फेसबुक प्रोफाइल पिक(हास्य)


 


फेसबुक प्रोफाइल पिक(हास्य)

श्रीवास्तव जी अभी-अभी थाने में आकर अपनी कुर्सी पर बैठे ही थे कि उनके सीनियर ने आदेश देते हुए कहा, “श्रीवास्तव जी, आप आ गए! मैं कब से आपका इंतज़ार कर रहा था। आज आपकी ड्यूटी सब्जी मंडी में लगी है।

अपने सीनियर की बात सुनकर श्रीवास्तव जी का चेहरा बिगड़ गया।

हाँ, दो दिन से शिकायत आ रही है कि सब्जी मंडी में सुबह और शाम बहुत भीड़ हो जाती है, जिससे सड़क जाम हो जाता है और लड़ाई-झगड़े की नौबत बन जाती है,” उनके सीनियर ने कहा।

श्रीवास्तव जी का मन तो नहीं था कि वह सब्जी मंडी जाएं, लेकिन करते भी क्या? सीनियर का आदेश था, इसलिए उन्होंने अनमने ढंग से चेहरे पर बनावटी हंसी लाते हुए कहा, “ओके सर।इतना कहकर श्रीवास्तव जी सब्जी मंडी के लिए निकल गए।

मंडी पहुँचकर श्रीवास्तव जी ने देखा कि सच में बहुत भीड़ थी। सामने सड़क जाम हो गया थाकार, बाइक, ऑटो और साइकिल एक-दूसरे में उलझे पड़े थे। हार्न बज रहे थे और पैदल चलने वालों की तो खैर नहीं थी। श्रीवास्तव जी वहाँ पहुँचकर कुछ बोलने ही वाले थे कि उनके कानों में एक औरत के जोर से चिल्लाने की आवाज सुनाई पड़ी, “अरे हटो! ये ऑटो वाले भी बिना वजह अंदर घुस आते हैं!

उस औरत को देखकर श्रीवास्तव जी को उसका चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगता है। श्रीवास्तव जी अपने दिमाग पर जोर देते हुए याद करने की कोशिश करते हैं कि मैंने इस औरत को कहाँ देखा है?” तभी उन्हें याद आता है, “अरे, ये तो श्यामली हैं, मेरी फेसबुक फ्रेंड!श्यामली का चेहरा याद आते ही श्रीवास्तव जी का चेहरा खुशी से खिल उठता है। लेकिन उनकी खुशी ज्यादा देर तक नहीं टिकती। थोड़ी ही देर में श्रीवास्तव जी का मुंह कसैला हो जाता है।

वह अपने आप में बड़बड़ाते हैं, “ओह, ये फेसबुक पर अपनी पुरानी पिक लगाकर एकदम हिरोइन बनती हैं। आजकल किसी पर भरोसा नहीं!

अचानक श्यामली की आवाज ने उन्हें होश में लाया। अरे, दरोगा साहब! आप खड़े-खड़े क्या देख रहे हैं? थोड़ा डांट लगाइए इन ऑटो वालों को, देखिए, किधर घुस आए हैं!

श्यामली की बात सुनकर जैसे श्रीवास्तव जी को होश आया। वह अपने खयालों से बाहर आते हैं और उन ऑटो वालों को डांट लगाते हुए बोलते हैं, “अरे, मैडम! ये गली ही संकरी है। यहाँ भीड़ तो लगेगी ही, थोड़ा आपको भी मैनेज करना पड़ेगा।

इतना कहकर श्रीवास्तव जी सड़क पर लगी भीड़ को हटाने लगे, और श्यामली अपने हाथों में सब्जी का थैला लिए धीरे-धीरे वहाँ से चली जाती हैं। श्रीवास्तव जी श्यामली को जाते हुए देखते रह जाते हैं और मन ही मन सोचते हैं, “मैंने तो इसे पहचान लिया, लेकिन इसने मुझे नहीं पहचाना? या पहचानकर भी अनजान बन रही है?”

वह खीज उठते हैं और श्यामली को कोसते हुए अपने घर की ओर चल देते हैं।     

घर पहुँचकर श्रीवास्तव जी एकदम से सोफे पर पसर जाते हैं और अपनी पत्नी से कहते हैं, “अजी सुनती हो, एक कप चाय लाना, और हाँ, आलू लाया हूँ, पकौड़े भी तल देना।इतना कहकर श्रीवास्तव जी अपना मोबाइल खोल लेते हैं।

श्रीवास्तव जी ने बोल तो दिया था, लेकिन उनके दिमाग में अभी भी श्यामली और उसकी फेसबुक प्रोफाइल पिक घूम रही थी। श्रीवास्तव जी की पत्नी ने चाय और पकौड़े ला कर दिए तो उन्होंने बिना सोचे-समझे प्लेट से एक पकौड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। वह गरम था, फिर क्या था, श्रीवास्तव जी का मुँह जल गया।

गुस्से में, श्रीवास्तव जी ने अपनी पत्नी पर चिल्लाते हुए कहा, “अरे, दिमाग काम नहीं कर रहा है क्या? इतना गरम पकौड़ा कोई देता है क्या? इतना गरम पकौड़ा खिला कर जान से मारने का इरादा है क्या?”

