कल किसने देखा है (भाग-5)

 
कल किसने देखा है (भाग-5)

ऋषभ और रिया की कहानी     

थोड़ी देर पहले रिया का चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था, जो अभी उदासी में लिपट गया, ईशिका जो कुछ देर पहले चहक रही थी, उदास हो कर अपने कमरे में चली जाती हैं,

ईशिका को उदास देख कर ऋषि “अरे दीदी उदास क्यों हो रही हो ? नानी की जगह हम लोग दादी के साथ रह लेंगे,”

ईशिका अपने छोटे भाई ऋषि को घुड़की लगाते हुए- “चुप.... दादी माँ के साथ ? पता हैं ना दादी माँ कितनी खडूस हैं, दादी माँ कभी नहीं जाने देगी मम्मी पापा को दिल्ली,”

ऋषि- “अरे क्यों नहीं जाने देगी ? मैं बात करूँगा ना दादी माँ से, वो मेरी बात कभी नहीं टालती हैं,”

अभी ईशिका और ऋषि आपस में बाते कर ही रहे थे की उन्हें दरवाजे की घंटी सुनाई पड़ती हैं, ऋषि दौड़ कर दरवाजा खोलता हैं, और ख़ुशी से अपनी दादी माँ से लिपट जाता हैं, दादी माँ भी खुश हो कर ऋषि को अपने सिने से लगा लेती हैं, दादी माँ अभी सोफे पर बैठी ही थी की ऋषि बोल उठा- “दादी आप गलत टाइम पर आ गये हो,”

ऋषि की बात सुन कर दादी अपनी दोनों आँखे सिकोड़ कर- “गलत टाइम पर आ गयी हूँ, मतलब ?”

ऋषि की बात सुन कर रिया और ऋषभ अवाक् एकदुसरे का मुहँ देखने लगते हैं, ईशिका आगे बढ़ कर ऋषि का हाथ पकड़ लेती हैं और अपनी आँखे दिखा कर चुप रहने का इशारा करती हैं, दादी माँ ईशिका को इशारा करते हुए देख लेती हैं,

दादी माँ इशिका को डांट लगाती हुई- “बोलने दे छोटे को ? फिर दादी माँ ऋषि को अपने गोद में बैठाते हुए- “हाँ बोल छोटे क्या बोल रहा था तू ?” अब तो ऋषभ के भी हाथ पैर फुल जाते हैं, पता नहीं ऋषि की बात सुन कर माँ कैसा रिअक्ट करेगी ? ऋषि कुछ बोलता इससे पहले ही ऋषभ बोल पड़ता हैं, अरे माँ आप भी ना बाते-वाते बाद में कर लीजियेगा, सफर से थक कर आयीं हैं, पहले हाथ-पैर धो कर कुछ खा-पी लीजिये फिर आराम से बाते कीजियेगा।

लेकिन माँ को तो ऋषि की बात लग गयी थी। वो अपनी आँखे बड़ी-बड़ी कर ऋषभ को चुप रहने का इशारा करती हैं, माँ के इशारे को समझ ऋषभ चुप चाप वही सोफे पर बैठ जाता हैं।

दादी माँ- “हाँ बोल छोटे क्या बोल रहा था तू,”

अभी तो ऋषि को भी ये आभाष हो चूका था की उसने कुछ गलत बोल दिया हैं लेकिन अब करे तो  क्या करे, ऋषि सकुचाते हुए कभी अपनी दीदी की ओर तो कभी अपने मम्मी की ओर देखते हुए धीरे से बोलता हैं- “दादी माँ मम्मी और पापा को दिल्ली घुमने जाना था लेकिन अब आप आ गयी हैं तो वे दोनों घुमने नहीं जा पाएंगे।”

ऋषि की दादी माँ अपनी आँखों को मटकाते हुए- “अच्छा ! और तुम दोनों भाई बहन ?”

