अंतिम दर्शन (भाग-2),हिंदी कहानी

 

अंतिम दर्शन(आगे की कहानी)


पिछली कहानी में मानवी अपनी बड़ी मौसी की अंतिम दर्शन कर वापस लौटी थी, जिसके कारण उसका मन बहुत अशांत था और मानवी मन ही मन रही थी, की मैं मौसी से नहीं उनके अंतिम दर्शन से भाग रही थी, लेकिन कहते हैं ना आप जिससे दूर भागना चाहते भगवान् बार-बार आपको वही ले जा कर खड़ा कर देता है, मैं बचपन से इस अंतिम दर्शन से भागती रही हूँ, कुछ ही महीने बीते की मेरे छोटे मामा जी की मृत्यु की खबर आई, सुनकर सदमा सा लगा, मामा जी की उम्र अभी मरने वाली नहीं थी, लेकिन वो बहुत शराब पीते थे, पहले मामा जी शराब पीते थे फिर शराब मामा जी को पिने लगी, और फिर उनकी मृत्यु की खबर आई, ये भी एक इतेफाक था की मैं अपने मायके में ही थी, सभी लोग नानी के घर चल दिए, मैं इस बार भी अंतिम दर्शन के लिए नहीं जाना चाहती थी, लेकिन सभी जा रहे थे तो मैं मुहं भी नहीं फेर सकती थी सो मैं भी चल दी, गाड़ी में बैठते ही अजीब सी बेचैनी होने लगी मुझे, मामा जी का चेहरा उनकी बाते किसी चलचित्र की भांति आँखों के सामने घुमने लगा, मामा जी तीनो बहन से छोटे थे, लेकिन शराब पिने की लत के वजह से कहीं एक जगह ठीक कर काम नहीं किया उन्होंने, जिस कारण जेब से तो बिलकुल फक्कड़ थे, नाना जी के पास काफी जमिन था जिस कारण उनका जीवन यापन अच्छे से चल रहा था, अन्यथा उनकी गिनती एक गरीब इन्सान में होती, और तो और झूठ भी बहुत बोलते थे नाना जी के मरने के बाद तो वे जमीन भी बेचने लगे, वो तो नानी और मामी ने सारा कुछ अपने हाँथ में ले लिया, कुल मिलाकार परिवार के लोग उनके झूठ और शराब पिने की लत से परेशान थे, बहुत बुराईयाँ थीं उनके अंदर, लेकिन कुछ अच्छाईयाँ भी थी, माना की मामा जी जेब से गरीब थे लेकिन दिल के बहुत आमिर थे, किसी की भी मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते, उस पर से वो जात-पांत ऊँच-नीच कुछ नहीं देखते, और नाही रात-दिन, किसी भी समय कोई भी आवाज देता मामा जी तैयार रहते, किसी को हॉस्पिटल ले जाना हो, किसी की बेटी की शादी हो, किसी के घर उसका दामाद आया हो सबके स्वागत में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे, बचपन का एक किस्सा याद आ रहा था मुझे, मामा जी के घर चचेरी मौसी की शादी थी, हम सब वही थे, उस समय मेरे मामा जी के गाँव में सड़क नहीं बना था, उनके घर ढोल बजाने वाले की पत्नी गर्भ से थी, नवा महिना चल रहा था, हल्दी का दिन था,उस दिन बहुत बारिश हो रही थी, और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही थीं, हल्दी की रस्म चल रहा था, तभी किसी रस्म के लिए छोटे मामा जी को ढूँढा जाने लगा, मामा जी कहीं नहीं थे, तभी किसी ने आकर बताया की ढोल वाले के घर से खबर आई की उसकी पत्नी को प्रसव पीड़ा हो रही है, उसे खटोले में टांग कर हॉस्पिटल ले गये हैं, सुबह जब मामा जी घर आये तब नाना जी का गुस्सा सातवें आसमान पर था, लेकिन मामा जी को कोई फर्क नहीं पड़ता था, आते ही नानी से खाना माँगा बोले रात से कुछ नहीं खाया हैं, इतना सुनते नाना जी बोले- “ खाने के साथ मिठाई भी दे दो राजा साहेब को बेटा हुआ है,” इतना सुन कर घर के सारे लोग उन पर हँस रहे थे, लेकिन मामा जी के चेहरे पर शिकन तक नहीं थी, ऐसे मस्त-मौला अंदाज वाले थे मामा जी, और भी कई खूबियाँ थीं