कल किसने देखा है (अंतिम भाग )

 

कल किसने देखा है (अंतिम भाग )


रिया और ऋषभ की कहानी

बस कुछ ही घंटे बाद रिया ऋषभ के साथ मुंबई में थी। ऋषभ ने पहले से ही ऑनलाइन होटल बुक कर रखा था। एक रात आराम करने के बाद ऋषभ रिया को मुंबई घुमाने के लिए ले जाता हैं। हर उस जगह पर जहाँ उसने कभी सोचा था। ये ऋषभ की वो अधूरी ख्वाहिस थी जिसके लिए उसे लम्बा इन्तजार करना पड़ा था। मुंबई आ कर रिया बहुत खुश थी। और ऋषभ रिया को खुश देख कर खुश था। रिया जहाँ भी जाती विडियो कॉल पर ऋषि, ईशिका और दादी को भी उस जगह को दिखाती। ऋषभ को मुंबई घुमने से ज्यादा रिया के साथ होने की ख़ुशी थी। ये वो पल थे जो बहुत मुश्किल से मिले थे ऋषभ को। एक शाम ऋषभ रिया को सागर किनारे घुमाने के लिए ले कर गया।

कभी ट्रेनिंग के दिनों में ट्रेनिंग ख़त्म होने के बाद ऋषभ अकेला बैठा रहता था सागर किनारे, और उन कप्पल को देखता रहता था, जो हाथो में हाथ डाले घंटो सागर की लहरों को निहारा करते थे। तभी से ऋषभ के दिल में ये चाहत थी की यूँ ही एक दिन वो भी रिया के हाथो में हाथ डाल कर सागर के किनारे सागर के लहरों को निहारे, घंटो रिया के हाथो को अपने हाथो में लिए सागर किनारे बैठा सागर की लहरों को अठखेलियाँ करते देखे। लेकिन घर वापस लौटते ही घर परिवार और नौकरी सब में ऐसे उलझा की मुंबई घुमने की चाहत उसके लिए एक सपना बन कर रह गया। सागर किनारे ऋषभ रिया के हाथो में हाथ डाले धीरे-धीरे चल रहा था की उसकी नजर सामने नारियल पानी भेजने वाले पर पड़ी। ऋषभ ने नारियल पानी वाले की ओर देख कर रिया से पूछा- “नारियल पानी पियोगी ?” रिया ने हाँ में सर हिला कर अपनी सहमती दी। ऋषभ मुस्कुराते हुए रिया को वहीं समुद्र किनारे छोड़ कर नारियल पानी लेने चला गया। जब वापस लौट कर आया तो रिया समुद्र की लहरों के साथ खेल रही थी, रिया को समुद्र की लहरों के साथ खेलते देख कर ऋषभ थोड़ी देर के लिए रुक गया। ऋषभ को वो दिन याद आ गये जब वो पहली बार रिया को ले कर गाँव से शहर आ रहा था। ऋषभ थोड़ी देर रिया को वैसे ही निहारने के बाद मुस्कुराते हुए नारियल पानी ले कर रिया के पास आता हैं और दोनों साथ में बैठ कर नारियल पानी पीते हैं।

वो शाम समुद्र किनारे ऋषभ और रिया की अच्छी गुजरी। लौटते वक़्त दोनों ने एक रेस्टोरेंट में खाना खाया और होटल वापस लौट आये। रिया बहुत थक गयी थी इसलिए बेड पर लेटते ही गहरी नींद में सो गयी, लेकिन ऋषभ के आँखों में नींद कहाँ थी, ऋषभ तो अभी भी रवि तनेता और उनकी अंतिम इच्छा के बारे सोच-सोच कर परेशान हो रहा था, थोड़ी देर तक ऋषभ होटल के बालकनी में टहलता रहा फिर वापस कमरे में आ कर अपना पेन और डायरी निकाल कर लिखने बैठ गया, ऋषभ ने मन ही मन जो  गलती रवि सर ने किया मैं उस गलती को नहीं दोहराऊंगा  

मैं अपने मन की बात रिया को बता कर रहूँगा। सही कहा था माँ ने- “आखिर कल किसने देखा हैं,” यही सोच कर ऋषभ लिखने बैठ गया........

