रीमा का अनुभव और गुंजन की समझ
शाम होने वाली थी
और रीमा को फिर से देर हो गई थी। घर पहुँचकर उसे सारा काम भी करना था, और उसे चिंता थी कि सोनू ने खाना खाया
होगा या नहीं। जतिन के घर पहुँचने से पहले रीमा को घर पहुँचना था, क्योंकि यदि जतिन ने पहले पहुँचकर घर का
माहौल खराब कर दिया, तो गुंजन को बुरा लगेगा। (गुंजन, रीमा की बुआ की बेटी थी, जो अपने बीएड के एग्जाम देने के लिए कुछ
दिनों के लिए रीमा के घर आई थी।)
इन्हीं विचारों
में खोई रीमा तेज कदमों से घर पहुँची। जैसा उसे डर था, वैसा ही हुआ—जतिन पहले ही आ गया था। सोनू ने खाना नहीं खाया और गेम
खेलने बैठ गया था। जतिन के जूतों पर नज़र पड़ते ही रीमा ने मन में ठान लिया कि वह
आज कुछ नहीं बोलेगी। अगर वह चुप रहेगी, तो जतिन खुद ही चुप हो जाएगा, और लड़ाई से बचा जा सकेगा। इसी सोच के साथ रीमा ने सीधे
वाशरूम में जाकर हाथ-पैर धोए और किचन में जाकर खाना बनाने लगी।
लेकिन जतिन की आदत
तो जानी-पहचानी थी। वह चुप कैसे रह सकता था? उसके गुस्से ने जैसे आग पकड़ ली।
“आज फिर देर से आई
हो तुम,” जतिन ने चिल्लाकर कहा।
“हाँ, ऑफिस में प्रेजेंटेशन था,” रीमा ने धीरे से जवाब दिया।
“अच्छा तो तुम्हीं
ठेका ले रखा है क्या सभी का?” जतिन ने और भी
ऊँची आवाज़ में कहा।
रीमा ने उसकी
बातों को अनसुना कर दिया, लेकिन उसकी चुप्पी ने जतिन के गुस्से को
और बढ़ा दिया। अंततः दोनों में बहस शुरू हो गई। गुंजन सब कुछ चुपचाप सुन रही थी।
जतिन और रीमा करीब दो घंटे तक एक-दूसरे पर चिल्लाते रहे। अंततः जतिन गुस्से से
अपने कमरे में चला गया।
रीमा ने चुपचाप
खाना बनाया और गुंजन और सोनू को खिला दिया। उसने जतिन को मनाने की कई बार कोशिश की, लेकिन जतिन ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी
और मुँह फेरकर सो गया। लेकिन खाली पेट किसे नींद आती है भला, थोड़ी देर करवट बदलने के बाद रात में
जतिन उठा, चुपचाप किचन में गया और खाना निकालकर खा
लिया। रीमा भी बिस्तर पर लेटे-लेटे चुपचाप जतिन को देख रही थी। जब रीमा ने देखा कि
जतिन ने खाना खा लिया, तब रीमा भी उठी और चुपचाप अपना खाना खाकर
सो गई।
सुबह, रीमा जल्दी उठ गई, सारा काम निपटाया और लंच बनाकर टेबल पर रख दिया। और अपने काम पर जाने के लिए तैयार होने लगी। गुंजन जब से एग्जाम देने रीमा के घर आई थी, तभी से यह सब देख रही थी कि रीमा ऑफिस के साथ-साथ घर का भी सारा काम करती हैं। फिर भी कभी देर-सवेर हो जाती तो जीजा जी उल्टा रीमा पर गुस्सा हो जाते थे।
आज गुंजन से रहा
नहीं गया। गुंजन रीमा के पास आई और बोली, “दीदी, आप यह सब क्यों
सहती हो? आप जीजा जी से कम नहीं हैं। आप भी बाहर
काम करती हो, फिर भी घर का सारा काम आपको ही करना
पड़ता है।”
रीमा मुस्कुराई और
गुंजन के कंधे पर प्यार से हाथ रखते हुए बोली, “ऐसी बात नहीं है गुंजन। जतिन हमसे और सोनू से बहुत प्यार
