हर दिन कुछ लिखती रहती हूँ मैं।(कविता )
हर दिन कुछ लिखती रहती हूँ मैं।
हर दिन कुछ लिखती रहती हूँ मैं।
जीवन के नये रंग, पुरानी यादें,
कुछ टूटे सपने, कुछ अधूरे ख्वाब,
बिखरे हुए रिश्तों को जोड़ती हूँ मैं।
हर दिन कुछ लिखती रहती हूँ मैं।
चादरों की सलवटों में छिपी कहानियाँ,
कोरे कागज पर अनकही बातें,
जिसे भर न पाने की कसक।
कभी महफ़िल की भीड़ में सूनापन,
तो कभी वीराने में सजी महफ़िल।
कुछ धुंधली होती सी जिंदगी,
कभी तेज धूप की जलन,
तो कभी गुलाबी सर्दी की मीठी यादें,
और चांदनी रात की महक।
हर दिन कुछ लिखती रहती हूँ मैं।
यादों का खट्टा-मीठा सिलसिला,
जिंदगी की रफ्तार जो थमती नहीं,
साँसों के थमने तक,
धड़कनों के रुकने तक,
हर पल गढ़ती रहती है एक नई कहानी।
हर दिन कुछ लिखती नया रहती हूँ मैं।
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