श्री राम की यात्रा: एक आध्यात्मिक अनुभव
श्री राम की यात्रा: एक आध्यात्मिक अनुभव
श्री राम का जीवन मेरे लिए सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक गहन अनुभव है। मैंने बचपन से ही श्री राम की कहानियाँ सुनी हैं—कभी अपने दादाजी के मुँह से, तो कभी अपनी माँ से। इसके अलावा, टीवी पर रामायण के धारावाहिक ने भी श्री राम को मेरे जीवन में विशेष स्थान दिया। वे सिर्फ एक व्यक्ति नहीं हैं; वे हमारे संस्कारों, सभ्यता और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं। श्री राम हमारे देश की आत्मा में बसे हैं। लेकिन यह सब बातें सुनने में जितनी आसान लगती हैं, वास्तविकता में उतनी ही गहरी और रहस्यमयी हैं। आज भी बहुत से लोग रामायण पर सवाल उठाते हैं और श्री राम के अस्तित्व को चुनौती देते हैं।
किताबों में श्री राम को पढ़ना, किसी से सुनना और उन्हें प्रत्यक्ष अनुभव करना—इनमें बहुत अंतर होता है। मैंने भी बचपन से श्री राम की कहानियाँ सुनी थीं, पर कभी उन्हें महसूस नहीं किया था। लेकिन जब मैंने रामेश्वरम की यात्रा की, तो ऐसा लगा कि मैंने श्री राम को प्रत्यक्ष अनुभव किया। यह यात्रा मेरे लिए एक आध्यात्मिक अनुभव से कम नहीं थी। ऐसा लगा मानो श्री राम को बहुत करीब से देखा हो।
मैं बिहार की रहने वाली हूँ, और बिहार से रामेश्वरम लगभग 3000 किलोमीटर दूर है। हमारी यात्रा तीन दिन लंबी थी, और हम ट्रेन से जा रहे थे। मेरी सीट ऊपर वाले बर्थ पर थी। मैं लेटकर सोने की कोशिश कर रही थी, पर मेरे मन में श्री राम और सीता की छवि घूम रही थी। मुझे याद आ रहा था कि श्री राम भी इसी रास्ते से होकर सीता को ढूंढ़ते हुए समुद्र तट तक पहुँचे थे। जैसे ट्रेन पहाड़ों और जंगलों के बीच से होकर गुजर रही थी, मुझे लग रहा था कि श्री राम ने भी इन्हीं दुर्गम रास्तों को पार किया होगा, वो भी बिना किसी सुविधा के, पैदल चलकर।
रामेश्वरम पहुँचने के बाद हम एक होटल में रुके। अगले दिन जब मैं समुद्र तट पर पहुँची, तो वहाँ का दृश्य अविस्मरणीय था। मैंने इससे पहले भी कई समुद्र तट देखे थे, जहाँ लहरें ऊँचाई तक उठती थीं, पर रामेश्वरम का समुद्र बिल्कुल शांत था, मानो कोई झील हो। ऐसा लगा मानो समुद्र स्वयं श्री राम का सम्मान कर रहा हो।
उस शांत समुद्र को देखकर मुझे राम और सागर की वह कथा याद आई, जब श्री राम ने समुद्र से लंका जाने का मार्ग माँगा था। तीन दिन तक इंतजार करने के बाद, जब समुद्र ने मार्ग देने से इनकार कर दिया, तो श्री राम ने अपने धनुष पर तीर चढ़ा लिया। तब समुद्र ने स्वयं प्रकट होकर राम से कहा कि वह मार्ग नहीं दे सकता, पर जल को शांत कर देगा ताकि श्री राम अपनी सेना के साथ पुल बना सकें। नल और नील ने पत्थरों से पुल बनाया, जिसे आज हम रामसेतु के नाम से जानते हैं।
रामेश्वरम में उस समुद्र तट को देखकर मुझे यकीन हो गया कि राम का अस्तित्व सच में था। यह सिर्फ एक कहानी नहीं हो सकती। हजारों सालों से इस स्थान पर समुद्र शांत रहा है, जबकि बाकी जगहों पर लहरें ऊँचाई तक उठती हैं। यह अनुभव मुझे हमेशा राम के होने का एहसास कराता है। राम ने जिन कठिन रास्तों को पार किया, वे आज भी हमें प्रेरणा देते हैं।
इस यात्रा ने मुझे यह सिखाया कि राम सिर्फ एक चरित्र नहीं, बल्कि एक प्रेरणा हैं। मैं समझ गई कि वे सिर्फ एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और जीवन के मूल हैं। श्री राम की कहानियों का यह गहरा अनुभव मेरे लिए एक अद्वितीय यात्रा साबित हुआ, जो जीवनभर मेरे साथ रहेगा ।
अल्पना सिंह
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