कल किसने देखा हैं (भाग-4)


 

कल किसने देखा हैं (भाग-4)

ऋषभ और रिया की कहानी    

रवि तनेजा के डेथ के करीब 15 दिन बाद, सुबह के 10 बजे थे, ऋषभ अभी अभी ऑफिस आया ही था की प्यून ने आ कर बताया- “सर तनेजा सर की वाइफ आयीं हैं,”

प्यून की बात सुन कर ऋषभ चौकते हुए- “तनेजा सर की वाइफ आयीं हैं ? केबिन में भेजो उन्हें,”

प्यून ऋषभ की बात सुन कर तनेजा सर की वाइफ को ऋषभ के केबिन में ले कर आता हैं, ऋषभ खड़े हो कर बड़े आदर से तनेजा सर की वाइफ को चेयर पर बैठने के लिए इशारा करते हुए बोलता हैं, “भाभी जी आप यहाँ क्यों आई, मुझे बुला लिया होता, मैं खुद मिलने आ जाता आपसे,

तनेजा सर की वाइफ सकुचाते हुए- “ऋषभ जी मुझे आपसे जरुरी काम था,”                     

ऋषभ- “भाभी जी, बताईये क्या काम हैं आपको मुझसे ?”

तनेजा सर की वाइफ धीरे से- “ऋषभ जी आप तनेजा सर का प्रोविजनल (provisional fund ) मेरे बेटे सुमित को और उनकी नौकरी सुमन को दे दीजिये,”

तनेजा सर की वाइफ की बात सुन कर ऋषभ चौंकते हुए- “भाभी जी ये आप क्या बोल रहीं हैं, आप नौकरी नहीं करना चाहतीं हैं तो कोई बात नहीं, लेकिन इन पैसो को आप आपने पास रखिये, ये आपके बुढ़ापे में काम आयेंगे,”

तनेजा सर की वाइफ एक फीकी हँसी के साथ- “ऋषभ जी उनके जाने के बाद मैं उनके पैसो का क्या करुँगी ? इन पैसो ने ही तो उनकी जान ले ली, जब समय था तो ना कही घुमने जाते थे और ना ही किसी रिश्तेदार से मतलब रखते थे, सारी जिंदगी पैसे और नौकरी के पीछे भागते रहे, इस बुढ़ापे में उन्हें ना जाने क्या क्या सौख चढ़ गया था, अपनी शादी की सालगिरह मनाने का, शिमला मनाली घुमने का, सारी जिंदगी इन्हीं बच्चो के लिए कमाते रहे, इनकी हर जरुरत को पूरा करते रहे, और आज जब इन्हीं बच्चो को पैसे की जरुरत पड़ी तो इन्हें अपने शौख पुरे करने थे,”

इतना बोलते बोलते तनेजा सर की पत्नी के आँखों से आँसू के दो बूंद निकल कर गालो पर लुढ़क जाते हैं, तनेजा सर की वाइफ जल्दी से अपने आँचल से उन आँसुओ को पोछ लेती हैं मानो वो नहीं चाहती थी की ऋषभ उन आँसुओ को देखे, लेकिन फिर भी ऋषभ की नजर उन आँसुओ पर पड़ ही जाती हैं, ऋषभ अच्छी तरह से समझ गया था, तनेजा सर को हार्ट अटैक क्यों और किसलिए आया ? ऋषभ आगे कुछ नहीं बोलता हैं,



तनेजा सर की वाइफ एक गहरी साँस लेते हुए- “ऋषभ जी आप पैसे सुमित को दे दीजिये, और नौकरी सुमन को, ये सब मेरे किसी काम के नहीं हैं, तनेजा जी जब जवान थे, जब घुमने का, मौज मस्ती करने का समय था, तब तो मेरे उपर ध्यान ही नहीं दिया और अब बुढ़ापे ऐसे शौख पालने से क्या मिला उन्हें ?”

