वेद, ऑपरेशन सब करा कर थक गये अंततः वे लोग लौट कर अपने गाँव चले आये, डाक्टर ने जवाब दे दिया था, कहा- “अब ये कुछ दिनों की मेहमान है “ ढेरो पैसे खर्च हुए लेकिन......कोई फायदा नहीं हुआ,

 मम्मी बोली – बड़ी मौसी से मिलने चलने के लिएइच्छा तो बिलकुल नहीं थी, लेकिन कडवाहट पर खून के रिश्ते भारी पड़ गये, हमसब बड़ी मौसी जी से मिलने उनके पैतृक गाँव पँहुचे, इस बार बड़ी मौसी जी की स्थिति देख कर आँखों में आंसू आ गये, एक दम कमजोर हो गयी थी, ऑपरेशन के बाद उनके कमर के निचे का हिस्सा नाकामाब हो गया था, चलने-फिरने में एकदम असमर्थ, पूरी तरह से दुसरे पर आश्रित, आँखों में लाचारी और होठों पर भगवान् से विनती थी, “ हे भगवान् मुझे उठा लो, ना जाने पिछले जन्म में कौन सा पाप किया था की मुझे ये सजा मिली है, किस जन्म के पाप भोग रही हूँ मनु” इतना बोल कर मम्मी से लिपट कर रोने लगी, पिछले जन्म में पाप किया है यां नहीं ये तो पता नहीं लेकिन पुन्य जरुर किया था जो मौसा जी जैसे पति मिले, मौसी जी की सारी जिम्मेदारी उठा लिया था उन्होंने, खाने-पिने से ले कर लैट्रिंग-बाथरूम सभी का, उनके दयनीय स्थिति पर सभी के आँखों में आँसू आ गए,

इतना बोल कर मानवी चुप हो गयी, एक गहरी साँस लेते हुए मानवी ने बोलना शुरू किया-“ पता हैं सावित्री, मौसी जी अपनी जवानी में बहुत सुंदर थी और उनसे भी ज्यादा मौसा जी, दोनों की जोड़ी देख कर किसी के भी मुहँ से यही निकलता था की बहुत ही फुर्सत में बनाया होगा उपर वाले ने इन दोनों को, और लक्ष्मी की तो विशेष कृपा थी उनके उपर, लेकिन जितना उन्हें अपने पैसे का घमंड था, उससे कहीं ज्यादा उन्हें अपने रूप का घमंड था, और उतना ही उनका मन संकुचित था, किसी को कुछ देना तो जैसे सिखा ही नहीं, किसी की मदद करना उनके शान के खिलाफ था, किसी काले आदमी के हाथ से पानी नहीं पीते थे, गन्दगी तो उन्हें बिलकुल पसंद नहीं थी, चाहे वह किसी भी पारिस्थि में हो, इस कारण सारे लोग उनसे कतराते थे, हम बहनें भी सामने जाने से कतराती थीं, उनकी ऐसी स्थिति देख कर ऐसा लग रहा था मनो उपरवाला एक-एक कर सारा घमंड तोडना चाहता हो, सब कुछ छीन कर उनसे जिसका उन्हें घमंड था, पहले रूप, फिर स्वास्थ, और अंतत: पैसे का घमंड भी तोड़ दिया, फिर एक दिन मौसी जी दुनियां छोड़ कर चली गयी, ये इतेफाक ही था की मम्मी ने मुझे फ़ोन किया साथ में चलने के लिए, क्यों की उस वक्त घर पर मेरे पापा और भाई दोनों नहीं थी, वहां जा कर देखा तो दस से बीस लोग मौजूद थे जो करीबी रिश्तेदार थे, किसी के चेहरे पर उनके जाने की उतनी तकलीफ नहीं थीं, शायद बहुत दिन से बीमार थी इसलिए, लेकिन मैं जानती थी उन्होंने किसी से दिल का रिश्ता जोड़ा ही नहीं,  इन 35 साल के उम्र में ये मेरे जीवन का पहला वक्त था जब किसी मृत व्यक्ति के शारीर को इतने करीब से देखा था मैंने, जमीन पर उनका पार्थिव शारीर लिटाया हुआ था, बांस की अर्थी बनाई जा रही थी, ये सब मैं पहली बार देख रही थीं, कौतुहल या आश्चर्य नहीं हो रहा था मुझे, बल्कि एक अजीब सी बैचनी हो रही थी, रह-रह कर आँखों में आँसू आ जा रहे थे, कोई आत्मीय रिश्ता नहीं जोड़ा था उन्होंने हमलोगों से, ऐसे तो हम भी गरीब नहीं थे, अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते थे, साधारण परिवार था हमारा, लेकिन फिर भी बड़ी मौसी जी हमें हेय दृष्टी से देखती थी, क्यों की वो हमसे ज्यादा धनाढ्य थी, जब भी शादी-ब्याह, या गर्मी के छुटियो में हम सब नानी के घर इकठ्ठा होते तब मामा-मामी, छोटी मौसी जी के बच्चे, और हम भाई बहन सब निचे बिस्तर लगा कर सो जाते थे लेकिन बड़ी मौसी जी पलंग पर सोती थीं, मेरी मम्मी, नानी, मामी सब निचे बैठ कर बाते करने लगती थी लेकिन बड़ी मौसी कही खड़ी होती तो उनके लिए कुर्सी लायी जाती थी क्यों की वह निचे नहीं बैठती थी, और आज निचे जमीन पर लेटी थीं,फिर आई अंतिम दर्शन की बारी, एक- एक कर सभी लोग दर्शन करने गये, मैं भी गयी, उन्हें देख कर ना जाने क्यों अनायास ही मुझे रोना आ गया और मैं जोर-जोर से रोने लगी, उसके बाद उनकी अंतिम यात्रा निकली, मेरे पापा और भाई भी आ चुके थे, तिन चार घंटे वहाँ रुक कर मैं अपने भाई के साथ लौट आई, मेरी मम्मी वही रुक गयी उनकी अंतिम संस्कार तक,

लौटते समय पुरे रास्ते मेरा मन बहुत विचलित था, जीवन का ये अंतिम दर्शन, मृत्यु जीवन का सबसे बड़ा और अंतिम सत्य हैं ये जानते हुए भी मेरा मन बहुत अशांत था, कुछ दिनों तक ये सारी बाते मेरे दिमाग में चलती रही,

                  अल्पना सिंह                                                      

 

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