पिया बसंती (भाग-6)
पिया बसंती (भाग-6)
पिया बसंती (भाग-6)
अगला दिन मेरे लिए
नए एहसासों से भरा हुआ था। आज मैं 9 बजे से पहले ही तैयार हो गई थी, दिल में एक अजीब सी खुशी थी। बार-बार
आईने में खुद को देख-देख कर खुद पर इतरा रही थी। सुबह ठीक 9 बजे रवि जी हाजिर हो गए, और मैं एक बार फिर नए एहसासों के नए सफर
पर निकल गई। अब मैं और रवि जी दोनों एक-दूसरे के साथ थोड़ा खुल गए थे और खुल कर
बातें होने लगीं।
बातों ही बातों
में मुझे पता चला कि जैसे मैं अपनी बुआ के घर आई हूँ, वैसे ही वह अपनी मौसी के घर आए हैं। और
भी ढेर सारी बातें इधर-उधर की बिना सर-पैर की। सारा दिन मैं रवि जी के साथ इस मॉल
से उस मॉल घूमती रही। ढेर सारी खरीदारी भी कर ली। शुरू में मैं उतने ही पैसे की
चीजें पसंद कर रही थी, जितने बुआ ने दिए थे, लेकिन रवि की बातों में ऐसा जादू था कि
मैं उनकी खिलाफत कर ही नहीं पाई। बुआ ने जो पैसे दिए थे, वो मेरी मुठ्ठी में ही रह गए।
रवि जी के साथ
कैसे सुबह से शाम हो गई, पता ही नहीं चला। फिर रवि जी मुझे मेरी
बुआ के घर छोड़कर अपने घर वापस चले गए। इन दो दिनों में रवि जी के साथ रहकर मुझे
समझ में आ गया था कि रवि जी ना केवल देखने में स्मार्ट और हैंडसम थे, बल्कि दिल के भी बहुत अच्छे और सुलझे हुए
इंसान थे। अच्छी सोच और संस्कार के साथ-साथ पैसे वाले भी थे। मैं मंत्रमुग्ध सी
रवि जी की ओर आकर्षित हो रही थी, रात-दिन मेरे
ख्यालों में उनकी बातें घूमती रहती थीं और आँखों के सामने उनका हंसता हुआ चेहरा
याद आता रहता था।
अब तो हर दिन सुबह
9 बजे मुझे रवि जी का इंतजार रहता था, और रवि जी भी रोज सुबह 9 बजे बुआ के घर हाजरी देने चले आते थे। यह
एक सिलसिला बन गया। घंटों मैं और रवि जी बातें करते रहते या कभी शाम के वक्त घूमने
निकल जाते। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। उस दिन शाम के वक्त रवि जी के साथ
मैं पार्क में घूमने गई। शाम ढल रही थी और मौसम सुहाना हो रहा था।
हम दोनों बातें
करते हुए पार्क से घर के लिए निकलने ही वाले थे कि रवि जी की नजर एक आइसक्रीम वाले
पर पड़ी। उन्होंने मुस्कुराकर मुझसे पूछा, "आइसक्रीम खाओगी?" मैंने मुस्कुराकर हाँ में सिर हिलाया। रवि जी आइसक्रीम लेने
के लिए आगे बढ़ गए और मैं वही खड़ी उनका इंतजार करने लगी। तभी 3-4 आवारा किस्म के लड़कों ने मुझे आकर चारों
तरफ से घेर लिया। मैं एकदम से डर कर सहम गई। वे चारों मेरे साथ बदतमीजी करने की
कोशिश कर ही रहे थे कि रवि जी वहाँ आ गए और उन चारों पर टूट पड़े।
लेकिन वे चारों भी
बहुत ढीठ थे और रवि जी से हाथापाई पर उतर आए। तभी शोरगुल सुनकर वहाँ से गुजर रहे
कई लोग इकट्ठा हो गए, जिससे वे चारों वहाँ से भाग खड़े हुए।
लेकिन रवि जी उनलोगों को किसी कीमत पर माफ नहीं करना चाहते थे। मैंने किसी तरह उन्हें
समझा-बुझाकर घर ले आई, लेकिन रवि जी अभी भी गुस्से में थे। वे
किसी भी कीमत पर उनलोगों को माफ नहीं करना चाहते थे। रवि जी ने मुझसे कहा कि मैं
चलकर उन चारों के खिलाफ पुलिस में शिकायत करू, लेकिन मैं बहुत डर गई थी और पुलिस में शिकायत करने से साफ