अभी दादी माँ ने अपनी बात पूरी भी नहीं की थी की ईशिका बिच में ही बोल पड़ी- “अरे दादी माँ, हम तो गाँव ही आने वाले थे लेकिन अब आप यही आ गयी हैं तो......”

ईशिका की बात सुन कर दादी माँ थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती हैं, फिर कुछ सोच कर खुश होते हुए- “अरे तो अब क्या हो गया, गाँव में भी तो मैं ही ख्याल रखती तुम दोनों का, और अब तो मैं यही आ गयी हूँ। मैं ख्याल रखूँगी तुम दोनों का ।”

फिर दादी माँ ऋषभ और रिया को आर्डर देते हुए- “तुम दोनों जाने की तैयारी करो, मैं आ गयी हूँ ना मैं ख्याल रखूँगी ऋषि और ईशिका का।”

रिया- “लेकिन माँ जी आप घर का काम कैसे करेंगी ?”

ऋषभ की माँ अपनी दोनों आँखों को सिकोड़ कर- “क्यों काम वाली नहीं आती हैं क्या ?”

रिया हकलाते हुए- “आती है,”

ऋषभ की माँ- “हाँ तो मैं खाना बना लुंगी और...” फिर दादी माँ दोनों बच्चो की ओर एक नजर देखते हुए- “और कभी कभी ऑनलाइन माँगा लेंगे, है की नहीं बच्चो ?”

दादी माँ की बात सुन कर ऋषि और ईशिका दोनों ख़ुशी से दादी माँ के सिने से लग जाते हैं। थोड़ी देर लाढ करने के बाद दादी माँ हडबडाते हुए बोलती हैं- “ऋषभ तू जा, जा कर अपनी और रिया के लिए  टिकट निकाल कर ले आ, और चलो बच्चो हम चल कर तेरी मम्मी के लिए कपड़े निकलते हैं। ईशिका खुश होते हुए- “चलिए दादी माँ, ये देखिये मैंने मम्मी का बैग तैयार किया हैं।”

दादी बैग में रखे कपड़ो को देख कर नाक-भव सिकोड़ते हुए- “अरे इन कपड़ो को पहन कर घूमेंगी तुम्हारी मम्मी, ये सब पुराने फैशन के कपड़े हैं।”  फिर दादी माँ अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करते हुए- “अरे दिल्ली एक हाई-प्रोफाइल शहर हैं। वो हमारे देश की राजधानी हैं। नए फैशन के कपड़े लाने पड़ेंगे ?”

दादी माँ ईशिका का हाथ पकड़ते हुए- “चल मार्किट चलते हैं, तुम्हारी मम्मी के लिए कुछ नए फैशन के कपड़े खरीद कर लाते हैं।” 

ईशिका दादी माँ की बात सुन कर ख़ुशी से चहकते हुए- “चलिए दादी माँ।” 

 दादी माँ ईशिका के साथ मार्किट से ढेर सारे कपडे खरीद कर लाती हैं और रिया के लिए बैग तैयार करती हैं। रिया को अपनी सासु माँ से इस तरह के व्यव्हार की बिलकुल उम्मींद नहीं थी। रिया ने तो  हमेशा से ही अपनी सासु माँ के अकडू स्वाभाव को ही देखा था। हर बात में अपनी टांग अड़ना, रिया की हर बात में कमी निकलना आदत थी रिया की सासु माँ की, लेकिन आज तो रिया अपनी सासु का एक अलग ही रूप देख रही थी।

सारी तैयारी हो गयी ऋषभ भी टिकट ले कर आ गया था, दुसरे दिन 2 बजे की ट्रेन थी, रिया बच्चो के कमरे में आराम कर रही थी और ऋषभ अपनी माँ के साथ बैठ कर बाते कर रहा था ऋषभ की माँ ऋषभ के करीब आ कर- “बेटे भाग दौड़ की इस जिंदगी से, घर परिवार की जिम्मेदारियों से थोडा वक़्त अपने लिए भी निकाल कर अपनी जिंदगी भी जी लेनी चाहिए, नहीं तो कल किसने देखा हैं कौन ये दुनियाँ छोड़ कर कब चला जाय,”

ऋषभ अपनी माँ की बात सुन कर अपनी माँ के चेहरे की ओर देखता हैं, माँ की आँखों में आँसू भरे हुए थे, ऋषभ अपनी माँ के हाथो को अपने हाथो में ले कर- “माँ आप रो रही हैं ?”

