पिया बसंती (भाग-5)
पिया बसंती (भाग-5)
दूसरे दिन, मैं अपना काम निपटा कर बुआ को दवा दे रही
थी, तब बुआ ने कहा, "सुमी, दोपहर का खाना बना कर ढक कर रख दे और तू जल्दी से जा कर
तैयार हो जा। रवि आता ही होगा, रवि तुझे इस शहर
को घुमा लाएगा।" फिर बुआ ने अपने पर्स से कुछ पैसे निकाल कर मेरे हाथों में
देते हुए बोलीं, "ये कुछ पैसे हैं, सुमी। तू अपने लिए कुछ अच्छा सा खरीद
लेना। मेरी तो तबियत ठीक नहीं है, नहीं तो मैं खुद
चलती तुम्हारे साथ।" मैंने कुछ नहीं कहा, केवल चुपचाप बुआ के दिए पैसे को मुठ्ठी में दबाए अंदर वाले
कमरे में चली गई।
आज से पहले तैयार
होने में, कपड़ों को चुनने में कभी इतनी असमंजस
नहीं हुई। क्या पहनूं, क्या नहीं, अपने साथ लाए सारे शूट को निकाल कर पलंग पर फैला दिया और
सोचने लगी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मन ही मन सोच रही थी, "मितु यहाँ होती तो वो मेरी मदद कर देती।"
तभी ख्याल आया कि फोन लगा कर मितु से ही पूछ लेती हूँ। फिर कुछ सोच कर रुक गई, "नहीं, नहीं, मितु से पूछूंगी
तो मेरा फिर से मजाक उड़ाएगी।"
अभी मैं ये सारी
बातें सोच ही रही थी कि बुआ की आवाज मेरे कानों में सुनाई पड़ी। मैं भाग कर बुआ के
कमरे में पहुंची। तो देखा कि रवि जी आ कर बुआ के कमरे में बैठे हुए हैं। रवि जी को
देख कर मेरे तो जैसे हाथ-पैर ही शून्य पड़ गए। मैं चुपचाप दरवाजे पर खड़ी हो गई।
बुआ ने मेरी तरफ देखा और थोड़ा गुस्सा करते हुए बोलीं, "अरे, सुमी, तू अभी तक तैयार
नहीं हुई? मैंने कहा था न कि जल्दी से तैयार हो जा, रवि आने वाला है।"
बुआ की बात सुनकर
मैं धीरे से हकलाते हुए बोली, "ओ बुआ, मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या
पहनूं, मेरा मतलब है कौन सा शूट पहनूं।"
मेरे सवाल का बुआ
कोई जवाब देती, इससे पहले ही रवि जी बोल पड़े, "अरे, इसमें सोचने वाली कौन सी बात है? कोई भी शूट पहन लीजिए, आप पर तो कोई भी कलर अच्छा लगता
है।"
रवि जी की यह बात
सुनकर कि मेरे ऊपर कोई भी कलर अच्छा लगता है, कितना अच्छा लगा, इसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती। मेरे तो जैसे पंख
निकल आए हों, मैं हवा में उड़ने लगी। मैं अपने कमरे
में गई और पिंक कलर का शूट पहन लिया और बुआ के पास आकर खड़ी हो गई। मैंने अपनी
नजरें नीचे की थीं, लेकिन मैंने देखा कि रवि जी मेरी ओर ही
देख रहे थे। रवि जी का मेरी ओर देखना मेरे दिल की धड़कन बढ़ा रहा था। रवि जी ने
बुआ की ओर देखा और धीरे से बोले, "ठीक है, बुआ जी, अब हम चलते हैं।"
बुआ ने हाँ में
सिर हिलाकर हिदायत देते हुए कहा, "हाँ ठीक है, रवि, लेकिन अंधेरा होने से पहले घर लौट आना, नहीं तो सुमी के फूफा जी गुस्सा
करेंगे।"
बुआ जी को ठीक है
बोलकर रवि जी कमरे से बाहर निकल गए और मैं भी बुआ के इशारे को समझकर धीरे-धीरे रवि
जी के पीछे-पीछे बाहर आ गई। रवि जी अपनी गाड़ी ले कर आए थे। उन्होंने आगे बढ़कर
गाड़ी के आगे की सीट का दरवाजा खोल दिया। मैंने कुछ नहीं कहा, बस चुपचाप आगे वाली सीट पर बैठ गई। रवि
जी ड्राइविंग सीट पर बैठ गए और गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी। मैं चुपचाप खिड़की की ओर
चेहरा किए बैठी थी। ना वो कुछ बोल रहे थे और ना मैं। लगभग 10 मिनट गाड़ी चलाने के बाद रवि जी चुप्पी
तोड़ते हुए बोले, "आपका नाम सुमी है।"
रवि जी के सवाल के
लिए मैं बिल्कुल तैयार नहीं थी। मेरे रवि जी के बगल में बैठने से ही दिल की धड़कन
तेजी से धड़क रहा था। रवि जी के सवाल से मैं एकदम सकपका गई। फिर किसी तरह खुद को
शांत करते हुए धीरे से बोली, "जी, मेरा नाम सुमन है, लेकिन सभी मुझे सुमी बोलकर बुलाते
हैं।"
मेरी बात सुनकर
रवि मुस्कुराते हुए बोले, "ओ, तो आपका पूरा नाम सुमन है, और सभी प्यार से आपको सुमी बुलाते हैं।"
रवि जी की बात का
मैंने एक छोटा सा जवाब दिया, "जी," और फिर चुप हो गई। कुछ दूर आगे चलने पर
रवि जी एक बार फिर चुप्पी को तोड़ते हुए बोले, "तो सुमन जी, क्या मैं भी आपको सुमी बोलकर बुला सकता हूँ?"