 

तनेजा सर की वाइफ निर्विकार भाव से बोले जा रही थी और उनके बोले हुए एक-एक शब्द ऋषभ के कलेजे पर हथौड़े के जैसे चोट कर रहे थे, ऋषभ एकदम खामोश उनकी बाते सुन रहा था, उनकी बाते सुनने के बाद ऋषभ बिना कोई सवाल जवाब किये एक लेटर लिख कर तनेजा सर की वाइफ के हाथो में पकडाते हुए बोलता हैं, “भाभी जी बाहर रमेश जी को ये कागज दे दीजिये, जल्द ही आपका काम हो जायेगा,”

ताजेना सर की वाइफ ऋषभ के हाथो से लेटर ले कर चुप-चाप ऋषभ के केबिन से बाहर निकल जाती हैं,

ऋषभ अपने चेयर पर बैठा उन्हें केबिन से बाहर जाते हुए देखता रह जाता हैं और मन ही मन सोचने लगता हैं- “तनेजा सर ने देर कर दी अपनी पत्नी को अपने दिल की बात बताने में, लेकिन करते भी क्या ? घर परिवार की जिम्मेदारी उठानी है तो नौकरी तो करनी ही पड़ेगी, चाहे जैसे भी पैसा तो कमाना ही पड़ेगा,” ऋषभ अपने आप से “तो क्या हमे अपनी जिंदगी नहीं जीना चाहिए ?उसकी शादी को भी 15 साल हो गये, वो भी ना जाने कब से वो किसी रिश्तेदार के घर नहीं गया, और गया भी तो रात को गया और सुबह सुबह निकल जाता हैं, ड्यूटी जो पकडनी होती हैं उसे, घर परिवार रिश्तेदार सब रिया ही सम्हालती हैं, उसे तो ये भी याद नहीं की वो रिया के साथ अकेले कब बाहर गया था, शायद बच्चे होने के बाद से कभी कही बाहर नहीं गया,” ऋषभ अपने अंदर ही सवालों के भवंर में फंस जाता हैं, ऋषभ अभी इन्ही उधेड़-बून में था की उसके मोबाईल की घंटी बज उठती हैं, ऋषभ कॉल रिसीव करता हैं, ऋषभ के कंपनी के MD का फ़ोन था, ऋषभ की छुट्टी पास हो गयी थी, छुट्टी पास हो जाने पर ऋषभ खुश होते हुए अपने आप से- “चलो आज कुछ तो अच्छा हुआ, इस बार वो रिया को ले कर अकेले ही दिल्ली जायेगा, और पूरी दिल्ली घूम कर वापस आएगा,” यही सोच कर ऋषभ खुश हो कर घर पहुँचता हैं, घर पहुँच ऋषभ रिया को छुट्टी मिल जाने की खबर बताता हैं, जिसे सुन कर रिया पहले तो खुश होती हैं लेकिन कुछ ही देर बाद उदास होते हुए- “हम नहीं जा सकते ऋषभ ?” 

ऋषभ आश्चर्य से रिया की ओर देखते हुए- “क्यों ? क्यों नहीं जा सकते ?”

रिया- “क्यों की ऋषि और रितिका के नेक्स्ट मंथ से एग्जाम शुरू होने वाले हैं, ऐसे में हम घुमने गये तो उनकी पढाई पर असर होगा ?”

रिया की बात सुन कर ऋषभ मुस्कुराते हुए- “रिया एग्जाम बच्चो का हैं, पढाई भी बच्चो को ही करना हैं इसमें हम दोनों का क्या काम, और ऐसे भी ये एग्जाम तो हर 3 मंथ, 6 मंथ में आता है, इसलिए इन बच्चो को इसकी आदत होनी चाहिए, इसमें अलग से तैयारी करने की क्या जरुरत हैं ?”

ऋषभ की बात सुन कर रिया आश्चर्य से ऋषभ की ओर देखते हुए- “तो क्या बच्चे हमारे साथ नहीं जा रहे हैं ?”

ऋषभ एक छोटा सा जवाब देता हैं- “नहीं,”

रिया तुनक कर मुहँ फुलाते हुए- “बच्चे नहीं जायेंगे तो मैं भी नहीं जाउंगी, बच्चे यहाँ अकेले कैसे रहेंगे ?”