माँ- “अरे नहीं रे, मैं रो नहीं रही हूँ, ये ख़ुशी के आँसू हैं।” अच्छा हैं जो तू इस बात को जीते जी समझ गया नहीं तो बहुत सारे लोग तो अंतिम समय तक इन बातो को समझ नहीं पाते हैं।” खुशियाँ उनके भीतर छुपी होती हैं और वो सारी दुनियाँ में ख़ुशी ढूंढते फिरते हैं।” 

ऋषभ को अपनी माँ की बाते थोड़ी थोड़ी समझ में आ रही थी। वो कुछ नहीं बोलता हैं, बस अपनी माँ के हाथो को अपने हथेलियों में ले कर- “ठीक हैं माँ अब आप सो जाईये रात बहुत हो गयी हैं,” इतना बोल कर ऋषभ अपनी माँ को बेड पर सुला कर लाइट ऑफ कर अपने कमरे में चला जाता हैं।

दुसरे दिन तैयार हो कर ठीक समय पर ऋषभ और रिया दिल्ली के लिए निकल जाते हैं। ईशिका और ऋषि भी अपनी दादी माँ के साथ रिया और ऋषभ को स्टेशन तक छोड़ने आते हैं।

दिल्ली पहुँच कर चार दिन कैसे निकल गये, रिया को पता भी नहीं चला। रिया बहुत खुश थी। पूजा के बाद भी ऋषभ दो दिन और रुक कर रिया के साथ पूरी दिल्ली घुमा।

पुरे एक हप्ते बाद आज रिया और ऋषभ दोनों को दिल्ली से वापस लौटना था। रिया के जीजा जी ऋषभ से- “चलिए ऋषभ जी मैं आप दोनों को स्टेशन छोड़ देता हूँ,”

ऋषभ- “अरे नहीं नहीं भाई साहब आपको तकलीफ करने की कोई जरुरत नहीं हैं, घर में इतने सारे मेहमान आये हैं आप उनका ख्याल रखिये। मैं और रिया चले जायेंगे। आप हम दोनों के लिए केवल टेक्सी बुलवा दीजिये ।”

रिया के जीजा जी ने एक कैब बुक कर दिया।” ठीक समय पर रिया और ऋषभ स्टेशन के लिए निकल गये।” अभी टेक्सी थोड़ी ही दूर आगे निकली होगी की ऋषभ कैब वाले से- “टेक्सी वाले भईया हमे स्टेशन नहीं एअरपोर्ट पर छोड़ दो। ऋषभ की बात सुन कर रिया आश्चर्य से ऋषभ की और देखते हुए- “एअरपोर्ट....हम लोग हवाईजहाज से घर वापस जायेंगे....?”

रिया की बात सुन कर ऋषभ खिलखिला कर हँस पड़ता हैं और हँसते हुए- “अरे पगली हमारे शहर में तो हवाईअड्डा ही नहीं हैं, तो हम हवाई जहाज से अपने शहर कैसे जायेंगे ?”........

रिया- “वही तो,”

ऋषभ हँसते हुए “हम मुंबई जा रहे हैं,”

रिया आश्चर्य से अपनी आँखे बड़ी बड़ी करते हुए- “मुंबई ?”