उनकी बात सुनकर श्रीवास्तव जी की पत्नी गुस्से से आगबबुला हो जाती हैं और चिल्लाते हुए कहती हैं, “अरे, चाय और पकौड़े गरम ही खाया जाता है! लेकिन कहते तो चाय और पकौड़े बना कर फ्रिज में ठंडा कर के दे देती। जब देखो तब मोबाइल में घुसे रहते हो, खुद की सुध भी नहीं रखते, आलू खा-खाकर आलू जैसा अपना पेट बड़ा कर लिया है!

गुस्से में श्रीवास्तव जी की पत्नी किचन में चली जाती हैं। उनकी बातें सुनकर श्रीवास्तव जी गुस्से से अपना पैर पटकते हुए अपने कमरे में चले जाते हैं।

कमरे में जाकर श्रीवास्तव जी अपना तौलिया उठा कर वाशरूम में चले जाते हैं। वाशरूम से बाहर आकर वह तौलिया लपेटे हुए ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर खुद को ऊपर से नीचे देखने लगते हैं। तभी उनकी नजर अपने बढ़े हुए पेट पर आकर रुक जाती है।

उनके कानों में पत्नी की बात गूंजने लगती है, “आलू खा-खाकर आलू जैसा पेट हो गया है।श्रीवास्तव जी अभी अपने पेट को निहार ही रहे थे कि उनकी नजर अपने कानों के पास के उजले बालों पर पड़ती है, जो कलर करने के बाद भी चाँदी की तरह चमक रहे हैं। उन छोटे बालों पर तो कलर चढ़ता ही नहीं है। आँखों के नीचे हल्की झुर्रियाँ भी उभर आई थीं।

श्रीवास्तव जी एक झटके के साथ अपना मोबाइल उठा कर उसमें लगे अपने प्रोफाइल पिक को देखते हैं। उनका प्रोफाइल पिक अभी के चेहरे से बिलकुल मैच नहीं कर रहा था। श्रीवास्तव जी अपने सिर को झटकते हुए कहते हैं, “अरे, चार साल पुराना पिक ही तो लगाया है। चार साल में इतना अंतर आ गया है मेरे चेहरे में! शायद थोड़ा फ़िल्टर भी यूज़ कर लिया था मैंने।

तभी उनके मोबाइल में मेसेज की घंटी बज उठती है। श्रीवास्तव जी आगे बढ़कर मोबाइल उठाकर देखते हैं, तो उसमें श्यामली का नोटिफिकेशन था, “वैरी नाइस पिक।

पढ़कर श्रीवास्तव जी के चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है। उनका सारा गुस्सा छूमंतर हो जाता है। आज सुबह ही इस फोटो को अपलोड किया था। वह हँसते हुए थैंक यूलिखते हैं और सोचते हैं, “शायद यही फेसबुक की सच्चाई हैहकीकत से परे, केवल हँसना-हँसाना, छोटी-छोटी तारीफें और उनसे प्रोत्साहित होकर अपने काम पर ध्यान देना।

                                                        अल्पना सिंह 

Comments

  1. श्रीकांतSeptember 25, 2024 at 9:33 PM

    यह हास्य व्यंग्य श्रीवास्तव जी के जीवन के एक मज़ेदार दिन की कहानी है, जिसमें फेसबुक प्रोफाइल पिक और वास्तविक जीवन के बीच के अंतर को हंसी-मजाक के रूप में प्रस्तुत किया गया है। कहानी में फेसबुक पर बनावटी छवि और वास्तविकता के बीच की दूरी को दर्शाते हुए एक रोचक प्रसंग है, जहाँ श्रीवास्तव जी अपने पुराने प्रोफाइल पिक से खुद को पहचानते हैं, लेकिन मंडी में मिलने वाली फेसबुक फ्रेंड श्यामली का बदला रूप उन्हें चौंका देता है।

    श्रीवास्तव जी की पत्नी के साथ उनका हास्यपूर्ण संवाद और स्वयं के ऊपर विचार करते हुए हास्यास्पद निष्कर्ष पर पहुँचना, कहानी को और भी जीवंत बना देता है। अंत में फेसबुक की "सच्चाई"—प्रशंसा और सोशल मीडिया पर सकारात्मकता बनाए रखने की भावना—को भी हंसी के साथ प्रस्तुत किया गया है।

    यह कहानी जीवन के छोटे-छोटे पलों को हल्के-फुल्के ढंग से समझने और उन पर हंसने के लिए प्रेरित करती है।

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