ऋषभ- “बच्चो के नानी को बुला लो, कुछ दिन यही रहेंगी, ऐसे भी वहाँ से सारे लोग तो दिल्ली जा रहे होंगे, और कामवाली को बोल दो, जब तक हम लोग दिल्ली से लौट कर वापस नहीं आ जाते थोडा ज्यादा टाइम देगी हमारे घर पर,”

रिया असमंज भरे नजरो से- “लेकिन ऋषभ बच्चे अभी छोटे.....”

रिया की बात को बिच में ही काटते हुए- “रिया बच्चे बड़े हो गये हैं अपना ख्याल रख सकते हैं और हमें बच्चो को थोडा अकेले छोड़ना भी चाहिए,”

रिया अभी भी असमंजस की स्थिति में खड़ी थी की ऋषभ आगे बढ़ कर बड़े प्यार से रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए- “और रिया हम दोनों बहुत दिनों से अकेले कहीं बाहर नहीं गये,”

ऋषभ की बात सुन कर रिया प्यार भरी नजरो से देखते हुए- “ये अचानक से आपको क्या हो गया हैं ?”

ऋषभ- “अचानक से मतलब ? तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता,”

रिया प्यार से ऋषभ की ओर देखते- “मैंने ऐसा कब कहा की मुझे तुम्हारा साथ अच्छा नहीं लगता हैं, लेकिन बच्चे.....”अभी रिया अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की उसकी 14 साल की बेटी ईशिका चली आती हैं और रिया के गले में बड़े प्यार हाथ डालते हुए- “मम्मा डैड बिलकुल सही बोल रहे हैं आप और डैड दोनों दिल्ली जाईये और घूम कर आईये, मैं, ऋषि और अपना ख्याल रख लुंगी, और फिर नानी तो रहेंगी हमारे साथ,” ईशिका की बात सुन कर रिया खुश होते हुए अपनी बेटी के गालो को प्यार से थपथपाते हुए- “मेरी बेटी बड़ी हो गयी हैं अब,”

ईशिका रिया को प्यार से धक्का देते हुए- “ मम्मी अब बहुत बात हो गया, चलिए दिल्ली जाने की तैयारी करते हैं,” ईशिका की बात सुन कर ऋषभ और रिया दोनों हँसते लगते हैं,

दुसरे दिन रिया और ईशिका दोनों दिल्ली जाने की तैयारी में लग जाते हैं, ईशिका चुन-चुन कर ड्रेस निकाल कर रिया को दे रही थी और रिया उन ड्रेसेस को बैग में रख रही थी, ऋषभ बार बार तिरछी नजर से रिया की ओर देख रहा था, रिया बहुत खुश दिखाई दे रही थी, घर का मौहाल एकदम खुशनुमा हो गया था,

ऋषभ- “ठीक हैं रिया तुम दोनों माँ बेटी बैग तैयार करो मैं तुम्हारी माँ को लेने चला जाता हूँ और उधर से लौटते वक़्त टिकट भी बनवाता हूँ,”

ऋषभ अभी तैयार हो कर घर से निकलने ही वाला था की ऋषभ का मोबाईल बज उठता हैं, ऋषभ मोबाईल निकल कर देखता हैं और- “माँ का फ़ोन अभी इस वक़्त ?”

सासु माँ का नाम सुनते ही रिया चौंक जाती हैं, ऋषभ फ़ोन रिसीव करता हैं और फिर बोलता हैं- “रिया लगता हैं हमें अपने घुमने जाने का प्लान कैंसिल करना पड़ेगा,”

ऋषभ की बात सुन कर रिया तो कुछ नहीं बोली लेकिन ईशिका- “क्यों डैड क्यों कैंसल करना पड़ेगा ?”

ऋषभ रिया की ओर देखते हुए- “क्यों की तुम्हारी दादी माँ आ रही हैं ?”

ईशिका अपने दोनों भावों को सिकोड़ते हुए- “दादी माँ आ रही हैं ? अचानक ?”