छोटे मामा जी में जिससे कारण वे हमेशा नाना जी के कोपभाजन का कारण बनते थे, देखने में तो साधारण कद काठी के थे मामा जी, लेकिन आचरण में बहुत दबंग, दस के बराबर अकेले काफी थे, परिणाम स्वरुप गाँव में कही भी लड़ाई-झगड़े होते उसमे हमारे मामा जी जरुर शामिल होते, घर में भले ही उनकी छवि झूठे इन्सान की थी, लेकिन बाहर हमेशा सच्चाई के लिए लड़ते थे,कई लड़ाईयो में तो लोग उनकी उपस्थिति से ही भाग खड़े होते थे, एक अजीब बात थी उनके अंदर, ना तो मामा जी मरने से डरते थे और ना ही मारने से, जहाँ मामा जी खड़े हो जाते उसकी जीत निश्चित होती थीं, जब भी किसी को जरुरत होती घर से बुला कर ले जाते थे, फिर वही लोग पीठ पीछे नानी और नाना जी को ताने भी मारते आपका लड़का शराबी है,आवारा है, समझाते क्यों नहीं अपने बेटे को, ऐसी बाते सुन कर किसी भी पिता को बुरा लगेगा, इसलिए नाना जी को बुरा भी लगता था और दुःख भी होता था, इसमें आश्चर्य की बात नहीं थी, ऐसी बाते सुनकर परिवार के सभी सदस्य को बुरा लगता था, मम्मी-पापा, मौसा-मौसी सभी उन्हें समझाते थे लेकिन उन्हें तो कुछ समझना ही नहीं था, सभी की बाते एक कान से सुन कर दुसरे कान से निकाल देते थे, यही सारी बाते सोचते -सोचते हमारी गाड़ी कब दरवाजे पर आ कर लग गयी पता ही नहीं चला, जब हम नाना जी के घर पहुंचे तो हलकी बूंदा-बांदी हो रही थी दरवाजे पर बहुत भीड़ लगी हुई थी घर-आँगन खचाखच भरा हुआ था, उनका पार्थिव शारीर आँगन में जमीन पर लिटाया हुआ था, अनायास ही मुझे बड़ी मौसी जी की याद आ गयी, अभी कुछ ही महीने पहले उनका अंतिम दर्शन कर के आई थी मैं, उनका पार्थिव शारीर भी ऐसे ही जमीन पर लिटाया हुआ था, दोनों एक ही माँ के संतान थे एक आमिर और एक गरीब, लेकिन मरने के बाद दोनों की स्थिति बिलकुल एक जैसी, दोनों के हाथ खाली, लेकिन फ़र्क था दोनों में, मामा जी के अंतिम दर्शन के लिए सैकड़ो आदमी आये थें, सभी की आँखे नम थी, उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी हो रही थी, इधर बारिश भी तेज होने लगी, और आदमियों के आने का सिलसिला भी जरी रहा, मामा जी के सारी बुराईयों पर उनकी चंद अच्छाईयाँ भारी पड़ गयी थी, यां यूँ कहो सावित्री की मामा जी ने अपनी बुराईयों से केवल अपना बुरा किया,लेकिन अपनी अच्छाईयों से बहुतों का भला किया, इन्सान के मरने के बाद केवल उसके कर्मो का लेखा-जोखा होता है, चाहे वो आमिर हो, या गरीब,

मानवी ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा- “ एक और बात है सावित्री, जब तक इस शरीर में प्राण है तभी तक इस शरीर का भी मोल है, चाहे वह कितना भी सुंदर हो प्रिय हो, अभी कुछ दिन पहले ही मिले थे, बाज़ार वे लोग हमें, दूर के रिश्ते में भांजा लगते हैं वो हमारे, बोल रहे थे बेटे की इस बार बेटे की शादी कर देनी है उसी के लिए दीवान और ऐ.सी लेने आये है, उसके पसंद की और भी कई चीजे खरीद रहे थे, आज उसी बेटा का पार्थिव शारीर भूमि पर पड़ा था, ना ऐ,सी ना दीवान, उसके भी अंतिम यात्रा की तैयारी ठीक वैसे ही चल रही थी, इतना बोल कर मानवी जोर-जोर से रोने लगी,”

सावित्री मानवी को सिने से लगा कर चुप करने लगती है और बोलती है-“ ये तो इस दुनियां का नियम है मैडम जी,

         अल्पना सिंह

 

 

 

 

 

 

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