कल किसने देखा हैं (भाग-2)

 कल किसने देखा हैं (भाग-2)

रवि तनेजा सर के निधन से एक दिन पहले-

ऋषभ अभी अभी ऑफिस में आया था और अपना लैपटॉप खोल कर अपने काम की तैयारी कर रहा की तभी केबिन के दरवाजे पर ऑफिस का प्यून आ कर- “में आई काम्मिंग सर,”

ऋषभ लैपटॉप पर से अपनी नजरे हटा कर केबिन के दरवाजे की ओर देखता हैं और प्यून को देख कर मुस्कुराते हुए- “काम्मिंग,”

प्यून केबिन के अंदर आ कर- “गुड मोर्निंग सर,”                                           

ऋषभ- “गुड मोर्निग, बोलो किशन क्या बात हैं ?”                                          

प्यून- “ऋषभ सर आपको बड़े साहब ने अपने केबिन में बुलाया हैं,”

प्यून की बात सुन कर ऋषभ सिरियस होते हुए- “रवि सर ने बुलाया हैं ! अभी ?” ऋषभ मन ही मन सोचता हैं- “पता नहीं सुबह सुबह रवि सर को मुझसे क्या काम पड़ गया, अभी तो कोई काम पेंडिंग भी नहीं हैं,”

 ऋषभ कुछ सोचते हुए प्यून से- “ठीक हैं तुम जाओ, मैं अभी आता हूँ,”

प्यून के जाने के बाद ऋषभ अपना लैपटॉप बंद करता हैं, टेबल पर से अपना मोबाईल उठा कर अपने पैंट के पॉकेट में रखता हैं और अपने सीनियर रवि तनेजा के केबिन की ओर चल देता हैं,

                                                     

कुछ देर में ऋषभ रवि तनेजा के केबिन के बाहर खड़ा था- “में आई कमिंग सर,”

रवि तनेजा अपने केबिन के खिड़की के पास खड़े खिड़की से बाहर सड़क की और देख रहे थे, ऋषभ की आवाज सुन के दरवाजे की ओए मुड़ कर देखते हैं और ऋषभ को देख मुस्कुराते हुए- “अरे आओ आओ ऋषभ बैठो, मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था,”

ऋषभ रवि तनेजा की बात सुन कर आश्चर्य से- “मेरा इन्तजार कर रहे थे ! क्यों सर कोई खास बात हैं क्या ?”

रवि तनेजा ऋषभ को ऐसे हैरान होते हुए देख कर हँसते हुए- “अरे नहीं ऋषभ परेशान होने वाली कोई बात नहीं हैं, बस मुझे तुमसे कुछ पर्सनल काम था,”  

रवि तनेजा की बात सुन कर ऋषभ का मन कैसेला सा हो जाता हैं फिर अपने चेहरे पर बनावटी हँसी लाते हुए- “कौन सा पर्सनल काम हैं ?”

रवि तनेजा मुस्कुराते हुए आगे बढ़ कर ऋषभ के कंधे पर हाथ रख कर हल्के से दबाते हुए- “अरे घबराओ नहीं गैस सिलिंडर भरवाने के लिए नहीं बोलूँगा,”

रवि तनेजा की बात सुन कर ऋषभ एकदम से झेप जाता हैं और एक छोटी हँसी के साथ बोलता हैं- “ऐसी बात नहीं हैं सर, कोई भी पर्सनल काम हैं बोल दीजिये मैं जरुर कर दूंगा,”

ऋषभ की बात सुन कर रवि तनेजा हँसते हुए- “पता हैं मुझे की तुम मेरा कोई भी काम कर दोगे, आखिर तुम मेरे बेटे जैसे हो,”

रवि तनेजा की बात सुन कर ऋषभ मुहँ से कुछ नहीं बोलता हैं बस मुस्कुरा देता हैं, तनेजा साहब अपने चेयर पर बैठते हुए “ऋषभ मैंने सुना है की तुम बहुत अच्छा लिखते हो, मुझे तुमसे कुछ लिखवाना हैं,”

ऋषभ- “सर वो तो मैं कालेज के जमाने में लिखता था, इधर तो सालो से पेन और डायरी को छुआ तक नहीं हैं मैंने, काम से फुर्सत ही नहीं मिलता हैं,”

ऋषभ की बात सुन कर रवि तनेजा सर थोड़ी ऊँची आवाज में- “बस यही फुर्सत नहीं मिलता हमें, ना खुद के लिए और ना अपने परिवार के लिए बस मशीन बन के रह गये हैं हम, ऋषभ थोडा सा टाइम निकालो खुद के लिए और.....”

ऋषभ को तनेजा सर की बाते बोरिंग लग रही थी, ऋषभ रवि तनेजा सर की बातो से बोर हो रहा था इस लिए ऋषभ रवि तनेजा सर की बातो को बिच में काटते हुए बोलता हैं- “ऐसे सर क्या लिखवाना हैं मुझसे आपको ?”

रवि तनेजा मुस्कुराते हुए- “एक लेटर लिखवाना है मुझे तुमसे,”

सुन कर ऋषभ चौंक जाता हैं और चौंकते हुए- “पर्सनल लेटर ? सर आपका कहने का मतलब हैं लव लेटर ?”

रवि तनेजा मुस्कुराते हुए- “हाँ ऋषभ मुझे एक लव लेटर ही लिखवाना हैं,”

ये बोलते बोलते रवि तनेजा के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी, रवि तनेजा सर के आँखों में एक अगल ही कशिश दिखाई दे रही थी,

इधर रवि तनेजा सर की बात सुन कर ऋषभ मन ही मन- “तो इस बुढ्ढे को इश्क हो गया हैं, तभी ये ऐसे मिठ्ठी-मिठ्ठी बाते कर रहा हैं, इस बुढ़ापे में सठिया गया हैं बुढाऊ, बेटी दामाद, बेटा-बहु, नाती-पोतो  से घर भरा हुआ हैं और इन्हें इस बुढ़ापे में इश्क हो गया हैं, लव लेटर लिखवाना हैं इन्हें मुझसे,”

अभी ऋषभ ये सारी बाते सोच ही रहा था की रवि तनेजा सर की बातो से एक बार फिर चौंक पड़ा ऋषभ,.........आगे की कहानी नेक्स्ट भाग में

 



Comments

  1. इस भाग में "मनुष्य की नश्वरता और जीवन की अप्रत्याशितता" है। रवि तनेजा, जो एक दिन पहले ही ऋषभ को एक निजी कार्य के लिए बुलाते हैं, अगले ही दिन नहीं रहते। यह कहानी इस बात पर प्रकाश डालती है कि जीवन कितना अस्थिर और अनिश्चित हो सकता है। एक ओर रवि तनेजा का ऋषभ से व्यक्तिगत पत्र लिखवाने की आकांक्षा, तो दूसरी ओर उनके अचानक निधन से उत्पन्न शोक, यह दर्शाता है कि हमें अपने रिश्तों और भावनाओं को समय रहते समझना और संजोना चाहिए, क्योंकि कल किसने देखा है।

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