ऋषभ हँसते हुए- “ये तो तुम अपनी मम्मी से पूछो,”

ईशिका रिया की ओर देखते हुए- “मम्मी ?”

रिया अपना फेस बनाते हुए- “माँ जी का फ़ोन आया था, मैंने ही उनसे बोल दिया था की आज कल ऋषभ कुछ परेशान रहते हैं, उनके बॉस की डेथ का बहुत बुरा असर हुआ हैं ऋषभ पर,”

ऋषभ- “इसीलिए माँ अपने बेटे से मिलने आ रही हैं, रिया लंच बना दो, मैं माँ को रिसीव करने स्टेशन जा रहा हूँ, वहाँ से लौट कर ऑफिस चला जाऊंगा, बिना वजह छुट्टी लेना ठीक नहीं हैं,”

रिया उदास होते हुए हाँ में सर हिलाते हुए किचन में चली जाती हैं, ऋषभ माँ को लेने स्टेशन के लिए निकल जाता हैं, ईशिका अभी भी बैग के पास बैठी कपड़ो को घुर रही थी, 

क्या होगा आगे ? क्या ऋषभ की रिया के साथ अकेले घुमने की ख्वाहिश रह जाएगी अधूरी ? आगे की कहानी अगले भाग में.........

 

 

 

Comments


  1. कहानी की समीक्षा:

    1. भावनात्मक गहराई:
    - कहानी में तनेजा सर की पत्नी के मनोविज्ञान और उनके अतीत की एक गहरी झलक मिलती है। उनके दुःख और पछतावे को कुशलता से व्यक्त किया गया है, जो पाठक को उनकी स्थिति और तनेजा सर की ज़िंदगी के चुनावों के परिणाम को समझने में मदद करता है।

    2. पात्रों की मनोवृत्ति:
    - ऋषभ की मनोवृत्ति और उनकी अंधाधुंध व्यस्तता की तस्वीर को बारीकी से उकेरा गया है। तनेजा सर के प्रति ऋषभ की चिंता और रिया के साथ उनके संबंधों में सामंजस्य की कमी स्पष्ट होती है।
    - रिया की भूमिका और उसकी चिंताओं को भी प्रभावी ढंग से चित्रित किया गया है। उसकी घरेलू जिम्मेदारियाँ और बच्चों की पढ़ाई के प्रति संवेदनशीलता को सही तरीके से दर्शाया गया है।

    3. संवाद और वर्णन:
    - संवादों के माध्यम से पात्रों के बीच के रिश्ते और उनकी मानसिक स्थिति को स्पष्ट किया गया है। तनेजा सर की पत्नी का संवाद ऋषभ के मनोवैज्ञानिक संघर्ष को दर्शाता है।
    - रिया और ऋषभ के बीच के संवाद में एक सुखद बदलाव दिखाया गया है, जिसमें ऋषभ का छुट्टी का प्रस्ताव और रिया की प्रतिक्रिया को समग्र रूप से सही ढंग से प्रस्तुत किया गया है।

    4. संघर्ष और समाधान:
    - तनेजा सर की पत्नी के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि जीवन में पैसा और नौकरी का महत्व कितना अस्थायी हो सकता है, जबकि परिवार और व्यक्तिगत सुख की अनदेखी का क्या परिणाम हो सकता है।
    - ऋषभ की छुट्टी के प्लान के साथ अचानक माँ की आमद की खबर भी एक नया मोड़ लाती है, जो कहानी को अगले भाग के लिए एक नया आधार देती है।

    पात्रों की भावनात्मक जटिलताओं और जीवन की सच्चाइयों को प्रभावी ढंग से उकेरा है। कहानी का यह हिस्सा पाठकों को सोचने पर मजबूर करता है कि जीवन में क्या वास्तव में महत्वपूर्ण है और हम अपनी प्राथमिकताओं में कितना संतुलन बनाए रखते हैं। यह भाग कथा के समग्र प्रवाह को सुंदरता से जोड़ता है और आने वाले भागों के लिए उत्सुकता पैदा करता है।

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