सुनकर मुझे फिर एक
बार झटका लगा। मैंने नज़र उठाकर रवि जी की ओर देखा और मेरी नज़रें रवि जी की
नज़रों से टकरा गईं। मैंने झट से अपनी नज़र दूसरी तरफ फेर ली और धीरे से बोली, "जी, बुला सकते हैं।"
मैं खिड़की से
बाहर देख रही थी और ना जाने क्यों मुझे खुद पर ही हंसी आ रही थी। मन ही मन यह
सोचकर कि हम सारी सहेलियाँ भी प्यार से तुम्हें 'पिया बसंती' कहकर बुलाते हैं, तो क्या हम भी... यह सोचकर मैं मन ही मन
हंस पड़ी।
इधर सुमी की तरफ
से कोई जवाब ना पा कर रवि धीरे से बोलता, "ओके, सुमन जी, यदि आपको पसंद नहीं तो मैं आपको..." रवि ने अभी अपनी
बात पूरी भी नहीं की कि मैं हड़बड़ाते हुए बोली, "अरे नहीं, ऐसी कोई बात नहीं
है, आप मुझे सुमी कहकर बुला सकते हैं।"
मेरी बात सुनकर
रवि के चेहरे पर मैंने एक खुशी महसूस की। रवि मेरी तरफ देख कर मुस्कुरा रहा था, और अब तो मैं भी कभी-कभी उसकी ओर देख कर
मुस्कुरा रही थी। हम दोनों के बीच अब आपस में थोड़ी-थोड़ी बातचीत शुरू हो गई थी।
रवि मुझे सारा शहर घुमाता रहा, पार्क, बड़े-बड़े टेम्पल, सभी जगह, जहाँ भी घूमने लायक जगह थी, और साथ में शहर के बारे में बताता भी जा रहा था। और मैं
मंत्रमुग्ध सी उसके पीछे-पीछे हाँ में हाँ मिलाती हुई घूम रही थी।
फिर शाम होने से
पहले ही रवि ने मुझे बुआ के घर छोड़ दिया और बोलकर गया कि कल वो फिर आएगा। घर आई
तो बुआ ने पूछा, "घूम आई सारा शहर, कैसा लगा?"
मैं उन्हें क्या
बताती, शहर से ज्यादा शहर घुमाने वाला अच्छा
लगा। मैंने केवल छोटा सा जवाब "अच्छा लगा" दे कर चुप हो गई।
बुआ ने फिर पूछा, "कुछ खरीदा नहीं तुमने अपने लिए?"
मैं धीरे से बोली, "हम लोगों को घूमते-घूमते ही देर हो गई थी, इसलिए रवि जी बोले कि आज मॉल में जाएंगे
तो रात हो जाएगी, कल ले जाएंगे।"
मेरी बात सुनकर
बुआ जी ने हंसकर जवाब दिया, "चल, कोई बात नहीं, कल चली जाना।"
मैंने धीरे से सिर
हिला कर हाँ में जवाब दिया और किचन में खाना बनाने चली गई। खाना बनाते-बनाते, मेरे आँखों के सामने केवल रवि की बातें, रवि के बात करने का स्टाइल, उसका मुस्कुराना सब याद आ रहा था। यह
एहसास ही कुछ नया था। मैं एक बार फिर रात भर सो नहीं पाई। सुबह का इंतज़ार था मुझे, कैसे सुबह जल्दी हो जाए और वो रवि जी के
साथ एक बार फिर अकेले...
आगे मोड़ लेने वाली
हैं सुमी की जन्दगी, कैसा होगा उसके नए एहसासों का सफ़र जानने के लिए पढ़ते रहिये
मेरी कहा (पिया बसंती) आगे की कहानी अगले भाग में.........
लेखिका-अल्पना
सिंह
हेल्लो फ्रेंड्स आप लोग मेरी कहानी पढ़ते हैं और आगे बढ़ जाते हैं, यदि आप लोग मेरी कहानी पढ़ कर लाइक, कमेंट करेंगे तो मेरा उत्साह बढेगा और मुझे आगे की कहानी लिखने में मन भी लगेगा, इसलिए प्लीज मेरी कहानी पढ़ कर जरुर बताये की मेरी कहानी आप लोगो को कैसी लगी, धन्यवाद
Nice story
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