ऋषभ हँसते हुए- “हाँ हम मुंबई जा रहे। एक अधूरी इच्छा थी, अधूरी ख्वाहिस जिसे पूरा करना चाहता हूँ,”

ऋषभ मुस्कुराते हुए “जब मैं ट्रेनिंग के लिए मुंबई गया था, तब मैंने मन ही मन सोचा था की ट्रेनिंग खत्म होने के बाद जैसे ही मेरी पहली सेलरी मिलेगी तब मुंबई आ कर अपनी इच्छा जरुर पूरी करूँगा, लेकिन वापस लौट कर घर परिवार और नौकरी में ऐसा फंसा की ये मेरा सपना बन कर रह गया। आज घर से बाहर निकला हूँ, तो सोच रहा हूँ की अपने इस सपने को भी पूरा कर लू।

ऋषभ अपने आँखों को गोल-गोल घुमाते हुए- “आखिर कल किसने देखा हैं ? कल मैं रहूँ ना रहूँ ?”

ऋषभ की बात सुन कर रिया गुस्से से अपने नाक को चढाते हुए- “अरे ऐसा क्यों बोल रहे हैं, पहले ही मुंबई चले आते आपके पैसो की कमी थोड़े ही थी,”

ऋषभ हँस कर रिया के कंधे से पकड़ कर खुद से चिपकाते हुए- “तू नहीं समझेगी पगली ?”     

ऋषभ की बात सुन कर रिया अपने कंधे से ऋषभ के हाथो को हटा कर अपने हाथो में ले कर अपने सर को हिलाते हुए- “मुझे तो आपकी कोई बात समझ में नहीं आती हैं,” फिर कुछ सोच कर रिया ऋषभ की और देख कर अपनी बड़ी बड़ी आँखों को मटकाते हुए- “लेकिन मैं तो हवाई जहाज में कभी नहीं बैठी हूँ ?”

ऋषभ प्यार से रिया के कंधे पर हाथ रखते हुए- “कोई बात नहीं मैं हूँ ना,”

आखिर क्या थी ऋषभ की अधूरी इच्छा क्या ऋषभ पूरी कर पायेगा अपनी अधूरी ख्वाहिस को या.......आगे की कहानी अगले भाग में कल किसने देखा हैं (ऋषभ और रिया की कहानी)

 

 

 

बस कुछ ही घंटे बाद रिया ऋषभ के साथ मुंबई में थी। ऋषभ ने पहले से ही ऑनलाइन होटल बुक

Comments

  1. इसमें पारिवारिक रिश्ते और व्यक्तिगत इच्छाओं का समावेश है। इस भाग में, रिया और ऋषभ की माँ के बीच संवाद पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जहाँ दादी माँ की उपस्थिति और उनकी पारंपरिक दृष्टिकोण के बावजूद, रिया और ऋषभ की सासु माँ उनके लिए एक नए और आनंददायक अनुभव की तैयारी करती हैं।

    मुख्य घटनाएँ:
    1. ईशिका और ऋषि की चिंता को दिखाया गया है कि दादी माँ की उपस्थिति उनके मम्मी-पापा की दिल्ली यात्रा को प्रभावित कर सकती है।
    2. दादी माँ की समझदारी और उनकी योजना रिया और ऋषभ के लिए एक नए कपड़े और यात्रा की व्यवस्था को लेकर उनकी चिंताओं को दूर करती है।
    3. ऋषभ की माँ की भावुक सलाह और जीवन की महत्वाकांक्षाओं के प्रति उसकी सोच पर ध्यान दिया गया है।
    4. अंत में, ऋषभ की इच्छा की खुलासा और मुंबई यात्रा का निर्णय कहानी को एक नए मोड़ पर ले जाता है।

    कहानी का सार यह है कि पारिवारिक जीवन में समझ और सहयोग से समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। ऋषभ की व्यक्तिगत ख्वाहिश और उसकी सासु माँ की सहायता के साथ, कहानी एक सकारात्मक और उत्साहपूर्ण अंत की ओर बढ़ती है।

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  2. Bhut hi achi khani

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