                                                                           

रिया आज जब मैंने तुम्हें लहरों के साथ खेलते देखा तो कई सारे ख्याल मेरे मन में उभरने लगे थे। सोच रहा हूँ की तुम्हें कैसे बताऊ। वो भी इस उम्र में, जब बालो की सफेदी बढती उम्र का एहसास दिलाने लगे हैं, चेहरे पर उभर रही झुरियां बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे पहले कदम का एहसास दिलाने लगे हैं।

आज सालो बाद जब मैंने तुम्हें समुद्र के लहरों के साथ अठखेलियाँ करते देखा, आँखे जैसे ठहर सी गयी, समय उड़ता हुआ वर्षो पीछे चला गया। मैं जब पहली बार तुम्हें ले कर गाँव से बाहर घुमने निकला था, तब तुम नयी नवेली दुल्हन थी, पैरो में लाल माहवार, हाथों में भरी भरी लाल हरी चूड़ियाँ, माथे पर बड़ी सी लाल बिंदी और होठो पर लाली, मेरे दिल ने मुझसे एक सवाल किया था, बहुत सुंदर थी क्या तुम  ? पता नहीं ? लेकिन नजरे एक मिनट के लिए भी हट नहीं रही थी तुम्हारे चेहरे से, वहीं वो वक़्त था जब बसंत के आने का अनुभव किया था मैंने, दिल के अरमानो को करीब से महसूस किया था मैंने, सामने एक छोटी सी नदी ही तो थी केवल, लेकिन नाव पर बैठ कर अपने हथेलियों को लहरों में डाल लहरों को विपरीत दिशा में धकेलते हुए तुम्हारे चेहरे पर जो ख़ुशी थी, आँखों में जो चमक थी, होठों पर जो हँसी थी, आज भी नहीं भुला मैं, तुम्हारे बालो का उड़ना, उड़ उड़ कर तुम्हारे गालों को छूना और फिर तुम्हारा वो अपने कोमल मुलायम उंगलियों से अपने उड़ते हुए लटों को अपने कानो के पीछे सहेजना, और फिर वापस से उन हवावों का तुम्हारी लटो को छेड़ना, उफ़ वो पल आज भी नहीं भुला मैं,

आज फिर वहीं शाम समुद्र के लहरों से अठखेलियाँ करती तुम्हारी हथेलियाँ, आँखों में वहीं चमक, होठो पर वहीं हँसी, आज भी ये हवाए तुम्हें देख कर वैसे ही बहक रही हैं और छेड़ रही हैं तुम्हारी लटों को और सहेज रही हो तुम अपने कोमल मुलायम उंगलियों से अपनी लटो को कान के पीछे, आज तुम्हें  देख कर इस दिल में हजारो अरमान फिर से जाग गये, सालो बाद क्या आज फिर वहीं बसंत आया हैं मेरे जीवन में, ये बसंत तो हर साल आता हैं अपने समय पर, लेकिन मेरे लिए वो एहसास और वो पल दब के रह से गये थे दिल के किसी कोने में, काम की व्यस्तता और बढती जिम्मेदारियों में, बच्चो को बड़ा कर कामयाब बनाने में, कुछ अपने और तुम्हारे घर को सवारने में, समय के साथ धुंधली होती गयी सारी यादे, आज फिर नजरे ठहर सी गयी हैं तुम्हारे चेहरे पर, आज फिर मेरे दिल ने मुझसे एक सवाल किया हैं, क्या तुम बहुत खुबसूरत हो ? आज पता नहीं हैं, नहीं बोलूँगा, आज बोलूँगा- “हाँ तुम बहुत खुबसूरत हो, मेरे आसमान की एकलौती चाँद जिसकी चांदनी में मेरी हर रात खुबसूरत गुजरती हैं, मैंने तुम्हारी बाँहों में, कभी हल्की-फुल्की, और कभी बेहद बोझिल रात भी बहुत ही सुकून से गुजारी हैं, रात काली हो तब भी उसे अपनी इन दुधिया गोरे रंग से चाँदनी रात में बदल दिया था तुमने, कई बार मेरे कडवे कैसेले मुख में तेरे होठों ने मीठे रस घोले हैं, आज नहीं रोकूंगा खुद को, बोल दूंगा की सिर्फ तुम हो जिसके कारण मेरी राते चैन से और दिन सुकून से गुजरती है, सिर्फ तुम हो जिसकी वजह से मेरा घर, घर हैं और आज भी मेरे होठों पर जो मुस्कराहट हैं उसकी वजह भी सिर्फ तुम हो,

आज नहीं रोकूंगा मैं खुद को, आज तुम्हें बोल कर ही रहूँगा, हाँ तुम आज भी बहुत खुबसूरत हो और मेरे जीवन को खुबसूरत बनाने वाली वो चाँद सिर्फ और सिर्फ तुम हो,

                                                तुम्हारा ऋषभ  

 

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