मना कर दिया।
रवि जी मुझे
समझाते हुए बोले, "सुमी कुछ नहीं होगा, इस बारे में मैं फूफा जी से बात करूंगा।" लेकिन मैंने
उनसे कहा कि वे इस बारे में फूफा जी को भी कुछ नहीं बोलें। मेरी बात सुनकर रवि जी
बहुत गुस्सा हो गए और गुस्से में बोले, "तुम जैसी देहाती गवार लड़कियों के कारण ही लड़कियों के साथ
ऐसे क्राइम होते हैं। तुम जैसी छोटी सोच रखने के कारण ही इन जैसे घटिया लड़कों का
मन बढ़ जाता है।" इतना बोलकर रवि जी मुझे मेरी बुआ के घर छोड़कर गुस्से से
वहाँ से चले गए।
मैं बुत बनी, धीरे-धीरे अपने कमरे में चली गई। रवि जी
अपनी जगह सही थे, लेकिन मेरे अंदर इतनी हिम्मत नहीं थी कि
मैं उन गुंडों के खिलाफ पुलिस में शिकायत करूं। घर आ कर मैं एकदम खामोश हो गयी थी,
बुआ मेरी खामोशी से परेशान हो गईं और उनके बार-बार पूछने पर मैंने उन्हें गुंडों
से छेड़छाड़ की बात बता दी। मैंने यह भी कहा कि रवि जी उन गुंडों के खिलाफ पुलिस
में शिकायत करना चाहते थे, लेकिन मैंने उन्हें मना कर दिया। मुझे
लगा था कि बुआ भी मेरा समर्थन करेंगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
बुआ ने रवि का
समर्थन किया और मुझे लेकर पुलिस स्टेशन रिपोर्ट लिखवाने ले गईं। रवि जी और फूफा जी
भी साथ में गए और पुलिस ने जल्दी एक्शन लिया, और उन चारों गुंडों को अच्छा सबक सिखाया। लेकिन इन सब में
मुझे बहुत शर्मिंदा कर दिया था। मैं रवि जी से नजर नहीं मिला पा रही थी। मैं
बिलकुल शांत हो गई थी। मुझे मेरे और रवि जी के बीच का फर्क समझ में आ गया था।
उन्होंने कहा था कि मैं देहाती गवार हूँ, और वह मेरे दिल में गहरी चोट कर गई थी।
मैं समझ गई थी कि
रवि जी आसमान हैं और मैं ज़मीन। रवि जी शहर के पढ़े-लिखे जेंटलमैन हैं और मैं गाँव
की देहाती गवार। मेरा और उनका कोई मेल नहीं। उनकी एक लाइन ने मुझे आसमान से धरती
पर खड़ा कर दिया था।
उस दिन के बाद भी
रवि जी कई बार मेरे घर आए, लेकिन मैं उनके सामने जाने से कतराती थी।
मैंने महसूस किया था कि उनकी नजरें मुझे ही ढूंढ रही थीं, लेकिन मेरे अंदर कुछ टूट सा गया था। आखिर
एक दिन रवि जी ने मेरा रास्ता रोक ही लिया। बोले, "सुमी, मैं जानता हूँ कि
तुम मुझसे गुस्सा हो। मेरी बातों से तुम्हें तकलीफ हुई है, लेकिन मेरा यकीन मानो, मेरा तुम्हारा अपमान करने का कोई इरादा
नहीं था। तुम्हें तकलीफ हो, इसलिए वो बातें नहीं कही थीं मैंने। बस
गुस्से में मेरे मुँह से निकल गई थीं।"
मैंने कुछ नहीं
कहा, बस चुपचाप उनकी बातें सुनकर खड़ी रही।
रवि जी सॉरी बोलकर कुछ देर वहीं खड़े रहे, शायद मेरे जवाब का इंतजार कर रहे थे, लेकिन मैं कुछ नहीं बोली। थोड़ी देर वहीं
खड़े रहने के बाद रवि जी चुपचाप वहाँ से चले गए।
क्या होने वाला है
आगे? क्या एक छोटी सी गलतफहमी सुमी और उसके
पिया बसंती के बीच ला देगी दूरियाँ? क्या सुमी और रवि के रास्ते अलग हो जाएंगे? आगे की कहानी "पिया बसंती" के
अगले भाग में।
लेखिका: अल्पना सिंह
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