मुनिया (हिंदी-कहानी)
मुनिया
(हिंदी-कहानी)
यह कहानी सिर्फ एक माध्यम है अपनी बच्चियों को यह समझाने के लिए कि इसी भीड़ में राम भी हैं और रावण भी। इंसान हैं तो शैतान भी। उन्हें पहचानने के लिए हमें अपनी दिमाग की आँखों की जरूरत है। छुप कर रहने से काम नहीं चलेगा। बिना पढ़े आगे नहीं बढ़ सकते, इसलिए हमें अपनी बच्चियों को हमेशा सतर्क रहने के लिए सिखाना होगा।"
जब से मुनिया की अम्मा ने शहर में एक डॉक्टर महिला के साथ हुए दुष्कर्म की बात सुनी थी, तभी से मुनिया की अम्मा बहुत परेशान थी। दो दिन हो गए, मुनिया की अम्मा ने मुनिया को स्कूल नहीं भेजा। मन ही मन वह सोच-सोच कर परेशान हो रही थी कि एक औरत, जो इतनी पढ़ी-लिखी थी, उसके साथ ऐसा हो सकता है, तो हम जैसे आम लोगों की क्या बिसात!
उधर, मुनिया भी अपनी अम्मा की बीमारी से बहुत परेशान थी। मुनिया भी मन ही मन परेशान थी कि क्या हुआ अम्मा को, तबियत ठीक नहीं है कह रही हैं और घर का कोई काम भी नहीं करने दे रही हैं। बस केवल अपने पास बैठा कर प्यार से कभी सर पर हाथ फेर रही हैं तो कभी माथे को चूम रही हैं।
मुनिया के ही स्कूल में पढ़ने वाली विमला, जो मुनिया से चार साल बड़ी थी, ने मुनिया से पूछा, “क्यों री मुनिया, तू आज भी स्कूल नहीं जाएगी? तेरी अम्मा की तबियत ठीक नहीं हुई अभी तक?”
विमला की बात सुनकर मुनिया भागकर घर के अंदर जाती है और अपनी अम्मा से कहती है, “अम्मा, आज भी मुझे स्कूल नहीं भेजोगी क्या? मैं क्लास में पीछे हो जाऊँगी, टीचर दीदी गुस्सा करेंगी।”
कुछ सोचकर मुनिया की अम्मा कहती है, “ठीक है, जा कर नहा ले। मैं तेरे लिए कुछ खाने को बना देती हूँ।”
आखिर कब तक मुनिया की अम्मा मुनिया को अपने पास बैठा कर रखेगी? बाहर की दुनिया से लड़ने के लिए तो मुनिया को सिखाना पड़ेगा। थोड़ी देर में मुनिया स्कूल की ड्रेस पहनकर अम्मा से कहती है, “अम्मा, जल्दी से मेरे बाल बना दो, नहीं तो विमला दीदी गुस्सा करेंगी।”
मुनिया की अम्मा मुनिया के बैग में टिफिन रखकर मुनिया के बालों में कंघा करते हुए कहती है, “हाँ-हाँ, बना रही हूँ। तेरा तो कोई ना कोई गुस्सा ही करता रहता है, कभी टीचर दीदी तो कभी विमला दीदी।”
मुनिया की अम्मा मुनिया के बाल बना कर उसके गालों पर प्यार से सहलाते हुए कहती है, “देख, मुनिया, तू अब बड़ी हो गई है। बाहर भीड़ में बहुत से राक्षस घूमते रहते हैं।” अपनी अम्मा की बात सुनकर मुनिया अपनी अम्मा की ओर देखती है और आश्चर्य से अपनी बड़ी-बड़ी आँखें मटकाते हुए पूछती है, “अम्मा, राक्षस? लेकिन मैंने तो कभी राक्षस को नहीं देखा।”
अम्मा भी मुनिया
की आँखों में आँखें डालकर कहती हैं, “हाँ, राक्षस वैसे ही होते हैं जैसे हम और तुम।
उन्हें दिमाग की आँखों से पहचानना होता है।”
मुनिया अपनी
बड़ी-बड़ी आँखें मटकाते हुए पूछती है, “दिमाग की आँखों से मतलब, अम्मा?”