करते हैं। हाँ, कभी-कभी झगड़ा हो जाता है, पर यह सब तो होता ही है।”
गुंजन ने गुस्से
में कहा, “थोड़ा-बहुत झगड़ा? जीजा जी को तो तमीज़ ही नहीं है, वे कुछ भी बोल देते हैं।”
रीमा ने शांत स्वर
में समझाया, “परिवार में रहने के लिए ये सब बातें सहनी
पड़ती हैं। मैं भी कभी-कभी गलत बोल देती हूँ।”
गुंजन ने तीखे
लहजे में कहा, “अगर शादी ऐसी होती है, तो मैं जिंदगी में कभी शादी नहीं करूंगी।”
रीमा ने प्यार से
गुंजन को सोफे पर बैठाते हुए कहा, “ऐसा नहीं बोलते, गुंजन। समाज में हमें परिवार की जरूरत
होती है। जब हम एक परिवार बनाते हैं, तो छोटी-मोटी बातों पर झगड़े होते ही रहते हैं। तुम भी अपने
मायके में छोटी-छोटी बातों पर अपने भाई से नहीं लड़ती हो क्या? गलती करने पर बुआ जी या फूफा जी तुम्हें
नहीं डाँटते हैं क्या? तो फिर ससुराल में इन्हीं सारी बातों को
इतना बुरा क्यों लगता है? जैसे हम मायके में इन बातों को इग्नोर करते
हैं, हमें ससुराल में भी इन बातों को इग्नोर
करके चलना चाहिए। हमें इन छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज कर परिवार को जोड़कर रखना
चाहिए।”
गुंजन ने सवाल
किया, “तो फिर घर को जोड़े रखने के लिए आप ही
क्यों सहती हो? आप भी तो बाहर काम करती हो, और घर का सारा काम आपको ही क्यों करना
पड़ता है?”
रीमा ने हंसते हुए
कहा, “क्योंकि घर के अंदर की बात को एक औरत से
बेहतर कोई और नहीं संभाल सकता। यह मेरा घर है, और जब तुम अपने घर को अपना समझकर काम करोगी, तो छोटे-मोटे झगड़े भी तुम्हें बुरे नहीं
लगेंगे। यही दुनिया का नियम है। बाहरी लोग केवल दिलासा देंगे, लेकिन जब मुसीबत आएगी, तो अपने ही काम आएंगे। परिवार ही हमें
संभाले रखता है, इसलिए परिवार को संभालकर रखना चाहिए। इन
छोटी-छोटी बातों को इग्नोर कर परिवार को हमेशा जोड़कर रखना एक औरत की जिम्मेदारी
है और यही दुनियादारी भी।”
रीमा ने कहा, “लेकिन गुंजन जतिन भी कई बार मेरी गलतियों
को इग्नोर करते हैं। जतिन मेरा और सोनू का बहुत ख्याल रखते हैं। और एक बात, गुंजन, दुनिया में हर आदमी परफेक्ट नहीं होता। हर किसी में कुछ न
कुछ कमी जरूर होती है। जब हम एक पति-पत्नी बनते हैं, तो हमें एक-दूसरे की कमियों को इग्नोर कर मिलकर रहने में ही
समझदारी है। कौन ज्यादा काम करता है, कौन कम—इन बातों को सोचकर
अपना समय और दिमाग खराब नहीं करना चाहिए।”
इतना बोलकर रीमा
मुस्कुराते हुए प्यार से गुंजन के गालों पर एक चम्पत लगाते हुए बोली, “अब तुम चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ, नहीं तो तुम एग्जाम देने जाने के लिए लेट
हो जाओगी।” यह कहकर रीमा अपने काम में लग गई।
रीमा की बातें
सुनकर गुंजन सोच में पड़ गई। शायद वह अपनी दीदी की बातों का अर्थ समझ गई थी।
अल्पना सिंह
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