अम्मा- “मतलब जब तुम्हें कोई छुएगा, तो तुम्हें कुछ अजीब सा महसूस होगा। उसकी जुबान तो मिठी
बातें करेगी, लेकिन आँखों में एक शैतानी चमक होगी।”
अम्मा की सारी
बातें मुनिया के सिर के ऊपर से निकल रही थीं, लेकिन फिर भी मुनिया अपनी बड़ी-बड़ी आँखें मटकाकर अपनी
अम्मा की बातें बहुत ध्यान से सुन रही थी।
अम्मा- “देख मुनिया, तू किसी से कुछ नहीं लेना। कोई कुछ भी बोले, किसी के साथ मत जाना।”
मुनिया की अम्मा मुनिया को अपनी बड़ी-बड़ी आँखें दिखाते हुए कहती हैं, “कोई भी, मतलब कोई भी।” अभी मुनिया की अम्मा मुनिया को समझा ही रही थी कि विमला “मुनिया-मुनिया” चिल्लाती हुई दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है। मुनिया विमला को देखकर खुशी से उछल पड़ती है और जल्दी-जल्दी अपना स्कूल बैग अपने कंधे पर टांगती है। फिर वह अपनी अम्मा को बाय बोलकर विमला का हाथ पकड़कर स्कूल की ओर चल देती है। मुनिया विमला का हाथ पकड़कर सड़क के किनारे-किनारे चल रही थी कि तभी सामने से कुछ आदमियों का झुंड आ गया। मुनिया अपनी मस्ती में विमला का हाथ पकड़े हुए बातें करती हुई सड़क के किनारे चल रही थी कि अचानक भीड़ में आए लोग इधर-उधर भागने लगे। मुनिया कुछ समझ पाती, इससे पहले ही एक आदमी झटके से मुनिया से टकरा गया। मुनिया का हाथ विमला से छूट गया और मुनिया विमला से दूर गिर पड़ी।
वह आदमी लपककर मुनिया को उठाने दौड़ा, लेकिन भीड़ की वजह से विमला मुनिया तक पहुँच ही नहीं पाई। मुनिया कुछ समझ पाती, उससे पहले ही वह आदमी एक झटके के साथ मुनिया का हाथ पकड़कर एक गली में घुस गया। मुनिया अभी तक कुछ समझ नहीं पा रही थी और पीछे मुड़-मुड़कर विमला को देख रही थी, लेकिन विमला उसे दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रही थी।
वह आदमी सहानुभूति
दिखाते हुए मुनिया के शरीर को यहाँ-वहाँ छू रहा था। मुनिया को उस आदमी के छूने से
एक अजीब अनुभव हो रहा था; उसे
ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसके शरीर पर कीड़े रेंग रहे हों। अचानक मुनिया को अपनी
अम्मा की बात याद आ जाती है। अम्मा की बात याद आते ही मुनिया अंदर तक सिहर जाती
है। मुनिया अपने मन में सोचती है, “आज
सुबह अम्मा जिस राक्षस के बारे में बता रही थीं, शायद यह वही राक्षस है। जो बातें तो
बहुत मिठी-मिठी कर रहा है लेकिन आँखों में एक अलग ही शैतानी चमक है। इसका छूना
मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है। हाँ, हाँ, यह
वही भीड़ वाला राक्षस है, जिसके
बारे में अम्मा ने आज सुबह ही मुझे बताया था।”
वह आदमी मुनिया के शरीर को यहाँ-वहाँ छूते हुए कह रहा था, “तुम्हें कहीं चोट तो नहीं लगी, मुन्नी? चलो, मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ देता हूँ।”
मुनिया उस आदमी के हाथों को अपने से दूर करते हुए कहती है, “नहीं-नहीं अंकल, मैं बिलकुल ठीक हूँ, और मुझे अपने घर का रास्ता पता है। मैं खुद से चली जाऊँगी।”
वह आदमी मुनिया की कलाई को कसकर पकड़ते हुए कहता है, “अरे, ऐसे कैसे चली जाओगी? मैं छोड़ देता हूँ ना तुम्हें।”
उस आदमी की बात सुनकर मुनिया घूरकर उस आदमी की ओर देखती है। मुनिया को उस आदमी की आँखों में एक शैतानी चमक दिखाई देती है। मुनिया एक बार अपनी कलाई को पकड़े हुए उस आदमी के हाथों को देखती है, फिर कुछ सोचकर मुनिया जोर से अपने नुकीले दांतों को उस आदमी के हाथों पर गड़ा देती है। जैसे ही मुनिया के दांत उस आदमी की कलाई पर गड़ते हैं, वह आदमी दर्द से बिलबिला उठता है और उसके मुँह से चीख निकल जाती है, “आह...”
इसके साथ ही, उस आदमी के हाथों से मुनिया की कलाई छूट
जाती है। जैसे ही मुनिया की कलाई उस आदमी के हाथों से छूटती है, मुनिया बेतहाशा दौड़ने लगती है। मुनिया
पीछे मुड़कर भी नहीं देखती और तब तक दौड़ती रहती है जब तक वह अपने घर नहीं पहुँच
जाती। मुनिया घर पहुँच कर सीधे अपनी अम्मा की गोद में सर छुपा लेती है। मुनिया का
दिल जोर से धड़क रहा था। मुनिया ने आज उस राक्षस को देख लिया था जो देखने में तो
बिलकुल आम इंसान सा लगता है, लेकिन...
अल्पना सिंह
ReplyDelete"मुनिया" कहानी का मूल भाव यह है कि हमें अपनी बेटियों को आत्मनिर्भर और सतर्क बनाना चाहिए। उन्हें यह सिखाना चाहिए कि समाज में अच्छे और बुरे दोनों प्रकार के लोग होते हैं, और उन्हें बुराई को पहचानने और उससे बचने के लिए तैयार रहना चाहिए। यह कहानी बताती है कि कैसे एक छोटी सी बच्ची, मुनिया, अपनी अम्मा के द्वारा दी गई सीख को याद करके खुद को एक खतरनाक स्थिति से बचाने में सफल होती है।
समीक्षा:
"मुनिया" एक संवेदनशील और सशक्त कहानी है जो समाज में महिलाओं के प्रति हो रहे अत्याचारों और अपराधों को उजागर करती है। कहानी की भाषा सरल और प्रभावशाली है, जो पाठकों को मुनिया के अनुभवों से जोड़ देती है। कहानी के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि बच्चों को सिखाना चाहिए कि कैसे वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। मुनिया का चरित्र मासूमियत और सतर्कता का प्रतीक है, जो कठिन परिस्थितियों में भी साहस दिखाती है। कहानी का अंत सकारात्मक है, जिसमें मुनिया अपनी अम्मा की सीख पर अमल करते हुए खुद को बचाती है, जो यह दर्शाता है कि सही समय पर सही सीख कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है।